बाज़ार में खलबली का माहौल है. गौर से देखें तो अब सावधान होने का वक्त आ गया है. हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि बाजार में कोई तेज गिरावट आएगी या नहीं. लेकिन इतना कहा जा सकता है कि अभी अगर कोई बड़ा झटका आया तो तबाही बहुत होगी.
मुश्किल होगा गिरावट को झेलना
इस वक्त शेयर बाजार के लक्षण ऐसे हैं कि तेज गिरावट का कोई झटका हजम करना इसके लिए मुश्किल हो सकता है. वजह ये है कि बाजार में रिटेल निवेशकों की गिनती भी लगातार बढ़ रही है और कारोबार में उनकी हिस्सेदारी भी.
आलम ये है कि जहां देशी-विदेशी इंस्टीट्यूशंस मिलकर दोनों एक्सचेंजों में 30 फीसदी कारोबार कर रहे हैं, वहीं 70 फीसदी कारोबार रिटेल यानी HNI और छोटे निवेशकों के हाथ में है.
रिटेल इनवेस्टर्स का दबदबा बढ़ा
यह अनुपात पिछले 15 साल में पहली दफा सबसे ज्यादा रिटेल की तरफ झुका हुआ है. इसका मतलब ये कतई न समझ लें कि देश की सभी लिस्टेड कंपनियों में रिटेल इनवेस्टर्स की हिस्सेदारी 70% हो गई है. ऐसा हो जाता तो फिक्र की बात न रहती.
इसके उलट हो यह रहा है कि जून में हर रोज बाजार में जो सौदे हुए हैं उनमें से औसतन 70 फीसदी कारोबार छोटे बड़े रिटेल निवेशकों ने किया, जबकि सिर्फ 30% इंस्टीट्यूशंस यानी म्यूचुअल फंड्स और विदेशी संस्थानों ने किया है.
महंगे होते शेयर
वजह समझिए, बहुत आसान है. विदेशी निवेशकों और घरेलू संस्थानों की खरीद से ही पिछले 1 साल से शेयरों के दाम बढ़ते जा रहे हैं. लेकिन, दाम बढ़ने के बाद उनकी खरीद की रफ्तार काफी कम हो चुकी है क्योंकि उन्हें यही शेयर महंगे लग रहे हैं.
इसी एक साल में दो करोड़ से ज्यादा नए निवेशक बाज़ार में आए हैं. इनमें से ज्यादातर पहली बार आए हैं. बैंक की FD, PF, प्रॉपर्टी और दूसरी किसी भी जगह उन्हें अपने पैसे पर अच्छा रिटर्न नहीं मिल रहा है. ऐसे में पिछले साल भर से कुलांचे भर रहा शेयर बाजार उन्हें भी खींचता है और उनके पैसे को भी.
नए निवेशक भी बाजार में पैसा लगा रहे हैं और जो पहले से लगा रहे थे उनमें भी ये उत्साह आ रहा है कि उन्होंने तो दूसरों से पहले ही सही राह पकड़ ली थी.
सब अच्छा चल रहा है तो दिक्कत क्या है?
इसमें समस्या क्या है? बाजार चल रहा है, लोग पैसे बना रहे हैं, रोज हजारों या लाखों नए निवेशक स्टॉक मार्केट में आ रहे हैं. जब तक बाज़ार चढ़ता रहेगा तब तक तो सभी कुछ ठीक है. लेकिन, अगर ऐसी हालत में बाजार गिरा तो ज्यादातर नए और छोटे निवेशक पाएंगे कि उनकी जेब में जो कुछ था वो तो बाजार में लगा हुआ है, शेयर अगर सस्ते में भी मिल रहे हैं तो खरीदने के लिए अपने पास पैसे नहीं हैं.
भगदड़ मची तो छोटे निवेशक उठाएंगे नुकसान
ऐसे निवेशकों को अगर कोई जरूरत पड़ गई तो शेयर खरीदने में जो रकम लगाई थी, बेचने पर उससे बहुत कम मिलेगी. बड़े संस्थान और लंबे समय से बाजार में टिके हुए पुराने निवेशक तो ऐसे हालात के लिए आमतौर पर तैयार रहते हैं, लेकिन जो नए आए लोग हैं ऐसे में उनके फंसने का डर बढ़ जाता है.
ऐसी हालात में ही भगदड़ मचती है, यानी जिस भाव पर भी कुछ बिके लोग बेचकर भागते हैं, और फिर, ऐसे लोग मार्केट में लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाते.
खतरा दिख रहा है. इसका मतलब ये नहीं है कि गिरावट आएगी ही. इसका मतलब ये भी नहीं है कि लोग शेयरों में पैसा न लगाएं. मतलब सिर्फ ये है कि फूंक-फूंककर कदम रखें. अच्छे सलाहकार की ही बात सुनें और बाजार में सिर्फ वो पैसा लगाएं जिसे आप अगले 5-10 साल के लिए बिलकुल छोड़कर रख सकते हैं.