कोविड के हालात का स्वतः संज्ञान लेने के लिए आपका शुक्रिया, योर ऑनर!

सुपरपावर बनने की हुंकार भरने वाला राष्ट्र ऐसे हालात में लापरवाह कैसे हो सकता है जब देश ऑक्सीजन, दवाओं और मेडिकल इंफ्रा की कमी से जूझ रहा हो.

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ये साबित कर दिया है कि वह एक मूक दर्शक नहीं रहेगा. जो लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं उनकी उनके कामों के लिए या उदासीनता के लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए. कोविड-19 (COVID-19) से भारत के हालात अब इतने बिगड़ गए हैं कि इसे एक ‘राष्ट्रीय आपात स्थिति’ कहा जा सकता है.

अल्बर्ट आइंस्टाइन का अहम संदेश कि “हर संकट में एक बड़ा अवसर छिपा होता है”, इस लापरवाही में दफ्न कर दिया गया है. स महामारी ने भविष्य के लिहाज से एक मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम तैयार करने का मौका पैदा किया था, लेकिन इसे लापरवाही, गलत योजनाओं और प्राथमिकताएं तय करने में खराब फैसलों के चलते गंवा दिया गया. केंद्र को तो सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना ही है, लेकिन राज्यों को भी अपनी करतूतों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

इस महामारी का दूसरा साल शुरू हो गया है. ऐसे में ‘आत्मनिर्भर’ और सुपरपावर बनने की हुंकार भरने वाला राष्ट्र उस वक्त लापरवाही में कैसे सोता हुआ रह सकता है जबकि देश ऑक्सीजन से लेकर जीवन बचाने वाली दवाओं और मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझ रहा हो.

सप्लाई चेन को दुरुस्त रखने में किसी विज्ञान की जरूरत नहीं होती है. एक एमबीए किया हुआ शख्स भी आसानी से मांग और आपूर्ति के हिसाब से इनके कामकाज का मॉडल रातोंरात तैयार कर सकता है. अगर कुछ IIT के पढ़े लोग और लगा दिए जाएं तो मांग का और सटीक अनुमान लगाया जा सकता है.

वोटों के लिए बिना मास्क के रैली कर रहे नेता कैसे इतना वक्त नहीं निकाल सके कि वे इस काम को पढ़े-लिखे, अनुभवी मेडिकल प्रेक्टिशनर्स और ऑपरेशंस मैनेजरों के हवाले कर पाते?

नेताओं को अपनी उदासीनता से बाहर निकलना होगा. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकों के हितों के लिए स्वतः संज्ञान लिया है. कोविड-19 हमारे बीच रहने वाला है और इस वायरस से निपटने में लापरवाही विकल्प नहीं हो सकता है. वैक्सीन में अग्रणी होने का ढोल पीटना अलग बात है, लेकिन एक जरूरी तंत्र खड़ा करना बिलकुल अलग चीज है. हालांकि, हमारे वैज्ञानिकों की पूरी तारीफ होनी चाहिए, लेकिन, राजनीतिक इच्छाशक्ति के सही जगह इस्तेमाल न होने का भारत को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.

अगर नेताओं ने स्वतः संज्ञान लेकर लोगों के हितों में काम किया होता और उन्हें केवल एक वोटर के तौर पर न देखा होता तो शायद आज देश इस बड़े पैमाने की तबाही से न जूझ रहा होता. एक राष्ट्रीय प्लान बनाना चाहिए ताकि देश को रोशनी और बेहद जरूरी ऑक्सीजन मिल सके.

Published - April 23, 2021, 07:40 IST