जेटा (Zeta) के रूप में यूनिकॉर्न (unicorn) क्लब में एक और खिलाड़ी शामिल हो गया है. ये देश के युवाओं की बढ़ती कारोबारी महत्वाकांक्षाओं को दिखा रहा है. कोविड-19 की दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचाया है, ऐसे में यूनिकॉर्न्स के ऊपर और ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी आ गई है.
गौरतलब है कि यूनिकॉर्न ऐसे स्टार्टअप्स को कहा जाता है जिनकी वैल्यू 1 अरब डॉलर या उससे ऊपर निकल जाती है.
इन यूनिकॉर्न्स (unicorn) के फाउंडर्स को ऐसी कंपनी खड़ी करनी चाहिए जो कि समाज को और मजबूत करे. इनका मकसद पैसा कमाकर निकलना नहीं होना चाहिए. इन्हें कर्मचारियों का भरोसा हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए और जॉब कट या सैलरी कट की उनकी चिंता दूर करनी चाहिए.
कोविड-19 के चलते पैदा हुई तबादी की बड़ी पारंपरिक कंपनियों पर तगड़ी चोट पड़ी है. इन कंपनियों को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है और इस वजह से कई जगह पर कर्मचारियों को नौकरी से निकाला भी जा रहा है.
भारत जैसे देश में एक विविधता भरा और फलता-फूलता स्टार्टअप ईकोसिस्टम जरूरी है ताकि देश 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना जल्द पूरा कर सके.
कोविड-19 महामारी की इस तबाही में कहीं वित्तीय समावेश दफ्न न हो जाए, इसे सुनिश्चित करने के लिए यूनिकॉर्न्स (unicorn) को एक बड़ी भूमिका निभानी होगी.
आजादी के बाद से ही कुछ लोगों के लिए संपत्ति बनाने की दौड़ में असमानता पैदा हुई है और इससे एक भेदभाव वाली प्रगति देश ने देखी है.
नैस्कॉम और जाइनोव की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में यूनिकॉर्न्स (unicorn) की लिस्ट 2021 में 50 पर पहुंच जाएगी.
इससे देश के स्टार्टअप ईकोसिस्टम पर विदेशी निवेशकों के बने हुए भरोसे का पता चलता है.
लेकिन, स्टार्टअप्स और इनके फाउंडरों को चमक-दमक और शोहरत के चक्कर में फंसकर खुद को मूल मकसद से भटकने से बचाना होगा.
कोविड के बाद के भारत का भाग्य बड़े तौर पर इन यूनिकॉर्न (unicorn) के प्रदर्शन पर टिका होगा.