अमेरिकी रेटिंग एजेंसी मूडीज (Moody’s) ने अपने हालिया अनुमान में भारतीय अर्थव्यवस्था की तेज़ी का अनुमान अप्रत्याशित तौर पर बढ़ा दिया. एक अप्रैल 2021 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष 2022 के लिए अब मूडीज का अनुमान 13.7 प्रतिशत का है. यह अनुमान कितना अप्रत्याशित है, इसका अनुमान लगाने के लिए मूडीज के ही पहले के अनुमान को देखना सबसे आसान तरीक़ा है. मूडीज (Moddy’s) ने वित्तीय वर्ष 2022 के लिए भारत की तरक़्क़ी की रफ़्तार एक अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए 10.8 प्रतिशत का ही अनुमान लगाया था, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) ने महामारी की वजह से पैदा हुई मंदी से उबरकर खड़ा होने का जो काम किया है, इसकी अनुमान लगा पाना कठिन था. उसकी एक बड़ी वजह यह भी रही है कि भारत में महामारी के दौर में भी राजनीतिक वजहों से सबसे ज़्यादा चोट अर्थव्यवस्था को ही लगी है. इस सबके बावजूद अगर भारत ने अपनी कारोबारी गतिविधियां दुरुस्त कर ली हैं और देश की राजधानी दिल्ली सहित ज़्यादातर शहरों में फिर से पुरानी जाम जैसी स्थिति सड़कों पर दिखने लगी है तो उसकी वजह सिर्फ़ कारों की लगातार ख़रीद ही नहीं है.
पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) की रिकॉर्ड क़ीमतों, पंजाब में लगातार हो रहे आंदोलन और दिल्ली-हरियाणा में उसके दुष्प्रभाव के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) ने कमाल की वापसी की है और इस वापसी का परिणाम अब आर्थिक आँकड़ों में स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है. ताज़ा आंकड़ा फ़रवरी महीने के GST संग्रह का है. फ़रवरी के 28 दिनों में भारतीय कारोबारी माहौल बेहतर रहा, इस वजह से GST संग्रह एक लाख तेरह हज़ार करोड़ रुपये के पार चला गया और अच्छी बात यह भी है कि अक्टूबर महीने से लगातार जीएसटी संग्रह का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपये के पार हो गया है. इसका एक बड़ा संकेत यह भी है कि भारतीय कारोबारी तंत्र नये GST तंत्र के साथ अब तालमेल बैठाने में सफल हो गया है. यही वजह रही है कि छोटे और मंझोले कारोबारियों के सबसे बड़े संगठन के भारत बंद के आह्वान के बावजूद ज़्यादातर कारोबारियों ने अपनी दुकानें-कारोबार खुले रखे. इसी तरह का एक और आंकड़ा अभी जीडीपी का आया, जिसमें वित्तीय वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में कृषि विकास दर 3 प्रतिशत से बढ़कर 3.9 प्रतिशत हो गई है और, दूसरी तरफ़ दिल्ली को घेरे बैठे किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िलों में पंचायत करके कह रहे हैं कि किसानों का हक़ मारा जा रहा है.
