कोरोना ने हम सब को एक नई लाइन सिखा दी – ‘वर्क फ्रॉम होम’ (WFH). लेकिन, क्या हर काम घर से हो सकता है? कुछ पेशे ऐसे हैं जिनके लिए बाहर निकले बिना काम हो ही नहीं सकता. मीडिया कर्मियों का काम भी कुछ ऐसा ही है. उन्हें घर से निकलना ही होगा ताकि आप तक ख़बरें पहुंचती रहें. फोन पर बात करके खबर लिखी तो जा सकती है, लेकिन अगर कोई फोटोग्राफर है तो वो फोन पर बात करके खबर नहीं बना सकता. ग्राउंड पर क्या चल रहा है ये बताने के लिए ग्राउंड पर जाना ही पड़ेगा. न्यूज़ शो बनाना है तो स्टूडियो जाना पड़ेगा. कैमरा क्रू, टेक्निशियन वर्क फ्रॉम होम नहीं कर सकते. किसी को तो अखबार के पेज को फाइनल करना पड़ेगा. कोरोना काल में स्वास्थ कर्मी, म्युनिसपल वर्कर, पुलिस, डिज़ास्टर मैनेजमेंट के काम से जुड़े फ्रंटलाइन वर्कर (frontline workers) को वैक्सीनेशन में प्राथमिकता दी गई और मिलनी भी चाहिए. लेकिन, क्या यही प्राथमिकता मीडिया से जुड़े कर्मियों को नहीं मिलनी चाहिए. पत्रकारों और उनकी सुरक्षा से जुड़े डेटा इकठ्ठे करने वाली जेनेवा की प्रेस एम्बलेम कैम्पेन (PEC) संस्था बताती है कि दुनिया भर में करीब 867 पत्रकारों की मौत कोविड के वजह से हुई है. इस लिस्ट में ब्राजील (109 पत्रकारों की मौत), पेरू (108) और मेक्सिको (88) जैसे लैटिन अमेरिकी देश के साथ 67 पत्रकार को खोने वाले भारत का भी नाम है. आप तक खबर पहुंचाने वाले जब खबर बनते हैं तो वो खबर एक दिन छपने या TV पर चलने के बाद याद नहीं रहती.
– 9 जून 2020- हैदराबाद में एक 33 साल के पत्रकार की मौत हो गई. अपने भाई को उसके आखिरी शब्द ये थे कि अस्पताल का ICU अच्छा नहीं है.
– 1 सितंबर 2020 को एक चर्चित मीडिया नेटवर्क में काम करने वाले 30 साल के पत्रकार की मृत्यु हो गई. दिसंबर 2020 को उनकी शादी होनेवाली थी.
– बिहार में एक पत्रकार को कोरोना हुआ वो खुद तो ठीक हो गए लेकिन घर में बुजुर्ग मां कोरना से नहीं लड़ पाईं.
मैं भी मीडिया से जुड़ी हूं, और ये हमारे बीच के लोग हैं इसलिए हो सकता है कि इन मामलों ने मुझे ज्यादा चिंतित किया. भाषणों में भी पत्रकारों को भी फ्रंटलाइन वर्कर (frontline workers) माना गया, लेकिन तकनीकी तौर पर नहीं. सरकार की ओर से 5 लाख रूपये के मुआवजे का ऐलान हुआ है लेकिन हम सबको पता है कि इससे किसी की जिंदगी की भरपाई नहीं हो सकती है. ये भी एक सच्चाई है कि जब ये सब हुआ तो कोई वैक्सीन नहीं थी. अब है और इसे जल्द से जल्द उन सभी लोगों तक पहुँचाना वक्त की ज़रूरत है, जोे किसी ना किसी फ़्रंट पर काम कर रहे हैं, जिनमें पत्रकार भी शामिल हैं.
कोविड की दूसरे लहर का उफान हमें पिछले साल के खौफ की याद दिला रहा है. देश को और इकॉनमी को बंद करना कितना महंगा, कितना दुखदायी है, अब हम जानते हैं. रोज़गार, काम- धंधे धीरे-धीरे पटरी पर आ रहे हैं ऐसे में घर से रोटी कमाने वाले से लेकर ख़बर लाने वाला तक, हर व्यक्ति एक फ्रंटलाइन वर्कर (frontline workers) है. ऐसे में सेलेक्टिव तरीके से लगाई जा रही वैक्सीन से बेहतर है कि इसे सबके लिए खोला जाए. चौंकाने वाली बात ये भी है कि AIIMS के डॉ. रणदीप गुलेरिया के एक बयान से ये भी साफ़ है कि बड़ी तादाद में लोग वैक्सीन लेने से हिचकिचा रहे हैं. ख़ुद AIIMS के 50% हेल्थ वर्कर ने अब तक वैक्सीन नहीं ली है. 1000 लोगों को वैक्सीन देने की क्षमता वाले अस्पतालों में 600 से 800 वैक्सीन ही लग रही हैं. ऐसे में सभी के लिए टीकाकरण का रास्ता खोलना अस्पतालों और वैक्सीन के डोज का सदुपयोग ही होगा. वो लोग जो रोज़ ख़तरा उठा कर रोजी के लिए निकल रहे हैं उन्हें इससे एक सुरक्षा ज़रूर मिलेगी.