जब भी कोई अच्छा काम या बढ़िया प्रदर्शन करता है तो उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. जीवन के अलग-अलग चरणों में इन इनसेंटिव्स या प्रोत्साहनों का तरीका अलग-अलग हो सकता है.
स्कूल में भरी क्लास में शिक्षक की ओर से मिलने वाली शाबाशी ताउम्र याद रहती है. जंग के मैदान से लौटने वाले योद्धा के लिए एक मेडल उसके लिए हमेशा गर्व का विषय रहता है.
भारत के इंडीविजुअल टैक्सपेयर भी एक ऐसे ही मोड़ पर हैं जहां उन्हें उनकी ईमानदारी का इनाम मिलना चाहिए. साथ ही उन्हें उनके इस काम की पहचान मिलनी चाहिए.
गुजरे 12 वर्षों में पहली दफा इनकम टैक्स कलेक्शन वित्त वर्ष 2020-21 में कंपनियों की ओर मिलने वाले टैक्स से ज्यादा रहा है. इंडीविजुअल्स और हिंदू अविभाजित परिवारों ने टैक्स के तौर पर 4.69 लाख करोड़ रुपये सरकारी खजाने में इस दौरान दिए हैं. दूसरी ओर, कंपनियों की ओर से 4.57 लाख करोड़ रुपये सरकार को मिले हैं. इस तरह से इंडीविजुअल टैक्सपेयर्स ने कंपनियों के मुकाबले सरकारी खजाने में 12,000 करोड़ रुपये ज्यादा दिए हैं.
इसकी एक वजह महामारी हो सकती है. कोविड महामारी की वजह से कंपनियों के कारोबार और आम लोगों की नौकरियों और सैलरी दोनों पर बुरा असर पड़ा है.
लेकिन, कॉरपोरेट टैक्स के बेस को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी किया जाना इसकी ज्यादा बड़ी वजह लग रही है. खैर, जो भी कारण हो, सरकार के लिए ये उचित होगा कि वह इंडीविजुअल टैक्सपेयर्स को इसके लिए इनाम दे जिन्होंने इस मुश्किल वक्त में सरकारी खजाने में कंपनियों के मुकाबले ज्यादा पैसा डाला है.
ऐसा तब हुआ है जबकि कई कंपनियों ने महामारी के दौरान लागत घटाकर जबरदस्त मुनाफा कमाया है. सरकार को टैक्सपेयर्स को राहत देनी चाहिए और टैक्स का दायरा बढ़ाना चाहिए ताकि उसकी कमाई बढ़ सके. गुजरे कुछ वर्षों में इनकम टैक्स स्लैब्स में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
बल्कि, इस बात में कोई दोराय नहीं है कि ये दौर ही इंडीविजुअल्स का है. स्टॉक मार्केट में देखें तो इसकी तेजी के पीछे भी इंडीविजुअल इनवेस्टर्स ही खड़े नजर आते हैं.
ठीक वैसे ही जैसे इंडीविजुअल टैक्सपेयर्स ने कॉरपोरेट सेक्टर को पीछे छोड़ दिया है, मार्केट्स में भी रिटेल इनवेस्टर्स ने संस्थागत निवेशकों को हटाकर अपना दबदबा कायम कर लिया है.
सरकार को ऐसी ताकतों को प्रोत्साहन देना चाहिए जिनसे इन मार्केट्स के व्यापक होने का रास्ता खुलता हो.
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