महामारी और बेरोजगारीः मिलकर लड़नी होगी दोहरी लड़ाई

कंपनियों को फिलहाल सादगी या पैसे बचाने के उपायों को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए. खराब अर्थव्यवस्था कारोबार के लिए भी बुरी होती है.

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रिजर्व बैंक ने बैंकों को ऐसे मामले में नर्म रुख रखने के लिए कहा है.

रिजर्व बैंक ने बैंकों को ऐसे मामले में नर्म रुख रखने के लिए कहा है.

भारत में बेरोजगारी का डबल डिजिट में पहुंचना एक महामारी के वक्त एक और मुसीबत का संकेत दे रहा है. बेरोजगारी का ग्राफ लॉकडाउन लगाए जाने के बाद से ऊपर चढ़ रहा है. इस महामारी की तरह से भारत को बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ भी जंग छेड़नी होगी.

25 अप्रैल से 23 मई 2021 के चार हफ्तों के बीच भारत में बेरोजगारी की दर 7.4% से बढ़कर 14.73% पर पहुंच गई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के आंकड़ों से इस बात का पता चल रहा है. शहरी भारत में 17.41% के साथ हालात  और ज्यादा खराब हैं. 30 दिन के औसत में कोई सुधार नहीं नजर आ रहा है.

पिछले साल लगाए गए पहले लॉकडाउन से बेरोजगारी की दर 26 फीसदी  पर पहुंच गई थी, इसके बाद आर्थिक गतिविधियों में रिकवरी के चलते जुलाई 2020 में ये सिंगल डिजिट पर वापस लौट आई थी. इस साल भी लॉकडाउन ने लोगों की रोजी-रोटी छीन ली है.

हालांकि, इस बार हालात पिछले साल जितने खराब नहीं हैं, लेकिन चिंता और बेचैनी का माहौल है. इस पर अगर तुरंत लगाम नहीं लगाई गई तो पूरी अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है.

लॉकडाउन कारोबार के लिए अच्छे नहीं हैं, लेकिन कंपनियों के आला अधिकारियों को किसी की भी छंटनी करने से पहले दो दफा सोचना चाहिए. बल्कि, अगर जरा भी मुमकिन हो तो उन्हें लोगों को भर्ती करना चाहिए.

कर्मचारियों को स्वास्थ्य वजहों से काम से बार-बार दूर होना पड़ रहा है. ऐसे में अगर अतिरिक्त कैपेसिटी होगी तो इससे कंपनियों को इस मुश्किल वक्त का सामना करने में आसानी होगी.

हालांकि, कई छोटी कंपनियों के लिए भर्तियां करना मुश्किल भरा हो सकता है. यहीं पर बड़ी कंपनियों की भूमिका पैदा होती है. इन कंपनियों को आगे आना चाहिए और जिम्मेदारी उठानी चाहिए.

अपने पास मौजूद लोगों को रोकें, अतिरिक्ति नौकरियां दें और कर्मचारियों को सहूलियतें दें. ये सभी चीजें आगे चलकर अर्थव्यवस्था को ऊपर खींचने में मददगार साबित होंगी. साथ ही ये कर्मचारियों और कंपनियों के बीच भरोसे के रिश्ते को और मजबूत करेगा.

कॉरपोरेट इंडिया के लीडर्स और छोटी और मंझोली कंपनियों (MSME) को ऐसी कंपनियों से सबक लेना चाहिए जिन्होंने इस मुश्किल हालात में भी बड़ा दिल दिखाया है.

बोरोसिल ने कोविड से मरने वाले हर कर्मचारी के परिवार को दो साल की सैलरी देने का फैसला किया है. जेरोधा अपने कर्मचारियों को स्थायी तौर पर अपने होमटाउन से ही काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.

स्विगी और ओयो ने एंप्लॉयीज के लिए हफ्ते में कामकाजी दिन 4 कर दिए हैं ताकि उनके पास ज्यादा वक्त रहे.

कंपनियों को फिलहाल सादगी या पैसे बचाने के उपायों को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए. खराब अर्थव्यवस्था कारोबार के लिए भी बुरी होती है. अच्छे दिनों में कंपनियों को फिर मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा.

फिलहाल कंपनियों को एक बड़ा दिल दिखाना होगा और यही चीज उन्हें आने वाले दिनों में मुनाफे की ओर ले जाएगी.

Published - May 27, 2021, 08:33 IST