कोविड-19 से फिलहाल छुटकारा मिलना मुश्किल जान पड़ रहा है. इसके नए वैरिएंट्स आ रहे हैं. विकसित देशों को भी संक्रमण के नए मामलों में उछाल का सामना करना पड़ रहा है.
इसे देखते हुए खासतौर पर कोविड के लिए बनी इंश्योरेंस पॉलिसीज में भी बदलाव करना जरूरी है.
मौजूदा वक्त में ये शॉर्ट-टर्म पॉलिसीज हैं जिनका टेन्योर 3.5, 6.5 और 9.5 महीने का है. इस वक्त जरूरत इन्हें किसी भी अन्य पॉलिसी की तरह से सालाना पॉलिसी में तब्दील करने की है.
सालाना टर्म होने से पॉलिसीहोल्डर्स के लिए इन्हें जल्दी-जल्दी रिन्यू कराने की जरूरत खत्म हो जाएगी.
एक और अहम मसला इन पॉलिसीज के ऊंचे क्लेम रेशियो का है. मिसाल के तौर पर, कोविड रक्षक का क्लेम रेशियो 300 फीसदी तक रहा है जबकि कोविड कवच का क्लेम रेशियो 90 फीसदी है.
इतने ऊंचे क्लेम के साथ कई बीमा कंपनियों ने इन पॉलिसीज को रिन्यू करना बंद कर दिया था. हालांकि, बाद में इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी (IRDAI) ने इस मामले में दखल दिया और बीमा कंपनियों को निर्देश दिया कि वे इन्हें रिन्यू करें और नई पॉलिसीज भी जारी करें.
इन पॉलिसीज की प्राइसिंग भी बीमा कंपनियों के लिए चिंता की एक और वजह है. जब 2020 के मध्य में ये पॉलिसीज लॉन्च हुई थीं उस वक्त प्राइसिंग के लिहाज से बीमा कंपनियों के पास पर्याप्त डेटा नहीं था. लेकिन, अब बढ़ते क्लेम्स के साथ कई बीमा कंपनियों ने कोविड पॉलिसीज पर बढ़ते प्राइसिंग के दबाव की चर्चा शुरू कर दी है.
कंज्यूमर्स के लिहाज से ये पॉलिसीज दूसरी कॉम्प्रिहैंसिव पॉलिसीज की तरह दूसरी बीमारियों को कवर नहीं करती हैं. इनमें केवल कोविड के इलाज का खर्च कवर किया जाता है.
लेकिन, कोविड के इलाज में ये होम केयर ट्रीटमेंट से लेकर पीपीई तक, व्यापक कवरेज मुहैया कराती हैं. साथ ही कोविड-19 के इलाज के मुकाबले इनका प्रीमियम काफी कम है.
मौजूदा वक्त में इस बात की तत्काल जरूरत है कि इंश्योरेंस रेगुलेटर को इस मामले पर गौर करना चाहिए और सबसे पहले इन पॉलिसीज के टेन्योर को रिवाइज करना चाहिए.
इन्हें सालाना मोड में मुहैया कराना होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इन्हें खरीद सकें और बिना किसी झंझट के अपने परिवारों को सुरक्षित कर पाएं.
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