प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ का सपना दिखाए जाने के बाद से किसी ने ये नहीं सोचा था कि ये मौका इतनी जल्दी आ जाएगा. भारत के पास आज दुनिया में वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग का हब बनने का अवसर है.
देश में दो मैन्युफैक्चरर्स पहले से हैं. ज्यादातर देशों के पास ऐसा नहीं है. फरवरी में कंसल्टेंसी फर्म डेलॉयट ने कहा था कि अमरीका के बाद भारत वैक्सीन (vaccine) मैन्युफैक्चरिंग में दूसरे नंबर पर उभर सकता है.
सरकार को अपने सभी संसाधन वैक्सीन (vaccine) उत्पादन में लगा देने चाहिए.
इस मामले में देश को फ्रैंकलिन रूजवेल्ट की किताब से सबक लेना चाहिए जिसमें पर्ल हार्बर पर हमले के बाद अमरीका ने अपने पूरे संसाधन और फैक्टरियों को हथियार बनाने में लगा दिया था.
सरकार को देश की प्रतिष्ठित फार्मा कंपनियों के साथ साझेदारी करनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर सरकारी पैसों को लगाकर कोवैक्सीन के इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स लेने चाहिए.
इसके बाद इसके (vaccine) उत्पादन में दूसरे मैन्युफैक्चरर्स को शामिल करना चाहिए और 24/7 के आधार पर इसका उत्पादन शुरू कराना चाहिए.
हमारा लक्ष्य ये होना चाहिए कि अतिरिक्त वैक्सीन (vaccine) उत्पादन कैपेसिटी तैयार की जाए और इसे घरेलू टीकारण के अलावा दूसरे देशों को भी निर्यात किया जा सके.
पूरी दुनिया को इस वक्त वैक्सीन्स (vaccine) की जरूरत है और हाल-फिलहाल में इनमें कोई गिरावट आती नहीं दिख रही है.
भारत के पास बड़े पैमाने पर वैक्सीन (vaccine) प्रोडक्शन की कैपेसिटी है.
भारत में टेक्नोलॉजी, सस्ता श्रम, आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स समेत सभी खूबियां हैं जिनके जरिए ऐसा किया जा सकता है.
इसके अलावा भारत के पास एक और बड़ा फायदा है.
भारत की बनी वैक्सीन (vaccine) सामान्य परिस्थितियों में स्टोर की जा सकती हैं और इसके लिए दूसरे देशों की बनाई गई वैक्सीन्स (vaccine) के लिए जरूरी कोल्ड स्टोरेज चेन की जरूरत नहीं है.
हकीकत ये है कि स्पेशल स्टोरेज जरूरत के चलते कई देशों में दूसरे देशों की बनी वैक्सीन्स का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.
घरेलू आबादी को टीका लगाना इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत है. इसके साथ ही भारत के पास वैक्सीन निर्यात करने का भी एक बड़ा मौका है.