पेट्रोल की बढ़ती कीमतें इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं

पेट्रोल की बढ़ती कीमतें इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ा सकती हैं. इस महीने कुछ राज्यों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये तक पहुंच गए थे.

  • Team Money9
  • Updated Date - February 28, 2021, 05:50 IST
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PTI

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क्या पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles) की बिक्री में इजाफा कर सकती हैं. अगर इस महीने की बात करें तो शुरुआत में ही कुछ राज्यों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए थे. दिल्‍ली में 16 फरवरी को पेट्रोल की कीमत 89.29 रुपये प्रति लीटर तक थी. पेट्रोल के दाम बढ़ने के पीछे कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें आंशिक रूप से जिम्‍मेदार हैं. जनवरी में भारतीय कच्चे तेल के मिश्रण की लागत 54.79 डॉलर प्रति बैरल थी. यह अप्रैल के दामों की तुलना में करीब 19.90 डालर से अधिक है. लेकिन दिल्ली में अप्रैल में पेट्रोल की कीमत 69.59 रुपये प्रति लीटर थी. जबकि देखें तो फरवरी वर्ष 2014 में भारतीय कच्‍चे तेल का एक बैरल 106.19 डालर का था. अगर मौजूदा समय से तुलना करें तो यह दो गुना तक ज्‍यादा था. लेकिन उस समय दिल्‍ली में पेट्रोल की कीमत 72.43 रुपये प्रति लीटर थी. मौजूदा ईंधन मूल्य इसमें लगे टैक्‍सों की वजह से है. ईंधन पर उत्‍पाद शुल्‍क और वैट काफी ज्‍यादा है. जिससे इसकी कीमतें बढ़ती जा रही हैं.

ईंधन की बढ़ती कीमतें अब इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles) की तरफ लोगों को ले जा रही हैं. लोग भी अब इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles) को खरीदने के बारे में ज्‍यादा विचार करने लगे हैं. हालांकि ईवी (Electric Vehicles) की कीमतें पारंपरिक कारों की तुलना में ज्‍यादा हैं. हालांकि ईवी को चलाने पर पेट्रोल वाली कारों की तुलना में इसकी मेंटीनेंस कास्‍ट काफी कम होती है. महिंद्रा एंड महिंद्रा के मुताबिक, उनकी ई-वेरिटो कार में 18 यूनिट बिजली की खपत होती है और वह फुल चार्ज पर 110 किमी तक जा सकती है. यानी दिल्‍ली में बिजली की कीमत के हिसाब से यह 8 रुपये प्रति यूनिट की शीर्ष दर पर इसकी प्रति किमी की लागत 1.30 रुपये आएगी.

जबकि इसकी तुलना में पेट्रोल और डीजल वाली कारों की लागत 4.43 रुपये प्रति किलोमीटर तक आएगी. शहर की ड्राइविंग परिस्थितियों में कार 18 किमी प्रतिलीटर तक का ही माइलेज दे पाती हैं. कार की कीमत लगभग 7.50 लाख रुपये तक है. जबकि इसकी तुलना में एक इलेक्ट्रिक कार का बेस प्राइस करीब 10 लाख रुपये तक है. अगर किसी को दिल्‍ली के बाहर ट्रैवल नहीं करना है, सिर्फ शहर में ही चलना हो तो इलेक्ट्रिक कार एक अच्‍छा विकल्‍प होगा.

सरकार की योजनाएं और नीतियां इलेक्ट्रिक वाहनों को ज्‍यादा सपोर्ट कर रहे हैं. फ्रांस के मुताबिक, साल 2040 से केवल इलेक्ट्रिक कारों को अनुमति दी जाएगी. ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन के मुताबिक, ब्रिटेन में साल 2030 तक सभी कारें इलेक्ट्रिक होंगी. नॉर्वे का इरादा अगले पांच सालों में वहां तक पहुंचने का है. 17 फरवरी को फोर्ड की यूरोपीय कार डिवीजन ने कहा कि वह साल 2030 के बाद केवल इलेक्ट्रिक कारों का ही उत्पादन करेगी. टाटागर्स के स्वामित्व वाली जगुआर लैंड रोवर कंपनी भी साल 2025 से केवल इलेक्ट्रिक कारों को ही रोल करने की इच्छा रखती है. बीते जनवरी माह में जनरल इलेक्ट्रिक ने कहा कि साल 2035 से वह भी इलेक्ट्रिक कारों का ज्‍यादा उत्‍पादन करेगी. इधर वोक्सवैगन ने डिजिटलीकरण और बैटरी पावर में सुधार के लिए 88 बिलियन डॉलर का निवेश किया है.

