प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी वापस लेते हुए ऐलान किया है कि अब केंद्र मुफ्त में राज्यों को टीका देगा. लेकिन राज्यों के लिए ये सुस्ताने का वक्त नहीं है. ये समय है तीसरी लहर के लिए कमर कसने का.
दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल, ओडिशा, झारखंड समेत ज्यादातर राज्यों ने मुफ्त वैक्सीनेशन के लिए करोड़ों रुपये का फंड अलग रखा था. इन राज्यों को चाहिए कि इस फंड को अब स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने में लगाया जाए.
तीसरी लहर में संक्रमण के मामलों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. राज्य को तैयारी में पूरी शक्ति झोंकनी चाहिए क्योंकि संकट कभी भी आ सकता है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. यानी, 150 रुपये प्रति डोज के खर्च के हिसाब से इस रकम के जरिए करीब 233 करोड़ डोज खरीदे जा सकते हैं – जो भारत के वयस्कों के टीकाकरण के लिए काफी होगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 3 मई तक इसमें से केवल 8.5 फीसदी (2,993 करोड़ रुपये) रकम का इस्तेमाल हुआ था.
1 मई से भारत में टीकाकरण का तीसरा चरण शुरू हुआ जिसमें राज्यों ने वैक्सीन उत्पादकों से सीधे खरीदारी शुरू की. कई राज्यो ने 18 से 45 वर्ष के लिए मुफ्त टीका लगाने का ऐलान किया और 45 वर्ष के ऊपर के लोगों के लिए केंद्र की ओर से फ्री वैक्सीन सुविधा जारी रही.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुफ्त वैक्सीनेशन का ऐलान करते हुए 3,000 करोड़ रुपये के खर्च का आकलन लगाया था. वहीं, तेंलगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने टीकाकरण पर 2,500 करोड़ रुपये के खर्च की जानकारी दी थी.
दिल्ली सरकार ने बजट में वैक्सीनेशन के लिए 50 करोड़ रुपये का आवंटन किया था तो वहीं असम सरकार ने असम आरोग्य निधी में 119 करोड़ रुपये वैक्सीन खरीदारी के लिए जमा किए थे.
इस करोड़ों रुपये के रिजर्व को अब हेल्थ इंफ्रा को मजबूत करने में लगाना होगा.
लिक्विड ऑक्सीजन की मांग हो या फिर अस्पतालों में बेड की, तीसरी लहर में इन सभी स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत कई गुना बढ़ सकती है.
कोरोना को लेकर आई ढिलाई ही एक वजह रही कि दूसरी लहर ने इतना विकराल रूप ले लिया कि पहल लहर से चार गुना ज्यादा मामले दर्ज किए जाने लगे. पहली लहर के समय जहां 97 हजार पीक था वहीं, दूसरी लहर के पीक में एक दिन में मरीजों की संख्या 4 लाख को भी छू चुकी थी.
अगला संकट कितना बड़ा होगा इसका अंदाजा मुश्किल है, लेकिन तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए. ये कहना गलत नहीं कि दूसरी लहर के लिए तैयारी हर स्तर पर अधूरी थी.
राज्यों को अब इस मोर्चे पर फ्रंटफुट पर आकर तेजी से काम करना होगा. ये ना देखें कि दूसरी लहर जा रही है, ये सोचें, कि आगे के संकट के लिए हेल्थ इंफ्रा तैयार है या नहीं.
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