स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के आने से पहले तक सरकारों और पावर फाइनेंस के गलियारों में उचित मुनाफा चर्चा का एक अहम बिंदु होता था. इसका मतलब होता था कि लगाई गई पूंजी पर इस दर से रिटर्न मिले जो कि सरकार द्वारा तय की गई सीमा के मुताबिक न्यायसंगत हो.
उचित रिटर्न का कॉन्सेप्ट मौजूदा कोविड महामारी के दौर में फिर से जिंदा किया जा सकता है. इस महामारी ने भारत समेत दुनियाभर में तबाही मचा दी है.
कोविड संक्रमण की वजह से आपातकालीन हॉस्पिटलाइजेशन की जरूरत पड़ती है. इसके साथ ही दवाइयों, ऑक्सीजन और वैक्सीन की मांग के चलते अफरातफरी के हालात बने हुए है.
इस भयानक परिस्थिति में भी कई फार्मास्युटिकल कंपनियां और हॉस्पिटल तगड़ी कमाई पर उतर आए हैं.
दिग्गज फार्मा कंपनी फाइजर कोविड की वैक्सीन भी बना रही है. कंपनी ने कहा है कि इस साल के पहले तीन महीनों में अकेले वैक्सीन से ही उसने 3.5 अरब डॉलर की कमाई की है. ये रकम कंपनी के कुल रेवेन्यू का तकरीबन एक-चौथाई है.
वैक्सीन कंपनी की कमाई का सबसे बड़ा जरिया साबित हुई है.
रिजर्व बैंक (RBI) की एक स्टडी में कहा गया है कि गुजरे वित्त वर्ष की चारों तिमाहियों में केवल फार्मा सेक्टर ने ही डबल डिजिट ग्रोथ की है.
बिक्री और प्रॉफिट में ऊंची ग्रोथ की उम्मीद किसी भी कारोबार के केंद्र में होती है. लेकिन, जबकि लाखों लोग असहाय हैं और मर रहे हैं, हालात का फायदा उठाना और मुनाफा कमाना उचित नहीं है.
उद्योग जगत का हर सेक्टर मौजूदा हालात में अपने कारोबार की परवाह न करते हुए उदारता से दान कर रहा है. ये सेक्टर मुश्किल हालात में लोगों की हर मुमकिन मदद कर रहे हैं.
दूसरी ओर, ऐसे ही खराब हालात में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों का इनकी ऊंची कीमतें रखना या अस्पतालों का इलाज का खर्च बढ़ा देना सीधे तौर पर लोगों की असहाय स्थिति का दोहन करना है और ये सामाजिक न्याय के सिद्धांत की भी अनदेखी है.
वैक्सीन बनाने वाली फार्मा कंपनियां, कोविड से जुड़ी चीजें बनाने वाली फर्में और हॉस्पिटलों को इस पर गौर करना चाहिए. मुनाफे की बजाय इस वक्त इंसानियत की ज्यादा जरूरत है.