पेट्रोल व डीजल (Petrol-Diesel) उबल रहे हैं. सरकार कहती है कि आयात घट गया होता तो शायद हालात इतने बुरे नहीं होते. विपक्ष कह रहा है कि टैक्स की मार करारी है. विपक्ष शासित राज्य केंद्र पर ठीकरा फोड़ रहे है. केंद्र सरकार कह रही है कि राज्यों को टैक्स का दोहरा फायदा मिलता है. इस बीच, सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष, जिनकी कई राज्यों में सरकार भी है, कहने से नहीं चुकते कि GST से परेशानी दूर होगी. अब आप पूछेंगे कि जब यह बात है तो पेट्रोल-डीजल पर GST लगा दीजिए, दिक्कत कहां है?
दिक्कत को समझने के पहले एक नजर कुछ खास बातों पर. सबसे पहले तो ये कि 16 फरवरी की खुदरा कीमत के मुताबिक, दिल्ली में अगर 1 लीटर पेट्रोल के लिए (Petrol-Diesel price)आप 89.29 रुपए दे रहे हैं तो उसका करीब 37 फीसदी (32.90 रु) केंद्र सरकार को मिलता है और करीब 23 फीसदी (20.61 रु) दिल्ली सरकार को. यानी खुदरा कीमत का करीब 60 फीसदी सरकारी खजाने में जमा होता है.
इसी तरह डीजल के लिए यदि आप दिल्ली में 79.70 रुपए प्रति लीटर की दर से कीमत चुका रहे हैं तो उसका करीब 40 फीसदी (31.80 रुपए) केंद्र सरकार के खजाने में जा रहा है जबकि 14.66 फीसदी राज्य (11.68 रुपए) राज्य सरकार को मिल रहा है. यानी यहां खुदरा कीमत का आधे से कुछ ज्यादा सरकारों को मिल रह है.
यह तस्वीर का एक पहलू है. अब नजर दौड़ाइए दूसरे पहलू पर. आधार कीमत (31.82 रुपए प्रति) के हिसाब से केंद्र और दिल्ली सरकार मिलकर पेट्रोल पर (Tax on Petrol) 168 फीसदी से भी ज्यादा की दर से कर लगा रहे हैं, वहीं डीजल के मामले में आधार कीमत (33.46 रुपए प्रति लीटर) के हिसाब से केंद्र और दिल्ली सरकार को मिलाकर कर की दर बनती है करीब 130 फीसदी.
यहां ये ध्यान रखना है जरुरी है कि केंद्र सरकार की ओर से एक निश्चित रकम (Specific Rate) के हिसाब से कर लगाया जाता है, वहीं राज्यों की ओर से आधार कीमत का एक निश्चित हिस्सा (Ad Valorem), जिसे फीसदी में सामने रखा जाता है, के साथ एक निश्चित रकम (कुछ राज्यों में) के हिसाब से टैक्स लगाया जाता है. दूसरे शब्दों में ये समझ लीजिए कि आधार कीमत चाहे 31.82 रुपए या फिर 40 रुपए या फिर 25 रुपए, अभी के हिसाब से केंद्र सरकार को 32.90 रुपए ही मिलेंगे, लेकिन आधार कीमत में बदलाव हुआ है तो टैक्स की दर के मुताबिक राज्यों को मिलने वाली रकम में बदलाव होगा.
एक बात और, केंद्र सरकार जितना कर से कमाती है, उसका 41 फीसदी राज्यों को देना होता है. मतलब पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) पर भले ही केंद्र सरकार को राज्यों से ज्यादा पैसा मिल रहा है, लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा राज्यों के पास ही चला जाता है.
पेट्रोल-डीजल पर GST लगाना कितना आसान-कितना मुश्किल? GST की व्यवस्था में टैक्स की दर तय करने के पहले देखा जाता है कि जब GST नहीं था, तब केंद्र और राज्य सरकार मिलाकर कितना टैक्स ले रही थीं. इस हिसाब से अगर दर तय हो तो केंद्र और राज्य को आमदनी का नुकसान नहीं होगा. अब पेट्रोल-डीजल (Petrol-Diesel) के मामले में यहीं पेंच है.
आगे बढ़े, उसके पहले ये समझ लीजिए कि 101वें संविधान संशोधन कानून के मुताबिक, पेट्रोल व डीजल जीएसटी की व्यवस्था में शामिल तो कर लिए गए, लेकिन कानून में कह दिया गया कि जीएसटी काउंसिल बताएगी कि उन पर GST कब से लगेगा और किस दर पर लगेगा. अब आप पूछेंगे कि फैसला करने वाले जीएसटी काउंसिल (GST Council) में कौन-कौन लोग है तो यहां ये जिक्र करना जरुरी होगा कि केंद्र सरकार के वित्त मंत्री पदेन अध्यक्ष होते हैं जबकि वित्त राज्य मंत्री, 28 राज्यों के प्रभारी मंत्री और 3 केंद्र शासित प्रदेश (जहां विधान सभा है- दिल्ली, पुड्डुचेरी व जम्मू-कश्मीर) के प्रभारी मंत्री या अधिकृत व्यक्ति सदस्य होते हैं. यही 33 व्यक्ति मिलकर जीएसटी काउंसिल में कोई फैसला करते है. ये 33 फीसदी अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़े हैं जिनमें से कोई कहीं विपक्ष में तो कहीं कोई सत्ता में. मतलब साफ है कि राजनीतिक तौर पर जितनी बयानबाजी हो जाए, लेकिन सत्तारुढ़ राजनीतिक दलों में जब तक सहमति नहीं बनेगी, पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लागू नहीं हो सकता.
अब सबसे महत्वपूर्ण बात. मान लीजिए पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लागू करने का फैसला हो जाता है तो अगला सवाल होगा किस दर पर? यह पहले ही साफ हो चुका है कि केंद्र और राज्य को मिलाकर पेट्रोल पर 168 और डीजल पर 130 फीसदी की दर से टैक्स लग रहा है. दूसरी ओर कमाई पर असर ना पड़े तो जीएसटी की दर कुछ इसी के आसपास रखनी होगी. दूसरी ओर जीएसटी की चार प्रमुख दरों (5, 12,18, 28) में सबसे ऊंची दर ली जाए और उस पर तंबाकू या तंबाकू से बने उत्पादों की छोड़, बाकी सामान (पेट्रोल-डीजल से चलने वाली मोटर गाड़ी, एरिटेडेट ड्रिंक, वगैरह) के मुताबिक सेस लगाया जाए तो नियमों के मुताबिक टैक्स की कुल दर 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती.
अब कहां 168 और 130 फीसदी और कहां 50 फीसदी? अब सवाल उठता है कि क्या केंद्र और राज्य सरकारें आमदनी में इतनी कमी के लिए तैयार हैं? जवाब है नहीं. हां, अगर तंबाकू से बने उत्पाद की तरह 200 फीसदी से ज्यादा की दर तक सेस लगाने का प्रावधान हो तो बात बन सकती है. लेकिन पेट्रोल-डीजल को तंबाकू, सिगरेट या गुटखा की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
मतलब साफ है. जीएसटी लागू करने का बयान देना सबसे आसान है, लेकिन लागू करना…
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