राज्यसभा में दो सवाल पूछे गए. पहला सवाल क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को लेकर था जबकि दूसरा विभिन्न एशियाई मुद्राओं (Asian Currencies) के मुकाबले कारोबारी साल 2020-21 के दौरान रुपये की मौजूदा स्थिति से जुड़ा था. पहले सवाल के जवाब में जानकारी दी गयी कि सरकार एक कानून के मसौदे को जल्द ही कैबिनेट के सामने रखेगी और वहां से मंजूरी मिलने के बाद संसद में पेश किया जाएगा. दूसरे सवाल का जवाब था कि 2 फरवरी 2021 तक के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक भारतीय रुपया, दूसरे एशियाई मुद्राओं (Asian Currencies) के मुकाबले 3.53 फीसदी मजबूत हुआ है. इन दो में सुर्खियों में किसे जगह मिली? असली मुद्रा नहीं, बल्कि आभासी मुद्रा (Virtual Currency) को.
दरअसल जब से सरकार ने संसद में बजट सत्र के दौरान पेश होने वाले विधेयकों की सूची में क्रिप्टोकरेंसी एंड रेगुलेशन ऑफ ऑफिशियल डिजिटल करेंसी बिल, 2021 (The Cryptocurrency and Regulation of Official Digital Currency Bill, 2021) शामिल किया है, तब से आभासी मुद्रा (Virtual Currency) को लेकर असल दुनिया में हड़कंप मच गया है. सूची के मुताबिक, प्रस्तावित विधेयक का मकसद सभी प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) पर प्रतिबंध लगाना है और रिजर्व बैंक की ओर से जारी किए जाने वाले आधिकारिक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी – Central Bank Digital Currency) के लिए व्यवस्था का खाका तैयार करना है. इस विधेयक के आधार पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग की अध्यक्षता वाली कमेटी की एक रपट है जो 28 फरवरी 2019 को सरकार को पेश की गयी.
रपट में बाजार में बढती क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) की संख्या को लेकर चिंता जतायी गयी थी. कहा गया कि ऐसी मुद्राएं, बगैर संप्रभु ताकत वाली संस्थाएं ला रही हैं. इन मुद्राओं की अपनी कोई अंदरुनी कीमत नहीं और बाजार में आने के बाद से ही इनमें खासा उतार-चढाव देखने को मिल रहा है. रपट में बताया गया कि चूंकि इनका कोई अंकित मूल्य नहीं, ऐसे में ये ना तो कीमत का आधार बन सकते हैं और ना ही लेन-देन का माध्यम. एक और बात, निजी कंपनियों की ओर से जारी होने वाली क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency), फिएट करेंसी की तरह काम नहीं कर सकती.
फिएट करेंसी (Fiat Currency) का मतलब, अलग-अलग देशों में केंद्रीय बैंक की ओर से जारी होने वाली और सरकार की ओर से कानूनी मान्यता प्राप्त कागजी नोट और सिक्के हैं. ध्यान रहे कि 1971 में ब्रेटन वुट व्यवस्था के खत्म होने के साथ ही दुनिया के विभिन्न देशों में मुद्रा के पीछे सोने या बहुमूल्य धातु रखने की व्यवस्था खत्म हो गयी और उसके साथ ही फिएट करेंसी (Fiat Currency) यानी सरकार की ओर से कानूनी तौर पर मान्यता प्राप्त मुद्रा की व्यवस्था लागू की गयी. इस बात को समझने के लिए याद कर लीजिए प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी का 8 नवंबर 2016 को दिया गया बयान जिसमें उन्होने कहा था कि रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के नोट की कानूनी मान्यता नहीं होगी.
अब चूंकि निजी कंपनियों की ओर से जारी की जा रही क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) में ऐसी कोई बात नहीं, इसीलिए गर्ग कमेटी ने ऐसी सभी मुद्राओं पर प्रतिबंध लगाने की बात तो कही ही, साथ ही सीबीडीसी लाने का सुझाव दिया. रिजर्व बैंक कानून 1934 की धारा 22 के तहत ऐसी मुद्रा लायी जा सकती है जो कानूनी तौर पर कागजी नोट व सिक्कों की तरह मान्य होगी. इन्ही सब बातों को प्रस्तावित विधेयक में शामिल करने पर बात चल रही है. लेकिन सबसे अहम होगा कि आभासी मुद्रा (Virtual Currency) को परिषाषित किस तरह से किया जाता है.
अब सवाल उठाता है कि एक कानूनी मान्यता प्राप्त आभासी मुद्रा (Virtual Currency) की जब बात हो ही रही है तो फिर क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को लेकर इतनी हाय तौबा क्यों? एक अनुमान के मुताबिक करीब 70 लाख भारतीयों ने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश कर रखा है जिसकी कीमत 1 अरब डॉलर यानी रुपये में 72,80,35,00,000 (12 जनवरी को रुपये-डॉलर की कीमत के हिसाब से) बनते हैं. वास्तविक रकम और भी ज्यादा हो सकती है.
अब तीन बातों पर ध्यान देना है. पहली बात, आभासी मुद्रा (Virtual Currency) की चमक खासी ज्यादा है, मांग ज्यादा है, आपूर्ति कम. लिहाजा दाम तो बढ़ेंगे ही. यही नहीं जब दुनिया की बड़ी कंपनियां जैसे टेस्ला या मास्टरकार्ड कहे कि वो अपने पास बिटकॉइन (Bitcoin) रखेंगी तो लोगों का ध्यान जाएगा है. दूसरी बात, अर्थशास्त्र के सिद्धांत के मुताबिक जोखिम काफी ज्यादा है तो मुनाफा बड़ा हो सकता है और यह बात क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) पर खास तौर पर लागू होती है. तीसरी बात, मोटी कमाई करने वालों ने मोटा पैसा लगा रखा है और जब भारत सरकार ने प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी लगाने के संकेत दे दिए तो यहां पर हड़कंप मचेगा ही.
अब आगे क्या होगा? कानून बन जाने के बाद तीन बातों पर नजर होगी. पहली, कानून कब से लागू होगा, पिछली तारीख से या आगे की तारीख से? कानून लागू होने की तारीख के पहले किए निवेश का हाल क्या होगा? दूसरी बात, नियम कब बन कर सामने आएंगे? और तीसरी बात, जो कंपनियां भारत में यह काम कर रही हैं, उनका और उनके यहां काम करने वालों का क्या होगा? सरकार शायद संसद में विधेयक पेश करने के समय या बहस के बाद इन सवालों का जवाब देगी. तब तक अटकलें लगायी जाती रहेंगी. एक बात और, अपने हिसाब से कायदा-कानून बनवाने के लिए लॉबिंग जोरों पर है.
अंत में इन पंक्तियों को जब आप पढ़ रहे होंगे तो दुनिया के सात ताकतवर देश (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, जर्मनी, इटली और कनाडा) के वित्त मंत्री आभासी मुद्रा (Virtual Currency) और खास तौर पर सीबीडीसी पर चर्चा कर रहे होंगे. हो सकता है कि इन चर्चा से निकली बात क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) के लिए दूर तक की नीति का आधार बनेगी.
यह जब होगा तब होगा, तब तक तो आभासी मुद्रा, असली मुद्रा पर कम से कम सुर्खियों में भारी ही रहेगी.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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