MSP: निजी तौर पर एक राजनेता और एक प्रशासक के तौर पर नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी विशेषता उनका अप्रत्याशित (अनप्रेडिक्टेबल) होना है और यदि यही बात उनकी सरकार के साल दर साल पेश किए जाने वाले आम बजटों के बारे में कहा जाए, तो भी शायद गलत नहीं होगा. वर्ष 2021-22 के लिए आज पेश हुआ आम बजट दो सबसे बड़ी घटनाओं के साए में आया- पहला, कोविड-19 और दूसरा, किसान आंदोलन. ज़ाहिर है कि यह माना जा रहा था कि एक ओर तो पूरे बजट पर कोविड-19 के ख़िलाफ़ देश की लड़ाई की छाप दिखेगी, वहीं यह बजट किसानों के लिए भी कई महत्वपूर्ण घोषणाएं लेकर आएगा. दरअसल, यह कहा जाए कि मोदी सरकार के पिछले 6 बजटों में से कम से कम 3 तो पूरी तरह किसान बजट ही थे, तो अतिशयोक्ति न होगी. और इसीलिए इस बार का बजट किसानों के लिए बिग बैंग घोषणाओं से सजा होगा, यह उम्मीद बेमानी भी नहीं थी. लेकिन हुआ कुछ और.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट भाषण आज लोकसभा में पढ़ा, उसमें कुल 191 बिंदु थे, जिनमें 96 से 107 यानी 12 बिंदुओं में उन्होंने कृषि से जुड़ी घोषणाएं कीं. इन घोषणाओं का बिंदुवार जायजा लिया जाए, तो आधे यानी 5 बिंदुओं में उन्होंने कुल मिलाकर यह बताया कि मोदी सरकार ने 2020-21 में और 2014-15 के बाद से खेती और किसानों के लिए क्या-क्या किया. शेष 7 बिंदुओं में उन्होंने 2021-22 के लिए कृषि और किसानों से संबंधित अपने प्रस्ताव बताए. इनमें भी 6 प्रस्ताव पहले से जारी योजनाओं का या तो एक्सटेंशन हैं या फिर पहले से आवंटित फंडों में वृद्धि से संबंधित हैं.
पहले उन 5 बिंदुओं का जायजा लेते हैं, जिनमें दरअसल वित्त मंत्री ने सिर्फ अपनी सरकार के पुराने कामों को बताया है, और समझने की कोशिश करते हैं कि ये बातें क्यों की गई हैं. सबसे पहले वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह बताया कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लागत का डेढ़ गुना कर दिया है. उसके बाद के चार बिंदुओं में वित्त मंत्री ने धान, गेहूं, दालें और कॉटन का उदाहरण देकर बताया कि किस तरह यूपीए के शासन के आखिरी साल की तुलना में MSP के तहत होने वाली खरीद में भारी बढ़ोतरी हुई है. जैसे, दालों में जहां यह बढ़ोतरी 40 गुने तक हुई है, वहीं कॉटन में तो यह 288 गुना है. उन्होंने यह भी बताया कि MSP से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या बढ़कर 1.54 करोड़ तक पहुंच गई है.
यानी कुल मिलाकर देखा जाए, तो वित्त मंत्री ने MSP को लेकर ‘चिंतित’ और बवाल मचाते किसानों को खुश करने की कवायद न कर बाकी देश को इन किसानों के आंदोलन का खोखलापन बताने पर ज्यादा ध्यान लगाया है. सीतारमण ने देश के बाकी हिस्से के किसानों में एमएसपी के प्रति अपनी गंभीरता को प्रमाणित करने के लिए ये आंकड़े जारी किए हैं.
अब चलते हैं उन प्रस्तावों की ओर, जिनमें 2021-22 के लिए घोषणाएं हैं. इनमें 5 घोषणाएं बिलकुल रूटीन श्रेणी की हैं. पहली, कृषि कर्ज का लक्ष्य 15 लाख करोड़ रुपये से हर वर्ष की तरह 10% बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपये करना, दूसरी ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर विकास फंड को 30000 से बढ़ाकर 40000 करोड़ रुपये करना, तीसरा नाबार्ड के तहत माइक्रो इरीगेशन फंड 5000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 10000 करोड़ रुपये करना और चौथा, ई-नाम में 1000 और मंडियों को जोड़ना. पांचवीं घोषणा पिछले साल शुरू की गई ‘ऑपरेशन ग्रीन स्कीम’ में आलू, प्याज और टमाटर के अलावा 19 और जल्दी खराब होने वाली कृषि उपज को शामिल करना है. ये सारी घोषणाएं बेहद साधारण हैं और इनमें से कोई न तो मोदी सरकार के किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य में बड़ा फर्क डालने जा रही है और न ही किसानों को फील-गुड देने के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
एक छठी घोषणा भी है और उसे एमएसपी वाले बिंदुओं के साथ मिलाकर देखना चाहिए. वित्त मंत्री ने एपीएमसी के बुनियादी ढांचे के विकास में कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के इस्तेमाल को अनुमति दी है. इसका और कोई महत्व नहीं समझ आता, इसके अलावा कि सरकार उन्हीं एपीएमसी मंडियों को बेहतर करना चाहती है, जिन्हें बंद करने का आरोप लगा कर उसके खिलाफ राजनीतिक मोर्चेबंदी की जा रही है. यानी कुल मिलाकर MSP और APMC के नाम पर मचे तमाम वितंडे का असर बजट पर सिर्फ यही पड़ा है कि सरकार ने एक राजनीतिक संदेश के जरिए साफ किया है कि ये दोनों सुरक्षित हैं.
इसके अलावा एक और घोषणा है, जो कृषि से नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में संपत्ति के अधिकार से संबंधित है और इसी से जुड़े एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में प. बंगाल में कई ग्रामीणों को घरों की चाबियां बांटी थीं. आश्चर्य यह है कि कृषि से जुड़े दूसरे सेक्टरों, जैसे पोल्ट्री, डेयरी इत्यादि के बारे में कोई घोषणा नहीं की गई है और मछली पालन से जुड़ी सिर्फ दो घोषणाएं हैं जिसमें दरअसल कोई आवंटन नहीं है. पिछले दो सालों से हो रहे जैविक खेती के जिक्र का कहीं नामोनिशान नहीं है. कुल मिलाकर ऐसा लगता है मानो इस बजट का उपयोग आने वाले समय में कृषि से संबंधित किसी बड़ी योजना की भूमिका तैयार करने भर के लिए किया गया है.
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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