भारत सरकार ग्रीनहाउस गैस के शमन पर जोर दे रही है. भारत ने देश के 2030 कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 2005 के स्तर के 33-35 प्रतिशत तक कम करने की पेशकश की है. साल 2017 में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऑटोमोबाइल उद्योग को यह घोषणा करके झटका दिया था कि भारत 2030 से पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर चला जाएगा. 2015 में, सरकार ने FAME को अपने जोड़ो के संकलन में शामिल किया. यह हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने के लिए एक कार्यक्रम है. मार्च 2019 में दूसरे चरण में 7,000 बसों, डेढ़ लाख रिक्शा, 55,000 कारों और एक मिलियन मोटर बाइक और स्कूटर सहित ईवी की मांग तेज करने के लिए अगले तीन सालों में 10,000 करोड़ का बजट रखा गया है.

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने 25 फरवरी को 2,000 कारों के पूरे बेड़े को छह महीने के भीतर ईवीएस में बदलने की घोषणा की थी. ईवीएस को जलवायु परिवर्तन से बहुत कम फर्क पड़ेगा यदि वे केवल समग्र उत्सर्जन किए बिना प्रदूषण की घटनाओं को स्थानांतरित कर देते हैं. भारत में कोयले का बड़ा भंडार है और इसके अधिकांश बिजली संयंत्र कोयला आधारित हैं. इस तरह की बिजली के साथ कारों को चार्ज करना ग्‍लोबल-वार्मिंग की दर को धीमा करने के लिए बहुत कम है.

भारत कार्बन टैक्स लगाकर और कार्बन भत्ते के लिए एक बाजार बनाकर कोयला बिजली जनरेटर को चरणबद्ध कर सकता है. इसे साल 2030 तक अन्‍य स्रोतों से 40 प्रतिशत बिजली क्षमता स्थापित करने की अपनी प्रतिबद्धता को तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए. इसके साथ ही, इसे बुनियादी ढांचे को चार्ज करने में बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा.

यह संभावना नहीं है कि दुनिया का अधिकांश भाग अगले दशक के मध्य से पहले पूरी तरह से ईवी में बदल जाएगा. अंतरिम में भारत गन्ने या फसल अवशेषों से उत्पन्न इथेनॉल जैसे जैव-ईंधनों के उपयोग का पता लगा सकता है. इथेनॉल पेट्रोल की तुलना में सीओ 2 उत्सर्जन में 90 प्रतिशत तक की कटौती कर सकता है. ब्राजील में, पेट्रोल में औसत इथेनॉल सम्मिश्रण 48 प्रतिशत है जबकि भारत में छह प्रतिशत है. यह हालांकि एक अनिवार्य सम्मिश्रण नीति है जो 27 प्रतिशत से कम इथेनॉल सामग्री और पेट्रोल पर कार्बन कर के साथ पेट्रोल की बिक्री पर प्रतिबंध लगाती है. जो इथेनॉल या मिश्रित ईंधन पर नहीं लगाया जाता है.

डीजल में भी 12 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण है. लेकिन भारत को गन्ने के उत्पादन पर सब्सिडी नहीं देनी चाहिए. महाराष्ट्र जैसे राज्य, जिनमें से बड़े हिस्से में पानी की कमी है, उन्हें भूजल खींचकर इसे विकसित नहीं करना चाहिए. इथेनॉल सम्मिश्रण न केवल उत्तर भारत के अत्यधिक प्रदूषित शहरों में उत्सर्जन को कम करेगा, यह चीनी उत्पादन में कटौती करके किसानों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत भी प्रदान कर सकता है जो कि विश्व बाजारों में लाभप्रद रूप से बेचा नहीं जा सकता है.

(कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)

Published - February 28, 2021, 01:25 IST