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IMD के लिए क्यों मुश्किलभरा है मॉनसून की भविष्यवाणी करना

मॉनसून की भविष्यवाणी में IMD लगातार फेल हुआ है, लेकिन इस बार वह नई रणनीति का इस्तेमाल करेगा. क्या IMD की ये नई रणनीति कारगर साबित होगी?

  • Team Money9
  • Last Updated : April 7, 2021, 15:37 IST
PTI
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मौसम विभाग अगले कुछ दिनों में इस साल के लिए मॉनसून की पहली भविष्यवाणी करने वाला है. इससे ठीक पहले पिछले हफ्ते पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव एम राजीवन ने एक ट्वीट के ज़रिए बताया था कि इस साल मौसम विभाग ने मौसम की भविष्यवाणी के लिए एक नई स्ट्रैटेजी तय की है. यह स्ट्रैटेजी क्या होगी, इसका पता तो तभी चलेगा जब मध्य अप्रैल में भारतीय मौसम विभाग (IMD) इसका ऐलान करेगा, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस नई स्ट्रैटेजी से मॉनसून की भविष्यवाणी की चुनौती कम होगी.

खेती और बारिश का रिश्ता भारत में मॉनसून सिर्फ एक मौसम नहीं है, बल्कि यह देश की समृद्धि का आधार है. अच्छा मॉनसून मतलब अच्छी बारिश और अच्छी बारिश का मतलब होता है बेहतर उपज. बेहतर खेती का ग्रामीण भारत, किसानों और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में ज्यादा आमदनी से सीधा रिश्ता है. इसी वजह से मौसम विभाग की मॉनसून को लेकर होने वाली भविष्यवाणियों पर पूरे देश की नजर लगी रहती है. हालांकि, इस मामले में IMD के अनुमानों की विश्वसनीयता हमेशा संदेह के दायरे में रहती है.

फेल होता रहा है IMD मौसम की भविष्यवाणी दरअसल हर साल भारतीय मौसम विभाग (IMD) के लिए एक परीक्षा की तरह होती है, जिसके नतीजे मॉनसून की प्रगति के साथ धीरे-धीरे निकलते हैं. दुर्भाग्य से IMD साल-दर-साल इस परीक्षा में फेल होता रहा है. जुलाई 2017 में तो हालात इतने बिगड़ गए थे कि महाराष्ट्र के बीड जिले के आनंदगांव में किसानों के एक समूह ने भारतीय मौसम विभाग (IMD) के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी. IMD पर आरोप किसानों को गुमराह करने का लगाया गया. तकरीबन उसी समय स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने धमकी दी कि वह पुणे के IMD ऑफिस पर ताला लगा देंगे.

IMD पर किसानों के आक्रोश का सबब क्या था? दरअसल, जून 2017 की शुरुआत में विभाग ने मॉनसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की थी. फिर 12 जून को महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त मराठवाड़ा इलाके की कृषि मौसम इकाई ने किसानों को खरीफ फसलों की बुवाई शुरू करने की सलाह दी. किसानों ने अच्छी बारिश की उम्मीद में पिछले साल के मुकाबले 4-गुना ज्यादा बुवाई की. बादल मेहरबान भी हुए और 20 जून तक झमाझम बारिश हुई. लेकिन, उसके बाद आसमान सूखा तो ऐसा कि तीन हफ्तों तक बारिश की कोई बूंद नहीं गिरी. राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने 9 जुलाई को किसानों से बुवाई को 20 जुलाई तक टालने का अनुरोध किया. लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लगभग 75% बुवाई पूरी हो चुकी थी. जाहिर है किसानों का गुस्सा फूट पड़ा.

मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में भी उपज पर पड़ा फर्क और ऐसा नहीं है कि यह हाल सिर्फ महाराष्ट्र का था. मध्य प्रदेश में तिलहन और दलहन की खेती भी कम बारिश से प्रभावित हुई, जबकि हरियाणा और पंजाब में बारिश की अनियमितता के कारण धान के उत्पादन पर असर पड़ा. यहां तक कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हुई कम बारिश के कारण सोयाबीन के उत्पादन में करीब 10 फीसदी की कमी दर्ज की गई.

साल-दर-साल गलत पूर्वानुमान किसी को यह गलतफहमी न हो कि 2017 कोई अपवाद वर्ष था. दरअसल, 2017 में मौसम विभाग की भविष्यवाणी 2010-20 के बीच सबसे कम खराब रही. इस साल मौसम विभाग ने अप्रैल में लंबी अवधि के औसत का 98% बारिश होने का अनुमान जताया था, जबकि वास्तव में यह 95% रही. इसकी तुलना यदि 2019 से करें, तो वास्तविक वर्षा लंबी अवधि के औसत (LPA) का 110% रही, जबकि उस साल IMD की भविष्यवाणी 96% की थी. पिछला साल 2020 भी कुछ अलग नहीं था. जहां अनुमान LPA का 102% बारिश का था, वहीं यह वास्तव में 108.7% रही.

अनुमान और हकीकत में 10% का फर्क 2016 में तो हालात इस कदर खराब हुए कि मौसम विभाग ने जहां सामान्य से 106% ज्यादा बारिश का अनुमान जताया था, वहीं वास्तविक बारिश महज 97% हुई. इसी तरह 2014 और 2015 में भी आईएमडी के अनुमान और वास्तविक बारिश के स्तर में 10% से ज्यादा अंतर रहा था. लेकिन, मौसम विभाग की इन असफलताओं के बीच यह समझना भी जरूरी है कि ये अनुमान किस तरह लगाए जाते हैं और इनका मतलब क्या होता है? क्यों लगातार होने वाले निवेश और उन्नत होती तकनीकों के बावजूद भारतीय मौसम विभाग चूक जाता है? और उससे भी बड़ी बात यह कि भले देश भर के औसत में 3-10% का अंतर होता है, लेकिन अलग-अलग भूभागों में यह अंतर बहुत ज्यादा क्यों होता है?

क्या है वजह? मौसम विभाग दरअसल मॉनसून का जो अनुमान जारी करता है, आधुनिक दौर में उसकी तकनीक की शुरुआत 1994 में हुई. इसी साल “मध्यम अवधि के मौसम अनुमान के लिए राष्ट्रीय केंद्र” (NCMRWF) की स्थापना हुई जिसने अंकों पर आधारित मॉडल के माध्यम से वायुमंडलीय आंकड़ों को जटिल फॉर्मूलों के जरिए भविष्य के मौसम का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया. साल 2014 में इसे और उन्नत कर मौसम की भविष्यवाणी के लिए सांख्यिकीय मॉडल का इस्तेमाल शुरू हुआ. लेकिन, अमेरिका में विकसित इस मॉडल की अपनी कुछ दिक्कतें हैं, जिनके कारण अवधि बढ़ने के साथ ही अनुमान के गलत होने की संभावना बढ़ती जाती है. केवल 5 दिनों तक के अनुमान में 60% सटीकता होती है, जबकि उसके बाद की अवधि के अनुमान का कोई भरोसा नहीं होता.

नई रणनीति से क्या बढ़ेगा भरोसा? पिछले डेढ़ दशक में मौसम विभाग की सबसे सटीक भविष्यवाणी 2008 में हुई थी, जब वास्तविक से उसका अंतर केवल 1% रहा था. अब जबकि भारत सरकार मौसम विभाग के मॉनसून अनुमान के लिए किसी नई स्ट्रैटेजी की घोषणा कर रही है, तो उम्मीद यही की जा सकती है, IMD की सटीकता का रिकॉर्ड भी बेहतर होगा.

(Disclaimer: लेखक कृषि मामलों के जानकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)

Published - April 7, 2021, 03:37 IST

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