Vaccine Cost: कोविड-19 के बढ़ते मामलों से लोग का ध्यान फिर से महामारी की ओर आया है और उन्होंने समझा है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. हालांकि, साल 2021 में अब हमारे पास वैक्सीन के रूप में एक और हथियार है जिससे इस लड़ाई पर जल्दी जीत पाई जा सकती है. लेकिन दिक्कत ये है कि इसकी सप्लाई से जुड़े दिक्कतें जिनके दायरे में ही भविष्य में काम करना होगा.
इसका मतलब ये है कि भारत की बड़ी आबादी देखते हुए पर्याप्त वैक्सीन का उत्पादन और आपूर्ति कम समय में मुहैया कराना आसान नहीं. फिलहाल कोविशील्ड उत्पादन की क्षमता 6-6.5 करोड़ डोज प्रति माह की है. और इसका ज्यादातर हिस्सा भारत सरकार को दिया जा रहा है जिसके जरिए देशभर में इसका वितरण हो रहा है. दूसरी वैक्सीन है भारत बायोटेक की कोवैक्सिन (Covaxin) जिसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूरी मिली है.
उत्पादन और लॉजिस्टिक से जुड़ी अड़चनों के चलते भारत सरकार ने पॉलिसी के जरिए फैसला लिया कि जिनको संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है उन्हें पहले वैक्सीन दी जाए. इसलिए पहला डोज फ्रंटलाइन वर्कर्स को दी गई. इसके बाद सरकार ने पात्रता में रियायत दी और 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को वैक्सीन लगवाने की मंजूरी दी. आगे आने वाले महीनों में भी वैक्सीनेशन के लिए पात्रता में ढील मिल सकती है.
डिमांड बढ़ने के बावजूद वैक्सीन से जुड़ी कई अड़चने हैं. पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि सप्लाई की दिक्कतें होने पर अगर डिमांड अच्छी है तो व्यवसाय ज्यादा से ज्यादा निवेश करेंगे और दिक्कतें घटाने से मुनाफा बढ़ेगा. अब सवाल ये उठता है कि आने वाले हफ्तों में सप्लाई से जुड़ी दिक्कतों का हल कैसे निकलेगा – क्या कंपनियां इसके लिए जरूरी रकम निवेश करेंगी?
बद्किस्मती से भारत में चुनौतियां और भी हैं जहां बाजार में कीमतों को लेकर एक लिमिट तय की जाती है. अगर कोई निजी अस्पताल से भी वैक्सीन लगवाता है को अधिकतम 250 रुपये चार्ज किए जा सकते हैं. इसमें वैक्सीन का खर्च और इसे लगाने के लिए लगने वाला एडमिनिस्ट्रेशन खर्च. कीमतों पर कंट्रोल रखने के पीछे सोच ये है कि सरकारी सेंटर्स पर मुफ्त सुविधाएं होने के बावजूद लोग निजी सेंटर्स से भी किफायती दाम पर वैक्सीन खरीद पाएं.
Vaccine Cost: हालांकि, ये समझना जरूरी है कि दाम को 250 रुपये तय करने से कंपनियों के पास बेहद कम मुनाफा बचता है जिससे वे वैक्सीन प्रोडक्शन और लॉजिस्टिक के लिए ज्यादा खर्च नहीं कर पाते. इसलिए एक तरफ कीमतों पर कैप लगने से ये सुनिश्चित होता है कि लोगों को वैक्सीन के लिए बड़ी रकम ना अदा करनी पड़ी, तो वहीं दूसरी तरफ निजी सेक्टर की क्षमता पर अंकुश लगा रहे हैं. इससे जितना वैक्सीनेशन जरूरी है हम उतना लक्ष्य हासिल करने में पिछड़ सकते हैं.
सरकार क्या पॉलिसी तय करती है उसका कई बार ऐसा असर भी हो सकता है जो चाहा ना गया है. इसके दो हल हैं – या तो सरकार प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए निवेश मुहैया कराए या फिर सेक्टर को रियायतें देकर साहारा दे ताकि निजि निवेशक इस सेक्टर में निवेश कर सकें. दोनों कदम बेहद जरूरी हैं और इनसे भविष्य में महामारी से लड़ने में और आर्थिक रिकवरी में मदद करेगी.
वैक्सीन पॉलिसी के मोर्चे पर सुधार एक ऐसी बात भी दर्शाते हैं जो अकसर चर्चाओं में छूट जाती है. ये इस बात से जुड़ी है कि वैक्सीन का कॉस्ट ग्राहक के लिए सरकार कम कर पाई या नहीं पर साथ ही ये भी वैक्सीनेशन में देरी से लोगों क्या कीमत चुकानी पड़ रही है क्योंकि देरी से महामारी भी ज्यादा लंबे समय तक रहेगी. बेहतर ये होता कि निजी सेक्टर के लिए बाजार को कीमतें तय करने दी जाएं जिससे ये ज्यादा असरदार हो.
भारत सरकार हेल्थकेयर सिस्टम के जरिए मुफ्त में वैक्सीन दे रही है. इसलिए जिसे वैक्सीन पर सब्सिडी की जरूरत है उसे सरकारी संस्थानों की ओर से वैक्सीन मिल जाएगी जबकि प्राइवेट सेक्टर ऐसी प्राइसिंग पर केंद्रित हो जिससे वे मुनाफा कमा सकें और उसे दोबारा निवेश कर सकें.
हमें ये समझना होगा कि हम पिछली स्थिति को देखकर ये आकलन कर सकते हैं लेकिन नीतियां बनाने वालों को जानकारी के अभाव और भविष्य की अनिश्चितता के मद्देनजर काम करना होता है. हमें ये मानना होगा कि भारत में अब तक जिस प्रकार वैक्सीनेशन किया गया है वो सराहनीय है – बड़ी संख्या होने पर कुछ गलतियों होना वाजिब है.
सवाल ये है कि इससे पहले कि देर हो जाए इससे सुधारना होगा. वैक्सीनेशन ही हमारा एक मात्र कारगर हथियार है जिससे मौजूदा महामारी और उससे आई आर्थिक संकट को रोका जा सकता है.
Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.
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