किसी भी सभ्य समाज में हेल्थकेयर एक ऐसी सेवा है जहां समतावादी एप्रोच जरूरी होती है. जहां किसी भी शख्स की समाज में हैसियत का उसकी हेल्थकेयर सेवाओं तक पहुंच से कोई लेनादेना नहीं होता है.
वैक्सीन तक एक्सेस इतना अहम है कि इसमें वक्त और जगह से कोई मतलब नहीं है और इसे समतावादी सिद्धांत के हिसाब से लागू किया जाना चाहिए.
1789 के फ्रांस के डिक्लेयरेशन ऑफ राइट्स ऑफ मैन एंड ऑफ द सिटीजन या 1868 के अमरीकी संविधान में गारंटी दी गई है कि हर इंसान को जीवन का अधिकार है और बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार का अधिकार है.
इसी मोर्चे पर छत्तीसगढ़ सरकार चूक गई है. सरकार ने अंत्योदय, गरीबों और सामान्य तबके को 33% फीसदी वैक्सीन देने की बात की है.
लेकिन, ये तर्क के मोर्चे पर जायज नहीं बैठता है. राज्य को हर इंडीविजुअल के जीवन की सुरक्षा करनी है. इसमें जाति, धर्म या वित्तीय दर्जे के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में जीवन के अधिकार की गारंटी दी गई है. मौजूदा माहौल में अगर कोविड वैक्सीन जीवन को बचाने वाली नहीं है तो और क्या है?
लेकिन, क्या एक मुश्किल वक्त में एक तबके को वैक्सीन से वंचित रखकर और दूसरे तबके को वैक्सीन देने का कोई तर्क हो सकता है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने ऐसा ही बेतुका कदम उठाया है. राज्य ने अपने यहां अंत्योदय (बेहद गरीबों), BPL (गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले) को पहले वैक्सीन देने का फैसला किया है. सरकार का तर्क है कि चूंकि ये लोग वंचित तबके से आते हैं ऐसे में इन्हें पहले वैक्सीन देना जरूरी है.
मौजूदा माहौल में कोई भी सरकार राजनीतिक नजरिये से ऐसा नहीं कर सकती है. हर शख्स को उसकी पोजिशन से इतर वैक्सीन हासिल करने का हक है. और सरकार को किसी भी तबके के लिए वैक्सीन कोटा नहीं बनाना चाहिए.
देश के हर राज्य में फिलहाल वैक्सीन की शॉर्टेज है, लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़कर किसी भी राज्य ने सामाजिक-आर्थिक समूहों के हिसाब से वैक्सीन्स का आवंटन नहीं किया है. प्रशासन की इस एप्रोच पर राज्य के हाईकोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं.
जीवन का अधिकार सबसे बड़ा है और इस सिद्धांत को कायम रखने दिया जाना चाहिए.
पर्सनल फाइनेंस पर ताजा अपडेट के लिए Money9 App डाउनलोड करें।