फरवरी में कोई भी चर्चा बिग बी यानि बजट (Budget) पर बात के बिना अधूरी ही रहती है. इस साल जितना मुझे बजट सुनने में मजा आया उतना ही बजट से पहले पेश हुए आर्थिक सर्वे (Economic Survey) को सुनने में भी आया – जो किसी अन्य इकोनॉमिक भाषण से इतर किस्सों, कहानियों और 3 इडियट्स के उदाहरणों से लैस था.
बजट (Budget) पर पहले ही बड़ी बारीकी से चर्चा हो चुकी है और जहां अधिकतर चर्चाएं पॉलिसी, टैक्स और वित्तीय घाटे पर केंद्रित रहती हैं, इस साल मैंने बजट और इकोनॉमिक सर्वे से पैसों से जुड़े महत्तवपूर्ण सिद्धातों को समझा है. जैसे देश का एक बजट होता है वैसे ही हम सभी का अपना एक बजट है – हमारी कमाई और खर्च. इनपर ये सिद्धांत बखूबी फिट बैठते हैं.
सिद्धांत 1 – ग्रोथ से कर्ज चुकाने की संभावना रहती है, इसका उलटा नहीं
देश कर वसूलता है ताकि लोक-कल्याण हो सके, वैसे ही जैसे सूर्य पानी को भाप में बदलकर उसे कई गुना बढ़ाकर बारिश के रूप में लौटाता है – कालीदास के रघुवंशम् से.
कोविड-19 (Covid-19) की स्थिति देखते हुए सरकार को जरूरत है खर्च बढ़ाने की जो बॉरोइंग के जरिए होगा लेकिन ऐसे समय में पहेली ये है कि कम खर्च से ग्रोथ होगी या ग्रोथ से बॉरोइंग चुकाई जा सकेगी? भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पहेली का दूसरा हिस्सा सही है क्योंकि भारत का ग्रोथ रेट हमेशा सरकार द्वारा भरे इंट्रस्ट रेट से ज्यादा रहा है. और ग्रोथ-आधारित बजट (Growth Oriented Budget) इस संदर्भ में सही है. इसी तरह पर्सनल फाइनेंस (Personal Finance) में जब डेट बनाम इनकम की बहस होती है तब ये समझना जरूरी है कि अगर आय हो रही है तो कर्ज लिया जा सकता है लेकिन बिना आय के कर्ज लेने पर और कर्ज ही बढ़ता है.
दूसरा सिद्धांत – काउंटर-साइक्लिकल होने की महत्ता
जैसे ही सरकार फिस्कल एक्सपैंशन का फैसला लेती है वैसे ही इस कदम के ग्रोथ, सोवरेन रेटिंग, बाहर की अनिश्चितता पर पड़ने वाले असर की भी चिंता आती है. आर्थिक सर्वे इस बात को साफ करता है कि फिस्कल पॉलिसी और सरकार को काउंटर-साइक्लिकल होना होगा – यानि तब खर्च बढ़ाए जब इकोनॉमिक साइकल में स्थिरता के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं. इकोनॉमिक बूम के समय की तुलना में फिस्कल मल्टिप्लायर (एक रुपये के खर्च से इकोनॉमी में आई कई गुना बढ़त) किसी आपदा के वक्त ज्यादा होता है. ये ऐसा ही है कि मुसीबत के समय में निवेश करने से ज्यादा वेल्थ क्रिएशन होता है. मार्च 2020 में जिसने निवेश शुरू किया उसकी कमाई जनवरी 2020 में निवेश शुरू करने वाले की तुलना में ज्यादा हुई.
