Scrappage Policy : दो साल पहले मैंने अपनी होंडा सिटी कार 22,000 रुपये के स्क्रैप रेट पर बेची थी. क्योंकि मेट्रो शहरों में 15 सालों के बाद पेट्रोल वाहनों का रजिस्ट्रेशन नहीं होता है. मेरी कार अच्छी कंडीशन में थी. ये करीब 1.30 लाख किमी चली हुई थी. ये कुछ और साल चल सकती थी. इसके लिए मैनें दिल्ली रोड ट्रांसपोर्ट अथारिटी से कार के ट्रांसफर के लिए परमीशन भी ली. जिससे की मैं अपने होम टाउन में इसे चला सकूं क्योंकि वहां पेट्रोल व्हीकल को 20 साल चलाने की अनुमति है. हालांकि दिल्ली में रजिस्ट्रेशन की एक्सपायरी होने पर इंश्योरेंस कवर नहीं मिलता. साथ ही कार को एक से दूसरी जगह ले जाना काफी खर्चीला भी है. इसलिए मैनें उसे बेच दिया और उसी कंपनी के डीलर से सेकेंड हैंड कार 3 लाख रुपए में खरीदी. इसपर 5 साल की वैधता थी. ये कार 70 हजार किलोमीटर से थोड़ा कम चली थी.
मालूम हो कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि सड़क परिवहन मंत्रालय जल्द ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को स्क्रैप करने के लिए ईएलवीएस पॉलिसी (Scrappage Policy)अनाउंस करेगा. इसका ड्राफट प्लान साल 2019 में पेश किया गया. इसपर लोगों से उनकी राय भी मांगी गई, लेकिन कुछ बात नहीं बन पाई. देश भर में अधिकृत वाहन स्क्रैपिंग सुविधाएं (AVSF) स्थापित करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए। ये उन वाहनों के लिए थे जो वैध रूप से पंजीकृत नहीं थे. इसके अलावा जो वाहन मालिक अपनी पुरानी गाडी को स्क्रैप करवाना चाहते हैं. सरकारी आंकणों के मुताबिक अप्रैल 2020 तक करीब 28 मिलियन ईएलवीएस यानी करीब 15 साल पुराने वाहन स्क्रैपिंग के लिए मौजूद हैं.
दूसरी पहल के तहत ट्रांसपोर्ट मंत्रालय ने अप्रैल 2022 से ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव किया है. हालांकि इसपर अभी राज्यों की सहमति जरूरी है. अगर राज्यों की सहमति हो। आठ साल से अधिक पुराने व्यावसायिक वाहनों को फिटनेस प्रमाणपत्र के रिन्यू के समय रोड टैक्स के 10 से 50 प्रतिशत की दर से अतिरिक्त टैक्स लगाया जाएगा। वहीं निजी वाहनों के 15 साल बाद पंजीकरण प्रमाण पत्र के रिन्यु के समय टैक्स लगेगा. सार्वजनिक परिवहन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बसों पर कम दर से टैक्स लगेगा। खेती किसानी में इस्तेमाल होने वाले वाहन जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, इलेक्ट्रिक वाहन, हाईब्रिड वाहन और ऐसे वाहन जो नैचुरल गैस से संचालित होते हैं उन्हें छूट मिलेगी. ग्रीन टैक्स से प्राप्त होने वाले राजस्व को उत्सर्जन निगरानी स्टेशनों जैसे प्रदूषण से निपटने के उपायों के लिए रखा जाएगा।
मौजूदा समय में वाहन स्क्रैपिंग बिजनेस एक असंगठित सेक्टर है. ये हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित करता है. AVSFs वाहनों को रीसाइकिल करने का वैज्ञानिक तरीका बताएगी. लेकिन स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत वाहनों की लागत नहीं बढ़ानी चाहिए जिनका उत्सर्जन निर्धारित मानदंडों से कम है। ऑटो इंडस्ट्री चाह सकती है कि डिमांड जेनरेट करने के लिए 10 और 15 साल बाद डीजल और पेट्रोल वाहनों को खत्म किया जाए. लेकिन इससे ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में वृद्धि, कमी नहीं हो सकती है। यदि नए वाहनों के उत्पादन और संचालन से उत्पन्न उत्सर्जन पुराने वाहनों से अधिक है, तो पॉलिसी सफल नहीं हो पाएगी. शुद्ध जीएचजी उत्सर्जन का निर्धारण करने का एक तरीका होना चाहिए।
अगर किसी वाहन को सही से मेनटेन रखा जाए और सही से उसका इस्तेमाल किया जाए और वह अगर उत्सर्जन मानकों को पूरा करता है तो उसे सड़क पर 15 या 20 वर्षों तक चलने की अनुमति दी जानी चाहिए. फिटनेस परीक्षण के लिए समय सीमा होनी चाहिए.
वाहन स्क्रैपिंग पॉलिसी (Scrappage Policy) और ग्रीन टैक्स वाहनों की मांग को बढ़ाने के लिए हैं. लेकिन ईंधन पर लगने वाले टैक्स पर असर पड़ रहा है. पेट्रोलियम मंत्रालय की प्लानिंग और एनालिसिस सेल के मुताबिक, साल 2019-20 में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर अप्रत्यक्ष करों से 2.87 ट्रिलियन (लाख करोड़ रुपये) हासिल किए थे. इनमें टोटल 92 प्रतिशत के एक्साइज रेवेन्यु में से 2.23 ट्रिलियन रुपए एक्साइज से मिले थे. राज्यों ने भी टैक्स से 2.21 ट्रिलियन रुपए जमा किए. 1 फरवरी तक दिल्ली में पेट्रोल की कीमत (86.30 / लीटर) के हिसाब से 61 प्रतिशत टैक्स का भुगतान किया गया. दिल्ली के डीजल मूल्य में उनकी हिस्सेदारी 56 प्रतिशत थी।
ब्रोकरेज जेफ्रीज की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, 10 टन के ट्रक पर दिल्ली में सालाना रोड टैक्स 3,800 रुपये है। वहीं इसपर अब 50 प्रतिशत का ग्रीन टैक्स यानी करीब 1,900 रुपये एनुवल कास्ट में और लग जाएंगे, जिससे नया वाहन खरीदने पर बोझ बढेगा. सरकार का अनुमान है कि वाहनों के समूह से होने वाले 65 प्रतिशत प्रदूषण में से 5 प्रतिशत कमर्शियल व्हीकल से होता है.
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