प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की सभी फ्लैगशिप योजनाओं में से प्रधानमंत्री जनधन योजना ( Jan-Dhan Yojana) को शायद सबसे ज्यादा सफल माना जा सकता है. ये वित्तीय समावेश की दिशा में सरकार के उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक है.
2014 में इस स्कीम को लॉन्च किए जाने के बाद से ही कम से कम 42.42 करोड़ लोगों के जनधन योजना के तहत बैंक खाते खोले गए हैं. ये आंकड़ा यूएस और यूके की आबादी को मिला दें तो उससे भी ज्यादा है.
इस प्रोग्राम ने लोगों को डिजिटल ट्रांजैक्शंस के लिए सक्षम बनाया है. खासतौर पर इस स्कीम में लाभार्थियों को डेबिट-कम-ATM कार्ड दिए गए हैं जिनमें फ्री में इंश्योरेंस भी मिल रहा है.
हालांकि, आंकड़ों से ये पता चल रहा है कि डेबिट कार्ड वाले जनधन लाभार्थियों की हिस्सेदारी में धीरे ही सही मगर गिरावट आ रही है. आंकड़ों से पता चल रहा है कि हालांकि, 73.22 फीसदी लाभार्थियों के पास मार्च 2021 के अंत तक डेबिट कार्ड थे, लेकिन ये हिस्सेदारी अप्रैल के अंत में घटकर 73.17 फीसदी रह गई. इसके बाद मई के आखिर में ये आंकड़ा और गिरकर 73.07% पर आ गया है.
हालांकि, ये गिरावट सुस्त है, लेकिन निश्चित तौर पर इससे ये पता लगाने की जरूरत पैदा हो रही है कि सरकार को कहां पर सुधार करने की जरूरत है. 73% हिस्सेदारी का आंकड़ा पहले ही कम है क्योंकि ये डिजिटल ट्रांजैक्शंस के मकसद को पीछे धकेलता है. दूसरी ओर, इसमें गिरावट आना और बड़ी चिंता की वजह है.
बल्कि, अगर आप आंकड़ों को गहराई से चेक करें तो इससे डेबिट कार्ड जारी करने के मामले में राज्यों में मौजूद अंतर का पता चलता है. मार्च के अंत में लद्दाख के करीब 90 फीसदी जनधन खाताधारकों के पास डेबिट कार्ड थे, जबकि मणिपुर के मामले में ये आंकड़ा महज 35.14 फीसदी ही था. सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इन दोनों आंकड़ों के बीच ही ठहरते हैं.
डिजिटल ट्रांजैक्शन की एक संस्कृति विकसित करने के साथ ही इन कार्ड्स से लोगों को 2 लाख रुपये के एक्सीडेंटल इंश्योरेंस कवर समेत कई सुविधाएं भी मिलती हैं.
महामारी को इस गिरावट की वजह नहीं माना जा सकता है. अप्रैल और मई में जनधन लाभार्थियों की संख्या 22 लाख बढ़ी है जो कि हर दिन के हिसाब से करीब 36,000 बैठती है.
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