फरवरी 2021 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) वसूली का आंकड़ा 1.13 लाख करोड़ रुपये रहा. यह लगातार पांचवां महीना है जब GST कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े के पार गया है और लगातार तीसरा महीना है जब इसने 1.1 लाख करोड़ रुपये का स्तर पार किया है. GST के ये आंकड़े कुछ कह रहे हैं, और वह भी बहुत जोरों से. क्या कह रहे हैं, आइए समझते हैं.
दरअसल शेयर बाजार को अर्थव्यवस्था का एक ब्रॉड इंडिकेटर माना जाता है और यह भी माना जाता है कि जो सबसे स्मार्ट दिमाग हैं, वही शेयर बाजार को चलाते हैं. इसलिए भले ही अधिकतर रिटेल इन्वेस्टर शेयर बाजार में नुकसान का रोना रोते रहें, लेकिन संस्थागत निवेशक और पोर्टफोलियो मैनेजर अक्सर इस खेल के बाजीगर बनकर उभरते हैं. यही वे खिलाड़ी है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्हें सब पहले से पता रहता है. इसलिए कोविड-19 के लॉकडाउन के बाद जब दिग्गज अर्थशास्त्री और देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में रघुराम राजन और कौशिक बसु जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भीषण तबाही की भविष्यवाणियां कर रहे थे, उस समय चुपके से शेयर बाजार के दोनों संवेदी सूचकांकों ने यू–टर्न मार लिया.
सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट उससे काफी पहले शुरू हो चुकी थी, जब देश को कोरोना संकट की गंभीरता का अहसास हुआ. जब वास्तव में 25 मार्च को लॉकडाउन शुरू हुआ, उससे 2 दिन पहले ही 23 मार्च को सेंसेक्स करीब 4000 अंक गिरकर 25981 का सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका था. और जब देश अप्रैल–जून तिमाही के दौरान इतिहास में पहली बार अर्थव्यवस्था के 23.9% सिकुड़ने की सच्चाई को पचाने की कोशिश कर रहा था, उस समय तक, यानी 1 जुलाई को सेंसेक्स अपने न्यूनतम स्तर से लगभग 36% ऊपर आ चुका था.
विपक्ष चीखता रहा, विश्लेषक निराशावाद की थ्योरी फैलाते रहे, लेकिन हकीकत में अर्थव्यवस्था ने शेयर बाजार में लिखी स्क्रिप्ट को अक्षरशः फॉलो किया और जहां दूसरी तिमाही में GDP सिकुड़ने की दर 7.5% रही, वहीं तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर–दिसंबर के दौरान GDP में आई 0.4% वृद्धि ने साफ कर दिया है कि पहले विश्व बैंक और फिर भारत सरकार की अगले वित्त वर्ष में 11% वृद्धि दर का आकलन सिर्फ कयासबाजी नहीं है. अब GST के महीने दर महीने आते आंकड़े इस आकलन की जमीन को और मजबूत कर रहे हैं.
जिन लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा हो कि GST कलेक्शन में 1 लाख करोड़ रुपये का चक्कर क्या है, उनके लिए कुछ ऐतिहासिक आंकड़े देना प्रासंगिक होगा. जुलाई 2017 में GST सिस्टम लागू होने के बाद से कलेक्शन को पहली बार 1 लाख का आंकड़ा छूने में 9 महीने लगे थे. अगले साल 2018-19 के दौरान सिर्फ 4 महीनों, अप्रैल, अक्टूबर, जनवरी और मार्च में यह आंकड़ा 1 लाख करोड़ रुपये को पार कर सका. 2019-20 के दौरान आर्थिक गतिविधियों के लिहाज से चीजें कुछ बेहतर होती दिखीं और 7 महीनों में GST कलेक्शन ने 1 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार किया, जिनमें अप्रैल 2019 का कलेक्शन रिकॉर्ड 1,13,865 करोड़ रुपये तक पहुंचा.
2019 में नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी में पहली बार लगातार चार महीनों तक GST कलेक्शन 1 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा, लेकिन अप्रैल आते–आते आर्थिक गतिविधियों पर कोविड-19 की ऐसी मार पड़ी कि कलेक्शन 32,171 करोड़ रुपये रह गया. कमाल की बात यह है कि अक्टूबर में, जब अर्थव्यवस्था गहरी मंदी में थी, GST कलेक्शन ने वापस 1 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया और फिर लगातार बढ़ते हुए जनवरी 2021 में 1,19,847 करोड़ रुपये का नया रिकॉर्ड बनाया. फरवरी में हालांकि कलेक्शन में जनवरी के मुकाबले 7% की कमी आई है, लेकिन 1,13,143 करोड़ रुपये के साथ यह फिर भी शानदार माना जा सकता है.
साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से निकल चुकी है. लेकिन जो खास बात है, वह ये कि भारतीय उद्योग जगत छह महीने पहले मिली भारी चोट से न तो निराश है और न पस्त. इसे समझने का सबसे पुख़्ता संकेत पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) है जो फरवरी में लगातार दूसरे महीने 57.5 के इर्द–गिर्द बना रहा है. यह आंकड़ा लंबी अवधि के औसत 53.6 से बहुत ऊपर है, जो दिखाता है कि उद्योग जगत आगे आने वाले समय के लिए आत्मविश्वास से भरा है. PMI के तहत देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के चुनिंदा कंपनियों के पर्चेजिंग मैनेजरों से यह पूछा जाता है कि वह कितने ऑर्डर प्लेस कर रहे हैं और उसी आधार पर आने वाले समय की उम्मीदों का यह सूचकांक तैयार होता है. इसमें 50 से नीचे का आंकड़ा मंदी का संकेत होता है, जबकि 50 के ऊपर अर्थव्यवस्था तेज़ रहना माना जाता है.
इन तमाम संकेतों से साफ है कि देश की अर्थव्यवस्था अपने बुरे दौर को पीछे छोड़ चुकी है. इसका एक और पुख़्ता प्रमाण रोजगार के ताज़ा आंकड़े भी दे रहे हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2021 में बेरोज़गारी की दर दिसंबर 2020 के 9.1% से गिरकर 6.5% पर आ गई और इसी दौरान रोज़गार की दर 36.9% से बढ़कर 37.9% तक पहुंच गई. मतलब इस आर्थिक मज़बूती का साफ संदेश यही है GST कलेक्शन में जो सफलता सरकार को मिली है, उसका लाभ सिर्फ राजकोष को नहीं, बल्कि आम जनता को भी मिलने लगा है. और यह निःसंदेह अच्छी ख़बर है.
(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते)
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