महामारी से बुरे दौर में वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश की घरेलू बचत (Savings) में इजाफा हुआ है. वित्त वर्ष 2020-21 में नेट वित्तीय बचत के बढ़कर 22.4 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाने की उम्मीद है. ये इससे पिछले वित्त वर्ष के दौरान 16.1 लाख करोड़ रुपये थी.
ग्रॉस नेशनल डिस्पोजेबल इनकम के फीसदी रूप में इसके (Savings) 2020-21 में बढ़कर 11.2% पर पहुंचने की उम्मीद है, इससे पिछले वित्त वर्ष में ये आंकड़ा 7.8% पर था. एक्सपर्ट का मानना है कि कोविड संक्रमण के दौर में पाबंदियों, लॉकडाउन, नौकरियों के खत्म होने और तनख्वाह में कटौती ने कंज्यूमर कॉन्फिडेंस को हिला दिया है.
इसके चलते लोगों ने अपने खर्चों पर लगाम लगाई है और ये चीज सेविंग्स (Savings) में इजाफे के तौर पर दिखाई दे रही है. RBI और SBI के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में डिपॉजिट्स बढ़कर 10.6 लाख करोड़ रुपये (प्रोविजनल) पर पहुंच गए हैं. ये आंकड़ा 2019-20 में 8.7 लाख करोड़ रुपये था. इस तरह से इसमें 21.8% की तेजी आई है.
गुजरे कुछ वर्षों में जमा के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं. वित्त वर्ष 2015-16 में ये 6.4 लाख करोड़ रुपये पर थे, जो कि इसके बाद वाले साल में बढ़कर 9.8 लाख करोड़ रुपये हो गए. हालांकि, इसके बाद यानी 2017-18 में इसमें गिरावट आई और ये 5.3 लाख करोड़ रुपये पर आ गए. लेकिन, 2018-19 में ये बढ़कर 8.1 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए.
घरेलू बचत (Savings) में बढ़ोतरी का अर्थव्यवस्था के लिए तब बहुत फायदा हो सकता है अगर ये पैसा इंडस्ट्री और इंफ्रास्ट्रक्चर में लगाया जाए. हालांकि, बैंकों और पोस्ट ऑफिस में जमा दरों में लगातार गिरावट आ रही है. इस वजह से लंबे वक्त के लिए लोग इनमें पैसा लगाने से थोड़ा हिचक रहे हैं.
अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लंबे वक्त के निवेश के साधनों को फायदेमंद बनाए. मुनाफे वाली सेविंग्स (Savings) स्कीमों से इनवेस्टर्स को महंगाई को मात देने में मदद मिलेगी. वहीं, सरकार को भी इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट के लिए पैसे जुटाने में इससे फायदा होगा.
एक बार ये फंड नई इंडस्ट्री और इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने में लगा दिए जाएं तो इससे बड़े पैमाने पर नई नौकरियां भी पैदा होंगी. इससे खपत और सेविंग्स (Savings) दोनों में इजाफा होगा. हमारे भविष्य के लिए लंबे वक्त के निवेश साधनों को फायदेमंद बनाना वक्त की जरूरत है.