वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के छोटी बचत योजनाओं (स्मॉल सेविंग्स स्कीम्स) की ब्याज दरों को घटाने के निर्देश को वापस लिए जाने के छह हफ्ते बाद एक बार फिर से इनमें कटौती की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. आर्थिक लिहाज से ऐसा करने का तर्क दिया जा सकता है.
इस बात का तर्क दिया जा सकता है कि बैंकों के फंड्स की लागत घटाने के लिए ऐसा करना जरूरी है. कहा जा रहा है कि अगर बैंकों को सस्ती दर पर फंड मिलेगा तो वे कम ब्याज दर पर लोगों को कर्ज मुहैया करा पाएंगे और इससे हाउसिंग, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे सेक्टरों में लोगों को कर्ज देना मुमकिन हो पाएगा. और इससे आबादी के एक बड़े तबके को फायदा होगा.
सरकार की बात की जाए तो उसे ऊंची उधारी और फिस्कल स्ट्रेस से गुजरना पड़ रहा है. ऐसे वक्त में बौरोइंग की कॉस्ट में कटौती से सरकार को भी फायदा होगा.
एक हालिया स्टडी में कहा गया है कि 2020-21 में केंद्र के फिस्कल डेफिसिट के 26 फीसदी हिस्से की फंडिंग स्मॉल सेविंग्स से होती है.
हालांकि, इस बात के भी पर्याप्त तर्क हैं कि वित्तीय रूप से कमजोर तबके के लिए ये छोटी बचत योजनाएं बेहद महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में भले ही कुछ वक्त के लिए ही सही, लेकिन इन दरों को मौजूदा लेवल पर बरकरार रखना फिलहाल जरूरी है.
पिछले साल कोविड की लहर शुरू होने के बाद इस साल दूसरी लहर तबाही लेकर आई है. इस वजह से लोगों की नौकरियां गई हैं, तनख्वाह कट रही हैं और लोगों की आमदनी घट रही है.
दूसरी ओर, महामारी की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे वक्त पर वित्तीय अनुशासन को कुछ वक्त के लिए ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है और मुश्किल से जूझ रही आबादी को मदद देने पर फोकस रखा जाना चाहिए.
पोस्टल डिपार्टमेंट में ही करीब 37 करोड़ इंडीविजुअल अकाउंट्स हैं. ये आंकड़ा पूरे यूरोप की कुल आबादी का करीब आधा बैठता है.
इसके अलावा, बड़ी संख्या में लोगों ने बैंकों की स्मॉल सेविंग्स स्कीमों में निवेश किया है. ये आंकड़ा पोस्टल डिपार्टमेंट की संख्या से अलग है. इनमें से कई लोग रिटायर हो चुके हैं और उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है. ये लोग पूरी तरह से छोटी बचत योजनाओं में मिलने वाले ब्याज पर टिके हुए हैं.
मौजूदा हालात में इस तबके को मदद की जरूरत है. ऐसे में छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों को फिलहाल स्थिर रखा जाना चाहिए.
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