Money9 Edit: मौजूदा हालात में तूफानों से बचाव के और पुख्ता उपायों की जरूरत

गुजरे कई वर्षों में टेक्नोलॉजी में सुधार हुआ है और सही वक्त पर इन तूफानों की चेतावनी मिलने लगी है. इससे लोगों को पहले ही सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना मुमकिन हो सका है.

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29 अक्टूबर 1999 को उड़ीसा के तट पर एक बड़े साइक्लोन ने दस्तक दी. तूफान इतना बड़ा था कि बिलबोर्ड्स तिनकों की तरह से उड़ गए, घर तबाह हो गए. इस तूफान से 10,000 से ज्यादा लोग मारे गए. सबसे ज्यादा तबाही जगतसिंहपुर में हुई.

इसी तरह का तूफान फानी मई 2019 में उड़ीसा में आया. इसके बाद एक तूफान मई 2020 में बंगाल के तट पर आया.

फानी की वजह से उड़ीसा में 70 से भी कम मौतें हुईं, जबकि पिछले साल अंफन की वजह से बंगाल में करीब 100 लोग मरे.

गुजरे कई वर्षों में टेक्नोलॉजी में सुधार हुआ है और इसके चलते सही वक्त पर इन तूफानों की चेतावनी मिलने लगी है. इससे लोगों को पहले ही सुरक्षित जगहों पर पहुंचाना मुमकिन हो सका है.

अर्ली वॉर्निंग के साथ फानी के आने से पहले ही करीब 11 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया गया था, जबकि अंफन से पहले 6.8 लाख लोगों को जोखिम भरे इलाकों से दूर कर दिया गया था.

हालांकि, पूर्वी तट के राज्यों को ज्यादा चक्रवाती तूफानों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हर सरकार को उड़ीसा और बंगाल के प्रशासन से इन तूफानों से निपटने के तरीकों को सीखना चाहिए.

अब तटीय इलाकों से दूर मौजूद शहरों में भी इन तूफानों के चलते काफी तैयारियां पहले से की जाने लगी हैं.

मिसाल के तौर पर, कोलकाता में तूफान से पहले अधिकारी पुरानी और जर्जर इमारतों से लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा रहे हैं ताकि उन्हें तेज आंधी और बारिश के चलते होने वाले नुकसान से बचाया जा सके.

अधिकारी पेड़ों की शाखाओं को भी काट रहे हैं ताकि लोगों को नुकसान न हो सके.

अंफन और तौकते की तरह से ही इस बार भी यास तूफान के पहले बड़े पैमाने पर लोगों को बचाया जा सके.

लेकिन, मौजूदा कोविड के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन जैसे प्रोटोकॉल्स को अपनाते हुए राहत और बचाव कार्यों को चलाना एक बड़ी चुनौती है.

सरकार को ऐसे हालात के लिए एक मैनुअल बनाना चाहिए और इसे सभी राज्यों के साथ साझा किया जाना चाहिए.

Published - May 24, 2021, 04:22 IST