किसी भी बीमा कंपनी का मूल काम क्लेम सेटल करना होता है. इसके बावजूद कई मामलों में ऐसा पाया गया है कि बीमा कंपनियां कोविड आधारित पॉलिसीज की खरीदारी की राह में अड़ंगा लगा रही हैं.
इन अवरोधों में पॉलिसीज को ऑनलाइन न बेचने से लेकर एजेंट्स का कमीशन घटाना तक शामिल है ताकि वे मार्केट में ऐसी पॉलिसीज न बेचें.
इसकी एक मुख्य वजह यह है कि ये पॉलिसीज सस्ती होती हैं. पिछले साल जब इन्हें लॉन्च किया गया था तब इनमें क्लेम के लिए कम मामले आ रहे थे. उसके बाद इनके क्लेम्स के मामलों में भारी तेजी आई है और बीमा कंपनियों के लिए इससे मुश्किल पैदा हो गई है.
इसके अलावा, इन पॉलिसीज के व्यापक कवरेज और ऊंचे क्लेम रेशियो से भी इंश्योरेंस कंपनियां असहज हैं.
अनुमानों के मुताबिक, कोविड रक्षक और कोविड कवच पॉलसी का क्लेम रेशियो 300 फीसदी और 90 फीसदी जितना ऊंचा है. ये कॉम्प्रिहैंसिव हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज के क्लेम रेशियो से काफी ज्यादा है.
इसके साथ ही हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर बढ़ती जागरूरकता के चलते बीमा कंपनियों के प्रीमियम संग्रह में भी बड़ा उछाल आया है.
साथ ही कई मरीजों ने अपनी सर्जरी जैसे फिलहाल टाले जा सकने वाले इलाज अभी छोड़ दिए हैं. इसके चलते नॉन-कोविड क्लेम सामान्य वक्त के मुकाबले काफी कम हो गए हैं.
दूसरी ओर, लॉकडाउन और आवाजाही को लेकर पाबंदियां लगी हुई हैं. इसके चलते मोटर इंश्योरेंस क्लेम भी निश्चित रूप से काफी कम हो गए होंगे.
ओवरऑल क्लेम का माहौल देखा जाए तो इंश्योरेंस कंपनियों के लिए ये सही नहीं है कि वे लोगों को इस जरूरत के वक्त पर बीमा कवर या क्लेम देने में आनाकानी करें.
इस तरह के असाधारण वक्त में जबकि पूरी दुनिया और भारत एक भयंकर संकट से गुजर रहा है, बीमा को लेकर इस तरह की पाबंदियां लगाना किसी भी तरह से उचित नहीं है.
इस वक्त तो बीमा कंपनियों को क्लेम सेटल करने में मिसाल पेश करनी चाहिए और कोविड पॉलिसीज को जारी करने में किसी भी तरह की आनाकानी नहीं करना चाहिए.