हम सबको पता है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच आमदनी में कितना बड़ा अंतर होता है. ये अंतर केवल कमाई तक सीमित नहीं है, बल्कि निवेश और पैसों से जुड़े फैसलों को लेकर भी है.
हालांकि, पितृसत्तात्मक सोच, महिलाओं के दमन, लिंगभेद जैसे फैक्टर्स से अंतर बना हुआ है, लेकिन गुजरे वक्त में काफी चीजों में बदलाव भी हुआ है. अब बड़ी संख्या में महिलाएं दफ्तर जाती हैं, अपने मनपसंद के काम कर रही हैं, घर-गृहस्थी संभाल रही हैं और पहले के एक आमदनी वाले पारिवारिक ढांचे को बदल रही हैं. इससे परिवारों के जीवन स्तर में भी सुधार हो रहा है.
ये सब काफी उत्साहित करने वाला है, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां लड़कियों और महिलाएं अभी भी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. ये क्षेत्र है पैसा कमाने और निवेश के फैसले करने का कॉन्फिडेंस होना.
मुझे पता है कि ऐसा रातोंरात नहीं हो सकता है कि कोई महिला अचानक से अपने शेयर खरीदने या कितना बीमा लेना है या टैक्स कैसे बचाना है, इसके फैसले लेने लगे.
महिलाओं को अपनी वित्तीय योजना कैसे बनानी चाहिए इस पर एक अलग आर्टिकल में चर्चा करेंगे, लेकिन यहां मैं ऐसी महिलाओं को संबोधित करना चाहती हूं जो कि पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद काम कर रही हैं और ऐसी महिलाएं जो कि गुजरे कुछ वर्षों से काम कर रही हैं.
मैंने ऐसा पाया है कि जब भी निवेश के फैसले लेने की बात आती है तो अक्सर इस कैटेगरी की महिलाओं में कॉन्फिडेंस का अभाव होता है. अक्सर ये महिलाएं इन फैसलों में अपने पति/भाई/पिता या बेटों की मदद पर टिकी होती हैं.
भले ही मैं लोगों को उनके निवेश के फैसले करने में मदद देती हूं, लेकिन जब भी अपने निवेश की बात आती है तो मैं अपने परिवार की राय लेती हूं और इसी परिवारों को इसी तरह से काम करना चाहिए.
दिक्कत तब होती है जबकि परिवार के पुरुष सदस्य अपनी राय देते हैं जिसे ये लड़कियां और महिलाएं पूरी तवज्जो देती हैं (मैं इस कॉन्सेप्ट से सहमत हूं), लेकिन, कई दफा इन पुरुष सदस्यों की राय ऐसी होती है जो कि ठोस निवेश सिद्धातों, जानकारी और ज्ञान पर आधारित नहीं होती है.
ये लोग ऐसी राय देते हैं जिसे वे सही मानते हैं और उन्हें इससे हटकर कुछ और पता नहीं होता है क्योंकि उन्हें ही हमेशा से पैसों से जुड़े फैसले करने के योग्य माना जाता रहा है. ये लोग ऐसे फैसले करते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें सब पता है.
मेरे ऐसे क्लाइंट्स रहे हैं जिनके पिता उन्हें नए वित्तीय उत्पादों में पैसा लगाने की सलाह देते आए हैं जबकि खुद उन्होंने कभी गोल्ड, FD या इंश्योरेंस से बाहर जाकर निवेश नहीं किया था.
जैसा मैंने कहा, इन्हें इससे बेहतर की जानकारी नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है महिलाओं को उनकी सलाह नहीं लेनी चाहिए.
समान उम्र के युवा लड़कियों और लड़कों की बात करें तो मुझसे एक दफा पैनल डिस्कशन में पूछा गया था कि क्यों पुरुषों और महिलाओं के कॉन्फिडेंस में अंतर होता है. मेरा सीधा जवाब था कि लड़कियां सही फैसला लेने में बेहद सतर्कता बरतती हैं. दूसरी ओर, लड़कों पर ऐसा कोई दबाव नहीं होता है. ऐसा इस वजह से भी होता है क्योंकि लड़कियों पर खुद को साबित करने का प्रेशर होता है.
मैं यहां सनक में वित्तीय फैसले लेने को प्रोत्साहित नहीं कर रही हूं, लेकिन अपने दम पर वित्तीय फैसले लेने की दिशा में पहला कदम रखने का कम से कम कॉन्फिडेंस महिलाओं को अपने अंदर पैदा करना चाहिए.
(लेखिका SOLUFIN की फाउंडर हैं. लेख में व्यक्त की गई राय उनकी निजी है. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.))