पुरानी कहावत है, बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी. कुछ ऐसा ही हाल छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes- SSS) का भी है. अगले महीने के आखिर तक इन योजनाओं पर जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए ब्याज दर का फैसला होना है, लेकिन संकेत यही हैं कि इनमें कटौती होगी.
आखिरकार ब्याज दरों में कटौती की ‘भूलवश की गई कार्रवाई’ वास्तविकता के धरातल पर आधारित थी और बकायदा ‘सक्षम अधिकारी’ की मंजूरी के बाद ही ये आदेश जारी किया गया था.
स्मॉल सेविंग्स की दरें घटाने का क्या था फैसला?
दरअसल, 31 मार्च को देर शाम वित्त मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर जानकारी दी थी कि 1 अप्रैल से शुरू होने वाली तिमाही यानी अप्रैल-जून के लिए 12 किस्म की छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes)पर ब्याज दरों में 0.4 से लेकर 1.1 फीसदी तक की कटौती की गई है.
इस आदेश को जारी हुए 12 घंटे ही हुए थे कि नया आदेश आ गया कि ब्याज दरें 31 मार्च के स्तर पर बनी रहेंगी. कटौती का आदेश वापस लिया जा रहा है. यह भी कहा गया कि कटौती का आदेश ‘भूलवश’ जारी हो गया था.
बेहद लोकप्रिय हैं ये योजनाएं
आपको बता दें कि 12 छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes) में पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF), नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC), सुकन्या समृद्धि योजना, डाकघर की मासिक बचत योजनाएं, डाकघर में खोला जाने वाला बचत खाता और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष योजनाएं खासतौर पर लोकप्रिय हैं.
आम तौर पर इन योजनाओं के लिए आपको डाकघर जाना होता है, लेकिन PPF और सुकन्या जैसी योजनाओं की सुविधा आपको बैंक भी देते हैं.
2016 से हर तिमाही बदलती हैं दरें
यहां यह जानना जरूरी है कि 2016 से रिजर्व बैंक (RBI) की पूर्व डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ समिति की सिफारिशों के आधार पर इन स्कीमों (small savings schemes) में तीन-तीन महीने के लिए ब्याज दरें तय होती हैं.
इन्हें तय करने में समान अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज दर को आधार बनाया जाता है.
हालांकि, बुजुर्गों के लिए विशेष स्कीम्स पर अतिरिक्त ब्याज दिया जाता है. तकनीकी तौर पर यही व्यवस्था है, लेकिन व्यावहारिक पहलू कई बार तकनीकी पहलू पर हावी दिखाई देते हैं. 1 अप्रैल को वित्त मंत्रालय का फैसला कुछ इसी बात का इशारा करता है.
चुनावों के फेर में फंस गया था रेट कट का फैसला
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों के बीच छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes) पर ब्याज दर घटाने का फैसला राजनीतिक तौर पर काफी नुकसान पहुंचाने वाला था.
खासतौर पर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां बचत का खासा महत्व है. छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes) के जरिए जुटाई सकल रकम के मामले में यह राज्य 15 फीसदी (2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक, उसके बाद के वर्षों के लिए राज्यवार आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं) हिस्सेदारी के साथ अव्वल है.
पश्चिम बंगाल के साथ तमिलनाडु, केरल और असम को भी जोड़ दें तो देशभर में जुटाई जाने वाली सकल रकम का करीब 24 फीसदी इन्हीं चार राज्यों से आता है.
जाहिर है राजनीतिक तौर पर फैसले को पलटे जाने की जरूरत थी और केंद्र सरकार ने ऐसा ही किया. यह अलग बात है कि इससे कोई राजनीतिक फायदा होने के संकेत नहीं मिलते.
क्या कहते हैं आर्थिक हालात?
अब इस बात को समझिए कि केंद्र को चालू कारोबारी वर्ष के दौरान 12 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की भारी-भरकम रकम बाजार से उधार लेनी है.
ऐसे में सरकार की कोशिश होगी कि इसके लिए ब्याज की दर कम हो. रिजर्व बैंक भी बीते कुछ समय से लगातार कोशिश में है कि सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज की दर कम रहे. इसीलिए वो भी चाहता है कि छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर को कम रखा जाए.
इस बीच, वाणिज्यिक बैंकों की शिकायत है कि चूंकि वो कर्ज सस्ता दे रहे हैं, लिहाजा जमा पर ब्याज दर को कम रखना उनकी मजबूरी है. ऐसे में सरकारी छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes) की तरफ लोगों का रुझान बढ़ना लाजिमी है.
बैंकों की मानें तो यह उनके लिए अच्छी स्थिति नहीं है, क्योंकि उनके पास कर्ज देने के लिए सीमित संसाधन होंगे.
नामुमकिन है ब्याज दरों में कटौती रोकना
दूसरी ओर बीते कुछ समय से सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज दर में कुछ कमी ही देखने को मिली है. इन सबके ऊपर खास बात ये है कि अभी किसी तरह के चुनाव की मजबूरी भी नहीं है. लिहाजा, छोटी बचत योजनाएं (small savings schemes) इस बार ब्याज कटौती से बच जाएं इसकी गुंजाइश नहीं दिखती.
हां, एक बात जरूर याद रखनी चाहिए, महामारी के दौर में जहां लोग ज्यादा से ज्यादा बचत करना चाहते हैं, उस वक्त छोटी बचत योजनाओं (small savings schemes) पर ब्याज दर में कमी से बेहद नकारात्मक प्रतिक्रिया पैदा होगी.
आम लोगों के लिए अभी भी है ये बढ़िया निवेश
फिलहाल, मान लीजिए 1 जुलाई से इन स्कीमों पर (small savings schemes) ब्याज दर घट भी जाती है तो भी आपके लिए 30 जून तक जमा रकम पर पुरानी दर से ही ब्याज मिलेगा.
चूंकि, नया वित्त वर्ष भी शुरू हो गया है तो आपके लिए टैक्स बचाने के लिए ऊंची ब्याज दर पर बचत करने के लिए 1 महीने से कुछ ज्यादा का ही समय बचा है.
इस बात में दोराय नहीं है कि महामारी के इस दौर में तमाम लोगों की जेब खाली हो चुकी है, लेकिन जिनके पास कुछ अतिरिक्त नकदी बची है, वो इस पैसे को इन योजनाओं (small savings schemes) में लगाने पर विचार कर सकते हैं.
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