रिकॉर्ड तेजी के बाद शेयर बाजार (Share Bazaar) में थोड़ी प्रॉफिट बुकिंग- ये तो नॉर्मल है और हेल्दी भी. लेकिन क्या पिछले हफ्ते की गिरावट को रुटीन माना जाए? संभव है कि नकदी की बाढ़ में फिर से सबकुछ चंगा हो जाए, लेकिन जिन वजहों से शेयर बाजार (Stock Market) डरा हुआ है वो काफी सीरियस हैं. बाजार टेपर टेंट्रम से डरा हुआ है. टेपर टेंट्रम को आसान शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि बाजार को डर है कि नकदी का जो नल खुला हुआ है वो सूखने वाला है, जैसा 2013 में हुआ था.
2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका के सेंट्रल बैंक ने नकदी का नल खोल दिया था, जिसे 2013 में बंद करने की शुरुआत की गई. नकदी के नशे में झूम रहे बाजार पर इसके बाद विड्रॉवल सिम्पटम्स हावी होने लगे और गिरावट शुरू हो गई.
कोरोना संकट के बाद अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने एक बार फिर से अपार नकदी का नल खोल दिया था. फिलहाल, वहां हर महीने सिस्टम में कम से कम 120 अरब डॉलर डाले जा रहे हैं. डॉलर की ऐसी बाढ़ आई हुई है कि स्टील, कॉपर, चांदी, सोना, कच्चा तेल, क्रिप्टोकरेंसी, शेयर बाजार- इन सारे एसेट क्लास में तेजी को देखकर लगता है कि फिर खरीदने का मौका नहीं मिलने वाला.
लेकिन पिछले दो हफ्ते से अमेरिका का बॉन्ड बाजार चीख-चीखकर संकेत दे रहा है कि ब्याज दर बढ़ने वाली है क्योंकि महंगाई रुकने का नाम नहीं ले रही. बॉन्ड बाजार का संकेत अगर सही है तो नकदी का नल सच में सूखने ही वाला है और शेयर बाजार (Share Bazaar) की पार्टी पर ब्रेक लग सकता है.
शेयर बाजार की तेजी पर ब्रेक से सेंटिमेंट तो खराब होगा ही, सरकार के भारी भरकम विनिवेश लक्ष्य को पूरा करना भी मुश्किल हो सकता है. आर्थिक रिकवरी के लिए ये बड़ा झटका होगा.
रिकवरी को झटके का दूसरा बड़ा सोर्स है अपने देश में महंगाई में तेजी से बढ़ोतरी का डर. दो आंकड़े तो बिल्कुल डरा रहे हैं. ट्रक से माल ढ़ुलाई पिछले डेढ़ महीने में ही 12-13 परसेंट महंगी हो गई है. और फरवरी के महीने में ही डीजल-पेट्रोल करीब 5 परसेंट महंगा हो गया है. ये दोनों डराने वाले आंकड़े हैं जो आने वाली महंगाई की चेतावनी दे रहे हैं. जरा सोचिए. सिस्टम में मांग की कमी तो है ही और उस पर से महंगाई बढ़ने की आशंका. इसी को कहते हैं करेला और वो भी नीम चढ़ा हुआ.
कंज्यूमरों की तरफ से मांग में भी सुस्ती आ रही है, इसके लिए कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए. दिसंबर में टू व्हीलर की बिक्री 8 परसेंट की रफ्तार से बढ़ी थी जो जनवरी में घटकर 7 परसेंट नीचे आ गई. मांग में सुस्ती पैसेंजर व्हीकल के मामले में भी दिख रही है. जनवरी में गाड़ियों की कीमतें बढ़ीं और इसी साल टायर भी महंगा हुआ है और पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) की कीमत में रिकॉर्ड तोड़ तेजी तो है ही. ऐसे में लगता है कि ऑटो सेक्टर में मांग में सुस्ती आगे भी जारी रह सकती है.
कहने का मतलब ये है कि वो सारी दिक्कतें- रोजगार के मौके में लगातार कमी और मांग में सुस्ती- जो अर्थव्यवस्था में कोरोना से पहले भी थी वो फिर से वापस दिखने लगी है. और उस पर से ऐसे समय में महंगाई बढ़ने की आशंका भी सताने लगी है. उम्मीद कीजिए कि महंगाई की आशंका के साथ मांग में सुस्ती ना हो. नहीं तो शेयर मार्केट (Share Bazaar) बहुत बड़ा झटका भी दे सकता है.
Disclaimer: कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.