देश कोविड की दूसरी लहर की तबाही से जूझ रहा है. इस वायरस से लड़ने के दो ही रास्ते हैं. एक, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे एहतियात और दूसरा, वैक्सीन. लेकिन, देश दोनों ही मोर्चों पर डगमगाता नजर आ रहा है.
पहली लहर के बाद सरकार और आम लोग दोनों ही लापरवाह हो गए. दूसरी ओर, वैक्सीनेशन के मोर्चे पर देश अपनी ही उलझनों में फंसा हुआ है. मसलन, दूसरी लहर के फैलने के साथ लोगों में अचानक वैक्सीन लगाने की होड़ शुरू हुई और पूरे देश में इसकी किल्लत पैदा हो गई. सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए जाहिर तौर पर तैयार नहीं थी.
लेकिन, देश के कई हिस्सों और खासतौर पर छोटे शहरों और कस्बों में अभी भी ये देखा जा रहा है कि लोग वैक्सीन लगवाने को लेकर हिचकिचा रहे हैं. लोगों में कई तरह की भ्रांतियां हैं. मसलन, जैसा पोलियो टीकाकरण के वक्त देखा गया था, वैसा ही अभी भी इसके साइड इफेक्ट्स को लेकर डर है. ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि महिलाएं इस वजह से वैक्सीन से बच रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसे लगवाने के बाद उन्हें बुखार आएगा और वे घर के कामकाज नहीं कर पाएंगी.
इस तरह के डर और भ्रांतियां वाकई चौंकाती हैं. हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन पुरातनपंथी सोच से अभी भी बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
बड़े शहरों में वैक्सीन की किल्लत बड़े पैमाने पर किल्लत है, लेकिन ऐसा पाया गया है कि छोटे शहरों में वैक्सीन पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं, लेकिन लोग इन्हें लगवाने नहीं जा रहे हैं. कई जगहों पर तो सरकारों को ये उपाय करने पड़े हैं कि वैक्सीन की वायल तब खोली जाएगी जबकि इसे लगवाने वाले 8-10 लोग मौजूद हों. ऐसा कदम वैक्सीन की बर्बादी रोकने के लिए उठाया जा रहा है.
वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स के डर का हल क्या है? इसका एक ही उपाय है और वो है बड़े पैमाने पर जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए. इस काम को सबसे अच्छी तरह से पंचायतें, ग्राम प्रधान, नगरीय निकाय और स्थानीय और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी मशीनरी के जरिए किया जा सकता है. इन प्रतिनिधियों को एक-एक घर के सभी योग्य सदस्यों को वैक्सीन लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और इन्हें वैक्सीन लगवानी चाहिए.
मिसाल के तौर पर, जैसे वोटिंग के वक्त बूथ एजेंट्स घर-घर से लोगों को वोटिंग के लिए लाते हैं, ठीक उसी तरह से छोटे शहरों और गांवों में पंचायतों और सरकारी मशीनरी को काम करना होगा और लोगों की भ्रांतियां दूर करनी होंगी.
शहरों में वैक्सीन की किल्लत और इसे लेकर सरकारी नेतृत्व में दूरदर्शिता की कमी के चलते देश को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है.
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