प्रवासी कामगारों का डेरा छोड़ना, अर्थव्यवस्था के लिए नहीं अच्छी खबर

Migrant workers- पिछले साल की तरह परेशानी ना हो, इसीलिए यहां किसी तरह की तालाबंदी ने होने के भरोसे को मानने को तैयार नहीं और समय रहते निकलने की तैयारी में है.

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ई इंडेक्स के निर्माण में मदद करने के लिए सीपीआई (एएल/आरएल) के आधार वर्ष संशोधन के लिए बाजार सर्वेक्षण कर रहा है

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प्रवासी कामगारों ने मुंबई में फिर से डेरा छोड़ना शुरु कर दिया है. यकीन ना हो तो मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनल, पुणे के प्रमुख रेलवे स्टेशन या फिर महानगरों के किसी भी स्टेशन पर पहुंचें. पाएंगे कि पूर्व की दिशा खास तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए जाने वाली हर यात्री गाड़ी खचाखच भरी है. बस घर पहुंचना है, भले ही वहां एक जून खाना मिले, लेकिन जी लेंगे कुछ ऐसी ही बात आपको सुनने को मिलेगी.

इस बीच आपको तीन रपट की जानकारी दे दे. पहली रपट बताती है कि भारत में कोविद का दूसरा दौर जबर्दस्त रफ्तार पकड़ रहा है और इसमें खासी बड़ी हिस्सेदारी महाराष्ट्र की है. दूसरी रपट अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की है जिसका अनुमान है कि भारत 2021-22 में 12.5 फीसदी की दर के साथ सबसे तेजी के विकास करेगा. तीसरी रपट वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलात विभाग की है जो उम्मीद जता रही है कि चुनौतियों से भरे कारोबारी साल 2020-21 के खत्म होने के बाद कारोबारी साल 2021-22 काफी बेहतर और आत्मनिर्भर होगा.

दरअसल, पहली रपट ने बाकी दो रपट की धार कुंद कर दी है. वजह भी है. बढ़ते कोविद संक्रमण के बीच महाऱाष्ट्र ने जहां स्थानीय दौर पर सप्ताहांत के दौरान तालाबंदी, रात के कर्फ्यू, मॉल के साथ रेस्त्रां व छोटे-मोटे खाने पीने की दुकानों और धार्मिक स्थलों को बंद करने के अलावा कई और तरह की पाबंदी का ऐलान किया तो दिल्ली और उससे सटे नोएडा व गाजियाबाद में रात 10 बजे से कर्फ्यू का ऐलान कर दिया. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में भी कुछ दिनों की तालाबंदी के अलावा कई और पाबंदी लगा दी गयी.

अब दिल्ली को ही ले लीजिए. छोटे-बड़े रेस्त्रां के अलावा सड़क किनारे आइसक्रीम वगैरह का ठेला लगाने वालों के लिए शाम आठ के बाद धंधा चमकता है. लेकिन 10 बजे से कर्फ्यू की वजह से नौ बजते-बजते दुकान समेटना मजबूरी है और इसी के साथ ऐसे काम-धंधे में दिहाड़ी पर काम करने वालों के लिए दिक्कतें कई गुना बढ़ गयी है. पिछले साल की तरह परेशानी ना हो, इसीलिए यहां किसी तरह की तालाबंदी ने होने के भरोसे को मानने को तैयार नहीं और समय रहते निकलने की तैयारी में है. वैसे मुंबई की तरह दिल्ली से छूटने वाली पूर्व दिशा के ट्रेन पर ज्यादा भीड़ नहीं दिख रही, फिर भी रेल मंत्रालय खाली स्टेशन की तस्वीर दिखाकर भरोसा दिलाने में जुटा है कि यहां फिलहाल हालात ठीक है.

क्या वाकई ऐसा है? जवाब है नहीं. सच तो यह है कि मुंबई हो या दिल्ली, भोपाल हो या फिर रायपुर, नोएडा हो या प्रयागराज. बड़ी मुश्किल से इन तमाम शहरों में सेवा क्षेत्र कुछ हद तक पटरी पर आयी थी, अब फिर से उतरने की आशंका हो गयी. इस आशंका की सबूत सेवा क्षेत्र के लिए पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स (पीएमआई) में देखे जा सकते है जो मार्च के महीने के दौरान घटकर 54.6 पर आ गयी. पीएमई के साथ जारी होने वाले रपट में यह भी बताया गया कि लगातार 13 वें महीने नौकरियां घट गयी. अब यहां गौर करने की बात है कि अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 57 फीसदी है.

सेवा क्षेत्र के एक अहम घटक पर्यटन को ही ले लीजिए. बीते साल गरमी में पूरी तरह से ठप रहा. जाड़े में स्थिति कुछ बदली, लेकिन एक बार फिर घरेलू पर्यटक ज्यादा सैर-सपाटे के मूड में नहीं, क्योंकि पता नहीं कब कहां तालाबंदी हो जाए. यहां यह भी ध्यान रखना जरुरी है कि पर्यटन एक साथ कई क्षेत्रों की मदद करता है. ट्रेन-हवाई जहाज से लेकर टैक्सी, होटल, गाइड ले कर स्थानीय सुविधाएं मुहैया कराने वालों तक. कई जगहों पर पर्यटन ही स्थानीय अर्थव्यवस्था का सहारा है.

दरअसल, प्रवासी कामगार मुंबई, दिल्ली से लेकर तमाम बड़े शहरों में सेवा क्षेत्र के अहम किरदार है. साल भर के भीतर-भीतर ये दो बार झटके खा चुके हैं. पहली बार झटके खाने के बाद इस आस में वापस लौटे कि हालात बदल रहें हैं और इसका उन्हे फायदा मिलेगा. लेकिन अबकी बार जो जा रहे हैं, वो कब लौटेंगे, लौटेंगे भी या नहीं, पता नहीं.

एक मोटा-मोटी अनुमान है कि देश भऱ में करीब 10 करोड़ प्रवासी कामगार हैं. बीते वर्ष देसबंदी के बाद राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों से मिली जानकारी बताती है कि 1.15 करोड़ के करीब प्रवासी अपने-अपने घर लौटे. अब इस बार यह संख्या शायद इतनी नहीं हो और वैसे भी इस बार राज्य सरकारें कोई रजिस्टर नहीं तैयार कर रही. लेकिन एक बात तो तय है कि प्रवासी कामगारों का जाना सेवा और विनिर्माण समेत खेती बारी के लिए भी अच्छी खबर नहीं होगी, क्योंकि लगातार छोटे हो रहे जोत पर दवाब बढ़ेगी, छिपी हुई बेरोजगारी बढ़ेगी.

विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि स्थानीय स्तर पर तालाबंदी या नाइट कर्फ्यू ही समस्या का समाधान नहीं. एसएमएस (सेंनेटाइजर, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग) पर बेहद सख्ती पर अमल के साथ टीकाकरण में तेजी लायी जाए तो संक्रमण की रफ्तार को धीमा करना संभव है. यद रहे कि कोविद अगर महामारी है तो बेरोजगारी, गरीबी और भूखमरी भी बीमारी ही है. ये बढे तो इनसे कैसे निपटेंगे? अब भी वक्त है, प्रवासी कामगारों को मुंबई-दिल्ली में डेरा छोड़ने से रोकिए.

Disclaimer: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.

Published - April 10, 2021, 07:33 IST