देश इस वक्त बचत के मूड में है. सेविंग्स को लेकर रुझान इतना जबरदस्त है कि बड़ी तादाद में नौकरियां खत्म होने, सैलरी कटने और आमदनी कम होने के बावजूद लोग बचत कर रह हैं. लोगों की कमाई घटने का अंदाजा 2020-21 के लिए इनकम टैक्स कलेक्शन के आंकड़ों से भी मिल रहा है.
SBI की एक रिपोर्ट से पता चल रहा है कि बैंक में डिपॉजिट्स 2020-21 के दौरान बढ़कर 2.9 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए हैं. 1 अप्रैल से 7 मई के दौरान जब पूरा देश कोविड की दूसरी लहर से बेहाल था उस दौरान भी इन डिपॉजिट्स में 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का इजाफा हुआ है.
ये सब ऐसे वक्त पर हुआ है जबकि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए लॉन्ग-टर्म फंड्स की तलाश में है. देश में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट से न केवल आर्थिक संपत्ति तैयार होगी, बल्कि इससे बड़ी तादाद में रोजगार भी पैदा होंगे.
ऐसे में शायद ये सही वक्त है जबक सरकार को सुरक्षित ठिकानों में निवेश पर लोगों के जोर देखते हुए Fixed और गारंटीड रिटर्न साधन उतारने चाहिए. इनमें इतना ब्याज मिलना चाहिए जो कि लोगों को महंगाई के मुकाबले उन्हें फायदा दे सके.
आदर्श तौर पर ये साधन टैक्स फ्री होने चाहिए और इनमें निवेश की कोई ऊपरी सीमा नहीं होनी चाहिए. 2003 में रिजर्व बैंक के लाए इंस्ट्रूमेंट्स के मुताबिक, इन पर ब्याज अर्धवार्षिक रूप से दिया जा सकता है. साथ ही इनका मैच्योरिटी टेन्योर भी 6 साल हो सकता है.
भारतीय FD में काफी पैसा लगाते हैं और ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स महामारी के दौरान हुई बचत का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर सकते हैं.
18 साल पहले RBI के लाए गए इंस्ट्रूमेंट्स के मुताबिक, न्यूनतम निवेश 1,000 रुपये है और इसके बाद इतने ही गुणांक में इसे आगे बढ़ाया जा सकता है. इन इंस्ट्रूमेंट्स पर 8% रिटर्न मिल रहा है.
हालांकि, गिरते ब्याज दर की व्यवस्था में किसी भी मौजूदा इंस्ट्रूमेंट पर 7% या उसके करीब ब्याज मिल रहा है. 8% ब्याज वाले सेविंग्स (टैक्सेबल) बॉन्ड्स ट्रांसफर नहीं किए जा सकते थे और न ही इन्हें सेकेंडरी मार्केट में खरीदा-बेचा जा सकता था. साथ ही इन्हें लोन के लिए गिरवी भी नहीं रखा जा सकता था.