बैंकों की ओर से दी जाने वाली लॉकर सुविधा के लिए पिछले नियमों में बदलाव किया गया था. मगर इन नए नियमों ने ग्राहकों की परेशानी बढ़ा दी है. वे स्टांप ड्यूटी और अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने के चक्कर में फंसे हुए हैं. वहीं डेडलाइन करीब होने के साथ ही बैंकों की भी चिंता बढ़ गई है क्योंकि बहुत-सी बैंक शाखाएं नए नियमों को अमल में लाने के लिए अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हैं. साथ ही उनके पास नए समझौते के लिए जरूरी दस्तावेज भी नहीं हैं.
क्या हैं नए नियम? रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों को जनवरी 2023 तक सभी बैंकों को ग्राहकों के साथ लॉकर के संबंध में नए समझौते करने का निर्देश दिया था. भारतीय बैंक संघ की ओर से इस सिलसिले में एक मॉडल समझौते का मसौदा भी तैयार किया गया था, लेकिन आरबीआई ने बाद में इसे संशोधित किया. इसके तहत समय सीमा को चालू कैलेंडर वर्ष के अंतिम दिन तक बढ़ा दिया गया. समझौते के नए फॉरमेट में यह तय किया गया है कि बैंक अपनी देनदारी को वार्षिक लॉकर किराए के 100 गुना तक सीमित करेंगे, हालांकि उन्हें बिल्डिंग के ढहने, आग और चोरी जैसी घटनाओं पर नियंत्रण रखना होगा.
नियम लागू करने में बचे हैं 6 माह बैंकों के लिए अपने ग्राहकों के साथ नए समझौते करने की समय सीमा खत्म होने में महज छह महीने बचे हैं. निर्देश में यह तय किया गया था कि 50 फीसदी एग्रीमेंट जून के अंत तक हो जाने चाहिए. हालांकि, कई बैंकों की शाखाओं के पास नए समझौते करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नहीं हैं, ऐसे में नियम को अमल में लाने में दिक्कत हो रही है.
नए नियम कैसे बने मुसीबत? ग्राहकों को बैंक शाखाओं में जाने और औपचारिकताएं पूरी करने में सबसे ज्यादा दिक्कत स्टांप ड्यूटी को लेकर झेलनी पड़ रही है. एक ही राज्य में स्थित बैंक शाखाओं के बीच स्टांप शुल्क की कीमत एक समान नहीं है. जहां कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की शाखाएं 100 रुपए का स्टांप शुल्क स्वीकार कर रही हैं तो वहीं निजी बैंकों की कुछ शाखाएं 500 रुपए का स्टांप पेपर मांग रही हैं. कुछ बैंक 1000 रुपए का स्टांप की भी मांग कर रहे हैं. समझौते के लिए इस स्टांप शुल्क का खर्च कौन उठाएगा, इसे लेकर भी स्पष्टता नहीं है. इसके चलते ग्राहकों में भ्रम की स्थिति है.
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