दुनिया से होने वाले हमारे व्यापार का 90 परसेंट हिस्सा समुद्र के रास्ते ही होता है. समुद्री रास्ते में सबसे अहम रास्ता सुएज कैनाल से होकर गुजरता है. इसी रास्ते से हमारा सालाना 200 अरब डॉलर का व्यापार होता है. और वो रास्ता फिलहाल बंद है. सुएज कैनाल (Suez Canal) करीब 200 किलोमीटर लंबी है लेकिन सिर्फ 200 मीटर चौड़ी है. मंगलवार को यहां करीब 60 मीटर चौड़ा और 400 मीटर लंबा जहाज अटक गया. वो भी आड़े-तीरछे. सीघे अटकता तो शायद ट्रैफिक जाम ना होता. लेकिन 400 मीटर लंबे जहाज ने यहां अटककर दुनिया की अर्थव्यवस्था की मुंश्किलें बढ़ा दी हैं.
करीब 150 साल पहले बनी इस कैनाल (Suez Canal) के जरिए पूरी दुनिया का 13 परसेंट व्यापार इसी रास्ते से होता है. यूरोप और एशिया के बीच की दूरी को यह रास्ता करीब 3,000 मील तक कम कर देता है. पिछले 150 साल में सिर्फ 5 मौके ही ऐसी आए हैं जब इस कैनाल को बंद करना पड़ा है, वो भी युद्ध जैसे असाधारण हालात में.
1956 में इसके कुछ दिनों के लिए बंद होने के बाद उस समय ब्रिटेन में यह बात उठी कि सुएज क्राइसिस उसके खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है. 1967 में यह 8 सालों तक बंद रहा था. उसी आठ साल के दौरान दुनिया को ऑयल शॉक लगा था. अब उसी रास्ते पर ट्रैफिक जाम है.
दुनिया की सारी शिपिंग कंपनियों को सुएज कैनाल (Suez Canal) के बारे में सालों से पता होगा, इसके महत्व के बारे में भी. फिर भी ऐसी शिप बनाई जिससे ट्रैफिक जाम की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसको क्या कहेंगे- अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए स्केल अप करते रहना, परिणाम चाहे कुछ भी हो.
अब मुसीबत सामने है. संभव है कि ट्रैफिक जाम को जल्दी से ठीक कर लिया जाए. ऐसे में हम मामूली खरोंच के साथ ही बच जाएंगे. लेकिन मामला हफ्तों खिंच गया तो हमें झटके लगेंगे और वो भी वहां जहां ज्यादा दर्द होगा. कुछ पर गौर कीजिए-
1. सुएज क्राइसिस से कच्चे तेल की कीमत में तेजी होती है तो ये काफी भारी पड़ेगा. पेट्रोल-डीजल की कीमत अपने देश में रिकॉर्ड ऊँचाई पर है. और भी ज्यादा बोझ कंज्यूमर उठा पाएंगे क्या?
2. कोरोना संकट के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि ग्लोबल ट्रेड में रिकॉर्ड तेजी होगी. भारत को भी इससे बड़े फायदों का अनुमान लगाया जा रहा है. सुएज क्राइसिस ग्लोबल ट्रेड का स्पीडब्रेकर है. याद रहे कि एक्सपोर्ट से जुड़े हमारे इंडस्ट्रीज काफी रोजगार पैदा करते हैं. उनकी मुश्किलें बढ़ी तो रोजगार के मौके और कम होंगे. कोरोना के बाद अब ये. इसे पचाने की गुंजाइश बची है क्या?
3. इस ट्रैफिक जाम की वजह से आशंका है कि कमोडिटी की कीमतें बढ़ेंगी और समुद्री ढ़ुलाई भी महंगा होगा. इसकी वजह से हमारा इंपोर्ट महंगा होगा जिसका असर महंगाई दर पर पड़ेगा. आर्थिक रिकवरी के समय महंगाई का खतरा तो करेला और वो भी नीम चढ़ा जैसा होता है.
सारे एस्कपर्ट्स कह रहे हैं कि यह संकट कुछ ही दिनों का है. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा. उम्मीद करें कि ऐसा ही हो. झटकों ने हमारी अर्थव्यवस्था की ऐसी कमर तोड़ी है कि और पचाने का साहस नहीं बचा है.
Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.
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