हरियाणा सरकार ने हाल में ही अपने यहां निजी सेक्टर की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी रिजर्वेशन लागू किया है. इस कानून के तहत 50,000 रुपये महीने तक की सैलरी वाली सभी निजी सेक्टर की नौकरियों में कंपनियों में 75 फीसदी कर्मचारी स्थानीय होने चाहिए. हालांकि, हरियाणा ऐसा इकलौता राज्य नहीं है जिसने इस तरह के कानून को पास किया है. इससे पहले गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु भी इस तरह की कोशिशें कर चुके हैं जहां पर स्थानीय लोगों को 80 से लेकर 100 फीसदी रिजर्वेशन देने की बात की गई. हालांकि, ये राज्य ऐसा कानून लागू नहीं कर पाए. इनके अलावा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना ने भी निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने को लेकर प्रयोग हाल के वक्त में किए हैं.
लेकिन, हरियाणा का मामला थोड़ा सा अलग दो वजहों से है. पहला तो ये कि हरियाणा ने इस कानून को लागू कर दिया है. और दूसरा ये कि हरियाणा में गुड़गांव, मानेसर, सोनीपत, फरीदाबाद जैसे इलाके बड़े औद्योगिक हब हैं जहां आईटी सेक्टर, ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स, ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स और टेक्सटाइल्स समेत तमाम इंडस्ट्रीज काम करती हैं. ये इलाके पिछले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर जॉब मुहैया कराने वाले केंद्रों के तौर पर उभरे हैं. साथ ही इन इंडस्ट्रीज को बड़ी तादाद में स्किल्ड लेबर की जरूरत होती है. हरियाणा के इस कानून से कई अहम सवाल पैदा हो रहे हैं.
क्या विचार-विमर्श हुआ? ऐसे में हरियाणा का ये कानून कई मायनों में बेहद चिंताजनक है. इंडस्ट्रीज का कहना है कि उनके साथ इस तरह के कानून को लाने के पहले कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया. उद्योगों पर असर डालने वाले इस तरह के किसी भी कानून को लाने से पहले एक व्यापक विचार-विमर्श किया जाना बेहद जरूरी है. केवल लोक-लुभावनी घोषणाएं या वोटों के नजरिये से ऐसे फैसले लेना जिनके दुष्परिणाम निकल सकते हैं, करना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है.
इंडस्ट्रीज को स्किल्ड लोग मिल पाएंगे? इस फैसले से एक बड़ा सवाल ये भी पैदा हो रहा है कि जिन इंडस्ट्रीज को स्किल्ड लेबर की जरूरत है वे क्या स्थानीय स्तर पर ऐसे श्रमिक आसानी से हासिल कर पाएंगी. अभी तक देशभर के लोग इन इंडस्ट्रीज में अपने स्किल्स के मुताबिक नौकरी हासिल करते हैं. लेकिन, अब कंपनियों पर 75 फीसदी स्थानीय लोगों को ही भर्ती करने की शर्त रख देने से क्या इंडस्ट्रीज खुद को टिकाए रख पाएंगी?
क्या उद्योग दूसरी जगह शिफ्ट होंगे? यह आशंका खुद हरियाणा सरकार के लिए भी चिंता की वजह होनी चाहिए. अगर इंडस्ट्रीज को पर्याप्त संख्या में स्किल्ड लोग नहीं मिलेंगे और उन्हें अपनी कैपेसिटी से कम पर काम करना होगा तो क्या खुद को टिकाए रखने के लिए वे उत्तर प्रदेश या किसी दूसरे राज्य में शिफ्ट होने के लिए नहीं सोचेंगी. अगर कंपनियां हरियाणा से शिफ्ट होती हैं तो इसका बड़ा असर क्या हरियाणा के राजस्व पर नहीं पड़ेगा? खासतौर पर आईटी और दूसरी सर्विसेज देने वाली कंपनियों के लिए दफ्तरों को शिफ्ट करना ज्यादा बड़ी दिक्कत की बात नहीं होगी.
सुस्त ग्रोथ के दौर में चिंताजनक ट्रेंड ऐसे वक्त पर जबकि देश कोविड-19 के मुश्किल दौर से गुजर रहा है. आर्थिक रिकवरी की रफ्तार सुस्त है और नई नौकरियां पैदा होना आसान नहीं है, इस तरह के कानून विपरीत असर पैदा करने वाले साबित हो सकते हैं. केंद्र सरकार एक भारत, श्रेष्ठ भारत की बात करती है. फाइनेंशियल इनक्लूजन की बात होती है और पूरे देश को जोड़ने की बात की जाती है. लेकिन, ये कानून क्या एक विरोधाभासी स्थितियां पैदा नहीं करते हैं. मौजूदा वक्त में सरकारों को देखना होगा कि वे केवल लोक-लुभावने ऐलान करने की बजाय ऐसे फैसले करें जिनसे आर्थिक ग्रोथ को बढ़ावा मिले, नई नौकरियां पैदा हों और देश के हर नागरिक को उसकी काबिलियत के मुताबिक नौकरी हासिल करने का बराबर मौका मिले.
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