भारत वैक्सीन की कमी और वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट की दोहरी मुश्किल से जूझ रहा है. देश को 18-44 आयु वर्ग में आने वालों को निजी वैक्सीन सेंटरों में ऑन-स्पॉट रजिस्ट्रेशन की सुविधा देनी चाहिए. इससे वैक्सीनेशन की मुहिम में तेजी आएगी. डिजिटल डिवाइड एक बड़े अवरोध के तौर पर काम कर रहा है.
डिजिटल डिवाइड यानी तकनीकी रूप से पिछड़ापन या ऐसा तबका जिसकी पहुंच तकनीकी जरियों तक नहीं है और जो इन डिवाइसेज, इंटरनेट और ऑनलाइन सर्विसेज को लेने में अभी कम जागरूक है. इस तबके के लिए वैक्सीनेशन के लिए खुद को ऐप्स या प्लेटफॉर्म्स पर खुद को रजिस्टर्ड करा पाना आसान नहीं है.
ऐसा नहीं है कि समाज का केवल हाशिए पर मौजूद तबका ही इस मुश्किल से जूझ रहा है, पढ़े-लिखे लोगों को भी वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्टर करने में दिक्कतें पेश आ रही हैं.
हालांकि, देश में स्मार्टफोन की पहुंच अब हर जगह है और दूर-दराज के इलाके, गांव और छोटे शहर-कस्बे भी अब इससे अछूते नहीं हैं. लेकिन, आबादी का एक बड़ा तबका इसके फायदों को अभी भी नहीं उठा पा रहा है.
अब देश के हर नागरिक को इस वैक्सीनेशन मुहिम से जोड़ने की सरकार की जिम्मेदारी है. तकनीकी जागरूकता के अभाव से कोई भी शख्स वैक्सीन से वंचित नहीं रहना चाहिए.
सरकार को इस वक्त इन तमाम खामियों को दूर करना होगा और जरूरत पड़ने पर देश के हर नागरिक को वैक्सीन मुहैया कराने के लिए वित्तीय मदद भी मुहैया करानी होगी.
अगर सरकार इस साल के अंत तक हर नागरिक को वैक्सीन लगाने का टारगेट लेकर चल रही है तो उसे अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव करना होगा. सरकार की मौजूदा रणनीति की सीमाएं हैं और वक्त तेजी से निकलता जा रहा है.
कोरोना वायरस की दूसरी लहर तबाही मचाने वाली साबित हुई है और इससे बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हुई है. ऐसे में किसी भी हालत में वैक्सीनेशन की मुहिम को सुस्त नहीं पड़ने दिया जा सकता है. इसके उलट सरकार को ये मुहिम तेज करनी होगी और हर मुमकिन साधन को इस काम में लगाना होगा.
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