तीसरा सिद्धांत: इमरजेंसी दवा रोज की खुराक नहीं बन जानी चाहिए
स्पेन के दार्शनिक जॉर्ज सांतियाना हमें याद दिलाते हैं कि, “जो अपने इतिहास से नहीं सीखते उन्हें उसे दोहराकर नुकसान झेलना पड़ता है.” आपातकाल की मांग होती है अनूठे फैसलों की, जिसमें कोविड क्राइसिस (Crisis) के समय बैंकों के कर्ज पर निर्भरता और ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के वक्त बैंकों के लिए एसेट रीस्ट्रक्चरिंग (Asset Restructuring) नियमों में राहत शामिल हैं (इन रीस्ट्रक्चर हुए ऐसेट्स को NPA नहीं बताना होगा). कर्जदारों को इन कदम से कुछ समय के लिए राहत मिली, लेकिन ये आगे कई साल भी जारी रहे जिससे काफी नुकसान हुआ जबकि इन्हें तब बंद कर दिया जाना चाहिए था जब इकोनॉमी में सुधार आया. ठीक इसी तरह पर्सनल फाइनेंस (Personal Finance) में भी निवेश को किसी आपत्ती के समय निकाल सकते हैं लेकिन लंबे समय के निवेश को सामान्य दौर में शौक पूरे करने के लिए निकालना बुरी आदत है.
चौथा सिद्धांत: प्रोडक्टिव बनाम नॉन-प्रोडक्टिव खर्च
इस बजट (Budget) में एक बोल्ड कदम ये है कि कैपिटल एक्सपेंडिचर (Capital Expenditure) बढ़ाने पर फोकस है – जो पहले के खपत बढ़ाने के लिए सब्सिडी देने पर खर्च पर होता था वो अब इंफ्रा मजबूत करने के लिए इस्तेमाल होगा. पैसे ऐसे एसेट बनाने पर खर्च होंगे जो लंबे समय तक रहेंगे, इकोनॉमी में नए कंज्यूमर आएंगे और ग्रोथ को बल मिलेगा. रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (Revenue Expenditure) जल्दी और आसान होता है लेकिन ये सिर्फ छोटी अवधि के लिए कारगर है लेकिन कैपिटल एक्सपेंडिचर भले ही छोटी अवधि में तकलीफदेह हो लेकिन लंबे समय में वैल्यू बनाने में मदद मिलती है. पर्सनल फाइनेंस (Personal Finance) में भी अपने लिए कैपिटल एक्सपेंडिचर तय कर उसी पर फोकस करना होगा – ऐसे एसेट पर निवेश जिससे लंबी अवधि में वैल्यू बने और आय बढ़े ना कि मौजूदा खपत के लिए. खुद से सवाल पूछें कि जो पैसे आपने बचाएं हैं उससे कार खरीदने पर खर्च करें जिससे आपके हर महीने के खर्च बढ़ेंगे और वैल्यू भी नहीं बढ़ेगी या फिर पढ़ाई पर जिससे नौकरियों के नए मौके मिलें.
पांचवा सिद्धांत: मेरी दिक्कतें, तो हल भी मेरे.
इस बजट (Budget) से आखिरी और सबसे असरदार सबक ये है कि इकोनॉमिक आधार पर भारत प्रति व्यक्ति आय, आबादी, आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर काफी अलग है और इसकी तुलना प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से 10 गुना बड़ी GDP से नहीं की जा सकती. ना कोविड के खिलाफ उठाए कदम ना ही लॉकडाउन किस तरह लगाया गया, ना ही इकोनॉमी के रिवाइवल के लिए जो कदम उठाए गए – भारत इन सभी पर अन्य देशों से अलग रहा और इसके हल भी अलग ही रहें – ये पश्चिमी देशों जैसे नहीं रहे.
निवेश में भी हम मानते हैं कि पर्सनल फाइनेंस (Personal Finance) में पहले अपने पर फोकस है और निवेश का सही तरीका वही है जो आपके लक्ष्यों और आपकी परिस्थितियों के लिए कारगर हो. दूसरों की देखा-देखी की प्रवृत्ति से बचिए और वो करें जो आपके लिए सही हो.
हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस ऐतिहासिक बजट के सहारे भारत रिकवर करे और नया मुकाम हासिल करे, उसी तरह एडलवाइज म्यूचुअल फंड ये उम्मीद करता है कि आपको अपने बजट प्लान करने के लिए सही दिशा मिले. हम पर विश्वास के लिए शुक्रिया और आपके निवेश की यात्रा जारी रहे.
(लेखिका एडलवाइज एसेट मैनेजमेंट की MD और CEO हैं)
Disclaimer: कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.
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