एक लाख करोड़ रुपये के पार का GST संग्रह और छोटे मंझोले कारोबारियों के संगठन का बंद का आह्वान और क़रीब 4 प्रतिशत की तीसरी तिमाही की तरक़्क़ी की रफ़्तार के बावजूद किसानों के 40 संगठनों का अड़े रहना, भारत की आर्थिक तरक़्क़ी के राह के असल रोड़े की तरफ़ इशारा कर रहा है. दरअसल, सरकारी नीतियों पर कारोबारी हो या किसान उसका भरोसा बुरी तरह से टूटा हुआ है और उसकी वजह लंबे समय से सरकारी नीतियों में किसान हो या कारोबारी उसके ऊपर बाबूशाही के तंत्र का हावी होना रहा है. इसीलिए जीएसटी को भले ही कर संग्रह में पारदर्शिता के साथ बाबूशाही के खांचे से मुक्त करने के लिए सरकार लेकर आई, लेकिन इसके बारे में कारोबारी संगठनों ने ही यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि सरकार शोषण के लिए यह कर संग्रह का तंत्र लेकर आई है और इसमें आग में घी डालने का काम हमेशा विपक्ष में रहने वाले राजनीतिक दल करते हैं. कमाल की बात है कि सत्ता में रहते जिस तंत्र की वकालत करते हैं, विपक्ष में पहुंचते ही राजनीतिक दल भावनाओं को भड़काकर उसी तंत्र का विरोध करने लगते हैं. जीएसटी और कृषि क़ानून इसका सबसे बड़ा बड़ा उदाहरण हैं.
इन्हीं कृषि क़ानूनों को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अपने घोषणापत्रों में रखकर किसान को मंडी के सरकारी तंत्र और बिचौलिये से मुक्त कराने का भरोसा दिया था. भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने तो बाक़ायदा इस पर ख़ुशी जताई थी कि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का सपना सरकार के इस निर्णय से पूरा हो रहा है, लेकिन जैसे ही पंजाब के मंडी-आढ़तिया तंत्र ने इसके ख़िलाफ़ लोगों को भड़काना शुरू किया और एक समय के बाद जब वह आंदोलन दिल्ली आ गया तो किसान यूनियनों को लगा कि अब हम इसमें शामिल नहीं हुए तो किसानों का भरोसा हम पर से उठ जाएगा. कारोबारी संगठनों को भी यह लगता है कि कारोबारियों को छोटी-मोटी कर चोरी के रास्ते देने का जुगाड़ करने से कारोबारियों की उन कारोबारी संगठनों की ताक़त पर भरोसा बना रहेगा. यही वजह रही कि जीएसटी हो या कृषि क़ानून इसका सबसे ज़्यादा विरोध उन्हीं लोगों ने किया जो एक समय में इसी तरह के क़ानून से छोटे मंझोले कारोबारियों और किसानों की समस्या का हल होते हुए देख रहे थे.
अच्छी बात यह है कि नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार ने इस बार छोटे मंझोले कारोबारियों और किसानों के हक़ के क़ानूनों को वापस लेने का कमजोर निर्णय नहीं लिया और बार-बार यह ज़रूर किया कि जहां सुधार की ज़रूरत है, उसे ज़रूर सुधारेंगे. इसकी वजह से और आज के संचार, सूचना के समय में किसानों और कारोबारियों को सरकार के फ़ैसलों को हर कसौटी पर कसने में आसानी हुई और इसका परिणाम यह रहा कि देश के ज़्यादातर किसान और कारोबार इस बात को समझ रहे हैं कि कृषि क़ानूनों से और जीएसटी से उनके लिए लंबे समय में बेहतरी का ही रास्ता तैयार हो रहा है. इसीलिए देश भर में किसानों और कारोबारियों के नाम पर भारत बंद की कोशिश पूरी तरह असफल हो गयी. यही वजह है कि तीसरी तिमाही के आंकड़ों में कृषि तरक़्क़ी की रफ़्तार 3 से बढ़कर 3.9 प्रतिशत हो गई और जीएसटी संग्रह का पिछले 6 महीने का औसत एक लाख करोड़ रुपये के पार का रहा है. इसलिए जीएसटी संग्रह और कृषि तरक़्क़ी की रफ़्तार के आंकड़ों को सिर्फ़ एक आंकड़े के तौर पर नहीं देश के कारोबारियों और किसानों के नये क़ानूनों के साथ खड़े होने का भी प्रमाण हैं और इसकी वजह से आर्थिक तंत्र पटरी पर आता दिख रहा है, लेकिन राह के रोड़े हटाने का काम सरकार को लगातार करना होगा.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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