Monsoon: भारत में खेती और मॉनसून (Monsoon) का सीधा संबंध है. इसलिए एल-निनो (el-nino) और एल-निना (el-nina) भारतीय खेती के लिए बहुत अहम घटनाएं बन चुकी हैं. अक्सर जब मौसम विभाग मॉनसून (Monsoon) की भविष्यवाणी करता है, तब उसमें सबसे महत्वपूर्ण एंगल इन्हीं दो जलवायवीय घटनाओं का होता है. लेकिन 2021 में एल-निना भारत और भारतीय किसानों के लिए एक ऐसा अवसर लेकर आ सकता है, जैसा पिछले कई वर्षों में कभी नहीं हुआ.
इस साल एल निना (el-nina) के कारण पूरे एशिया में बड़ा खाद्यान्न संकट पैदा होने की आशंका है. दक्षिण-पूर्वी देशों के अलावा खास तौर पर भारत के पड़ोसी देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और इराक पर एल-निना का गंभीर प्रभाव पड़ने वाला है, जिसके कारण कहीं बाढ़ तो, कहीं सूखे की स्थिति पैदा हो सकती है. लेकिन, खास बात यह है कि भारत पर एल-निना का कोई खास असर नहीं होगा.
एल-निना एक वैश्विक वायुमंडलीय-समुद्री घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर की सतह पर तापमान कम होने से हवा का बहाव, उसमें मौजूद आर्द्रता और उन तमाम परिस्थितियों पर असर होता है जो बारिश (Monsoon) के लिए जिम्मेदार होते हैं. विश्व खाद्य संगठन द्वारा जारी एक एडवाइजरी के हिसाब से यह साल इस लिहाज से असाधारण साबित हो सकता है. न सिर्फ एशिया, बल्कि प्रशांत महासागर क्षेत्र के कई देश और अफ्रीका तक में यह साल अभूतपूर्व खाद्य संकट लेकर आ सकता है.
इस दृष्टि से यह भारतीय कृषि के लिए एक बेहतरीन मौका है. पूरी दुनिया में कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति कर भारत ने मानवता पर जो उपकार किया है, उसी शृंखला को आगे बढ़ाते हुए भारत न सिर्फ 2021 में विश्व का अन्नदाता बन सकता है, बल्कि चावल, गेहूं और मक्का जैसी उपज के निर्यात में भारतीय किसानों को काफी वाणिज्यिक लाभ भी हो सकता है. 2020 के खरीफ सीजन में बिहार से लेकर पंजाब और राजस्थान तक के किसानों को 1850 रुपये के MSP की जगह 1150-1200 रुपये प्रति क्विंटल पर मक्का बेचने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि कोरोना महामारी के असर ने पूरी दुनिया में पोल्ट्री उद्योग को लगभग ठप कर दिया. अब 2021 का एल-निना इफेक्ट रबी और खरीफ मक्के के किसानों को अपना पिछला नुकसान पूरा करने का मौका दे सकता है.
यहां तक कि भारत सरकार के लिए भी यह एक बेहतरीन मौका होगा कि MSP पर सरकारी खरीद की गलत नीतियों के कारण भारतीय खाद्य निगम (FCI) में जमा चावल और गेहूं के अतिरिक्त भंडार को राजकोषीय घाटे को कम करने में इस्तेमाल किया जा सके. जनवरी 2021 में FCI के पास 404.21 लाख टन धान, 186.69 लाख टन चावल और 342.90 लाख टन गेहूं का भंडार मौजूद है. रबी की हार्वेस्टिंग अगले कुछ हफ्तों में शुरू होने वाली है. तमाम अनुमान इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि एक बार फिर उत्पादन के पुराने रिकॉर्ड टूटने की संभावना है. साफ है कि मई-जून तक इसमें लाखों टन गेहूं और जुड़ जाएगा.
भारत सरकार द्वारा तय बफर स्टॉक मानकों मुताबिक किसी भी वर्ष के 1 अप्रैल को FCI के पास चावल और गेहूं मिलाकर कुल 210.40 लाख टन का भंडार होना चाहिए, जो 1 जुलाई तक बढ़कर 411.20 लाख टन तक जा सकता है. इस लिहाज से FCI का मौजूदा भंडार मानकों के चार गुने से भी ज्यादा है. बजट 2021-22 में सरकार ने एफसीआई की सब्सिडी के लिए 2 लाख करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा का प्रावधान किया है. एल-निनो इफेक्ट से पैदा हुई परिस्थितियों में सरकार न सिर्फ एफसीआई के ठसाठस भरे गोदामों को हल्का कर सकती है, बल्कि 2021-22 के लिए संभावित 15 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के राजकोषीय घाटे को भी कम कर सकती है.
कोरोना काल में एकमात्र कृषि क्षेत्र ने ही भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती का प्रदर्शन किया था. न सिर्फ घरेलू मोर्चे पर, बल्कि निर्यात में भी अप्रैल-सितंबर 2020 के दौरान 43% की शानदार वृद्धि दर्ज की गई. इस मोमेंटम को बनाए रखने और उसे एक नई ऊंचाई पर पहुंचाने का यह अच्छा मौका है. साल 2018 में घोषित कृषि निर्यात नीति (Agri export policy) का पहला पड़ाव भी सामने है. उस साल भारत का कृषि उपज निर्यात 30 अरब डॉलर रहा था और इस नीति के तहत इसे 2022 तक बढ़ाकर 60 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था. इस लिहाज से यह साल इस लक्ष्य को पाने के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है, जिसमें एल निना अहम भूमिका निभा सकता है.
Monsoon- साल 2021 के शुरुआती दो हफ्तों में ही गेहूं के वैश्विक भाव में करीब 3% की मजबूती आई थी और भारतीय बाजारों में भी गेहूं के दाम में 200 रुपये तक की मजबूती दर्ज की गई है. यह भारतीय किसानों के लिए अच्छी ख़बर है. इससे पहले भी पिछले साल भारत ने 1 करोड़ टन से ज्यादा चावल निर्यात किया था. गेहूं और मक्के के निर्यात में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. दुबई और खाड़ी के अन्य देशों के जरिए भारतीय गेहूं और चावल पाकिस्तान भी जा सकते हैं और अगर केन्या में आशंका के मुताबिक सूखा की स्थिति बनती है तो भारतीय चाय उद्योग को अच्छा-खासा फायदा हो सकता है.
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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