पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स (Petroleum Products) पर गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (GST) लगाने पर काफी बहस हुई है. हाल ही में SBI के चीफ इकोनॉमिस्ट डॉक्टर सौम्य कांति घोष ने भी सुझाव दिया है कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को GST के अंतर्गत लाने से आय पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा अगर सरकार इसपर इनपुट टैक्स क्रेडिट ना लागू करे. इनपुट क्रेडिट का मतलब है कि कंपनियां अपने सामान और सर्विस के लिए दिए टैक्स में से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के लिए दिया गया टैक्स डिडक्ट करा सकती हैं.
इसमें दो जरूरी पहलू हैं जिसपर चर्चा जरूरी है. पहला ये है कि क्या पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को GST के तहत लाना चाहिए? इसका जवाब है हां. पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को GST में लाना अच्छा फैसला होगा.
दूसरा सवाल है कि क्या ये इस समय किया जा सकता है? बदकिस्मती से इसका जवाब शायद ‘ना’ होगा. मैं जितना भी चाहूं कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स (Petroleum Products) को GST में शामिल किया जाए, हमें ये मानना होगा कि मौजूदा स्थिति में राज्य सरकारों के लिए ये आय का बड़ा स्रोत है. हर राज्य आय के लिए अलग-अलग VAT लगाते हैं. इसलिए देशभर में सिर्फ एक GST लगने से जहां फिलहाल सेंट्रल एक्साइज और VAT दोनों लगता है, वहां राज्यों की आय में बड़ा फर्क आएगा.
महामारी की वजह से GST कंपन्सेशन का मसला पहले से ही है जिसपर राज्यों और केंद्र के बीच तकरार है. राज्यों के फाइनेंस के मामले में, GST की कमी से उनकी बैलेंस-शीट पर दबाव आया है जिससे राज्य आगे बढ़कर महामारी के दौरान खर्च नहीं कर पा रहे हैं. इनमें से अधिक्तर राज्यों ने उधारी बढ़ाई है जिनपर ब्याज ज्यादा है. इसी वजह से तय डिमांड वाले प्रोडक्ट पर टैक्स लगाने की ताकत छीनने से काफी विरोध होगा. हां, ऐसा जरूरी है कि राज्यों को अपनी वित्तीय हालत सुधारनी होगी और अपने खर्च का पुनः आकलन करना होगा, जिससे ग्रोथ के लिए खर्च की प्राथमिकता तय की जा सके और राज्य सरकारों द्वारा संचालित PSUs से छुटकारा पाकर अतिरिक्त आय पर फोकस किया जा सके. हालांकि, आय के इस ढांचे पर काम करने में थोड़ा लंबा वक्त लगेगा. मुख्य बात ये है कि पेट्रोलियम टैक्स पर निर्भर राज्य इसे GST के तहत लाने का विरोध करेंगे और उन्हें मनाने के लिए ऐसा कंपन्सेशन फॉर्मूला बनाना होगा जो सभी को मंजूर हो.
जैसा कि अभी है, GST कंपन्सेशन फॉर्मूला केंद्र के लिए अनुचित रहा है, हालांकि महंगाई निचले दायरे में है और जिस वजह से नॉमिन ग्रोथ भी धीमी रही. राज्यों की तरफ से कंप्लायंस में सीमित सुधार के बावजूद वे अब भी GST कंपन्सेशन की मांग पर डटे रहे. यही नहीं, आय की गारंटी से राज्यों को इकोनॉमिक ग्रोथ की चिंता के बगैर खर्च बढ़ाने की सहूलियत मिली है. पेट्रोलियम प्रोडक्ट (Petroleum Products) पर लगने वाले टैक्स राज्य में राजनीतिक फैसला है क्योंकि इससे राज्यों को एक वर्ग को सब्सिडी देने के लिए दूसरे सेक्टर से आय हासिल करने का जरिया मिलता है. ये सही आर्थिक नीति है या नहीं ये अलग विषय है – ठीक उसी तरह कि क्या है सही राजनीति है या नहीं.
इसके अलावा, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को GST में आम सम्मति बनना एक चुनौती है जिसके लिए बड़े पॉलिटिकल कैपिटल की जरूरत है. सवाल ये है कि क्या GST रिजिम के लिए पोलिटिकल कैपिटल का इस्तेमाल सही है या इसका इस्तेमाल कहीं और बेहतर हो सकता है? मेरा मानना है कि कई वजहों से दूसरा विकल्प बेहतर होगा. फिलहाल पेट्रोलियम को GST में लाने से ज्यादा जरूरी है GST रिफॉर्म की. दरों के समीकरण और ज्यादा से ज्यादा सामान को एक स्टैंडर्ड रेट में लाकर 3 अतिरिक्त रेट रखना एक आदर्श GST रीजीम होगा. (उदाहरण के लिए देखें – https://egrowfoundation.org/site/assets/files/1360/egrow_wp_no_04_2020.pdf).
ICICI सिक्योरिटीज की एक हाल की स्टडी में देखा गया है कि केंद्र के पास एक्साइज में 8 रुपये घटाने की संभावना है और इससे बजट के अनुमानित खर्चों के लिए जरूरी आय भी हासिल होगी. इसलिए केंद्र की ओर से टैक्स में हल्की कटोती की उम्मीद जरूर है — जिससे राज्य भी स्वेच्छा से कटोती कर सकते हैं. अब तक सरकार के लिए यही सबसे ठीक कदम लगता है.
पेट्रोल-डीजल को GST में लाने का मसला काफी जटिल है जिसके लिए बड़े पॉलिटिकल कैपिटल की जरूरत होगी. पब्लिक फाइनेंस में दबाव ऐसे समय में इसे अमल में लाना और कठिन बनाता है – हालांकि अभी सभी यही चाहते हैं. शायद, दरों के रैशनलाइजेशन को प्राथमिकता देने और पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स (Petroleum Products) पर GST को इस रैशनलाइजेशन के बाद स्थिरता के बाद पब्लिक फाइनेंस सुधरने पर फैसला लेना एक बेहतर स्थिति होगी.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)
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