वैक्सीनेशन के लिहाज से वैश्विक स्तर पर गुजरे 48 घंटे मिलेजुले रहे हैं.
अमरीका में इसके सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (US CDC) ने कहा है कि ऐसे लोग जिनका वैक्सीनेशन पूरा हो चुका है उन्हें मास्क लगाने की कोई जरूरत नहीं है. ये निष्कर्ष CDC की उस रिसर्च का परिणाम है जिसमें कहा गया है कि वैक्सीन लगने के बाद वायरस के ट्रांसमिशन की आशंका पूरी तरह से खत्म हो जाती है.
इससे निश्चित तौर लोगों में भरोसा पैदा होता है, लेकिन इस बयान ने दुनियाभर से आलोचनाओं को भी आमंत्रित किया है. सोशल मीडिया पर बड़ी तादाद में लोगों का कहना है कि US CDC का कदम गलत है और लोग मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग दोनों को वैक्सीनेशन के बाद भी अपनाए जाने की तरफदारी कर रहे हैं.
खैर, विकसित दुनिया की ये अपनी परेशानियां हैं.
अपने मुल्क की बात करें तो भारत में एक्सपर्ट पैनल ने गुरुवार को फैसला किया है कि कोवीशील्ड वैक्सीन के दोनों डोज के बीच अंतर को पहले के 6-8 हफ्ते से बढ़ाकर 12-16 हफ्ते कर दिया जाए. इस साल मार्च तक ये अंतर महज 4-6 हफ्ते का था.
लोग सीधे तौर पर इसे वैक्सीन की कमी से जोड़कर देख रहे हैं, हालांकि नीति आयोग और ICMR ने कहा है कि ये फैसला विज्ञान पर आधारित है. ये भी तर्क दिया गया है कि यूके और WHO ने भी वैक्सीन के दो डोज के बीच 12 हफ्ते के अंतर की बात की थी.
इसके 24 घंटे बाद ही यूके ने फैसला किया है कि वह इस अंतर को पहले के 12 हफ्ते से घटाकर 8 हफ्ते करने जा रहा है. इस फैसले को भारत में पैदा हुए वैरिएंट B.1.617 की गंभीरता को देखते हुए लिया गया है.
भारत को वैक्सीन्स की सख्त जरूरत है, ऐसे वक्त में बयानबाजी की कोई जगह नहीं है. नागरिकों को जानकारी और ठोस तर्क चाहिए.
कई लोगों को लगता है कि देश के नेतृत्व से भरोसा कम हो रहा है. राजनेताओं से बड़े तौर पर भरोसा घटा है.
हम पहले “बीजेपी की वैक्सीन” का तर्क सुन चुके हैं. अब एक कैबिनेट मिनिस्टर ने वैक्सीन की मांग को संकुचित राजनीतिक सोच कह दिया है. एक ने कहा है कि क्या हमें फांसी पर लटक जाना चाहिए?
एक पूर्व मुख्यमंत्री ने तर्क दिया है कि वायरस को भी जीने का हक है. ये सभी बयान हमें किसी अच्छे हालात की ओर लेकर नहीं जा रहे हैं. अब वैक्सीन को लेकर बनी हुई राजनीतिक सरगर्मी लोगों को निराश कर रही है.
इसकी बजाय पूरी एनर्जी वैक्सीन प्रोटोकॉल में बेहतरीन वैश्विक रिसर्च को शामिल करने पर लगानी चाहिए. जल्द खरीदारी और आसान प्रक्रिया से ही लोगों की जान बचाई जा सकती है.
अगर किसी वास्तविक वजह से इसमें देरी हो रही है तो इसे मानने में कोई बुराई नहीं है और लोग भी इसे समझेंगे. लेकिन, फालतू के बहाने और एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से कुछ नतीजा नहीं निकलने वाला.
कोविड से जंग में विज्ञान को आगे कीजिए, नेतागिरी को इससे दूर ही रखें तो अच्छा है.
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