अब भी नहीं किया तो कब करेंगे सरकार? भारत में उद्योगपतियों के सबसे तेजतर्रार संगठन CII के प्रेसिडेंट और जाने-माने बैंकर उदय कोटक का यह कहना है. उनका कहना है कि अब वो वक्त आ गया है जब सरकार को नोट छापकर गरीबों को बांटने होंगे और उन उद्योगों को भी मदद देनी होगी जहां बड़े पैमाने पर रोजगार जाने का खतरा खड़ा हो गया है.
बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े
कोटक पहले आदमी नहीं हैं जिन्होंने ये बात कही है. कोरोना संकट शुरू होने के समय से ही तमाम दिग्गज अर्थशास्त्री और राजनेता भी एकदम यही बात कह चुके हैं. लेकिन, कोटक का कहना है कि अब इस काम के लिए सही वक्त आ चुका है. जिस वक्त वो यह बात कह रहे हैं उसी वक्त CMIE का सर्वे दिखा रहा है कि देश में 97 परसेंट लोगों की कमाई एक साल पहले के मुकाबले कम हो चुकी है.
इसी दौर में नौकरी खो चुके लोगों की गिनती 1 करोड़ से ऊपर पहुंच चुकी है और ये आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. उद्योग और कारोबार का हाल यह है कि फैक्टरियां जितना माल बना सकती हैं उसका दो-तिहाई भी बिकने का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. इन्हीं सब का असर है कि बैंकों को एक बार फिर अपने कर्ज डूबने का खतरा दिखने लगा है.
मोरेटोरियम की डिमांड
रिजर्व बैंक (RBI) ने हालात समझने के लिए सरकारी और प्राइवेट बैंकों के आला अफसरों के साथ अलग-अलग बैठकें की हैं. हालांकि, उनसे कहा गया है कि सरकारी योजनाओं को तेजी से लागू किया जाए. लेकिन, जवाब में उनकी तरफ से मांग आई एक और मोरेटोरियम की.
साफ है कि कर्ज देने वाले इस वक्त किस्त भरने की हालत में भी नहीं हैं. बैंकों ने मांग की है कि छोटे कर्जों पर किस्त जमा करने में छूट की स्कीम फिर लाई जाए और बड़े कर्जों की किस्त और मियाद बदलने यानी रीस्ट्रक्चर करने की भी छूट दी जाए.
शेयर बाजार और कंपनियों के नतीजे
पिछले साल भर में आए बड़ी कंपनियों के रिजल्ट देख लें या फिर शेयर बाजार के इंडेक्स, इनमें कुछ और ही तस्वीर दिख रही है.
कंपनियों का मुनाफा जबरदस्त उछाल दिखा रहा है और वैसा ही हाल सेंसेक्स और निफ्टी का है. कुछ बड़े सेठों की संपत्ति में तो ऐसा उछाल आया है कि दुनिया भर के अमीर उनके सामने फीके पड़ते दिख रहे हैं.
तो आखिर सच क्या है? बेरोजगार मिडिल क्लास, मंदी की मार झेलते छोटे मझोले व्यापारी, किस्त वापस न आने की आशंका में परेशान बैंकर, गरीबों को पैसा बांटने की सलाह दे रहे उदय कोटक या शेयर बाजार, कंपनियों के नतीजे और अखबारों के पहले पन्नों पर सब कुछ अच्छा है वाले विज्ञापन?
सरकार के लिए चिंता का सबब
इनमें से झूठ तो कुछ भी नहीं है. और यही सरकार की बड़ी चिंता होनी चाहिए. क्योंकि ऐसी हालत में आम आदमी को राहत देनी हो या इकोनॉमी में रफ्तार लाने का इंतजाम करना, यह सरकार की ही जिम्मेदारी बनती है. उदय कोटक भी उसे वही याद दिला रहे हैं और अभिजीत बनर्जी जैसे अर्थशास्त्री तो साल भर पहले से ही यह कह रहे थे.
अब गेंद साफ तौर पर सरकार के ही पाले में है. उसे दिल कड़ा कर बड़े पैमाने पर खर्च बढ़ाना होगा. बहुत से लोगों के लिए रोजगार और उनसे ज्यादा लोगों के खातों में सीधे पैसा डालने का इंतजाम भी करना होगा.
इससे जीवन और आजीविका भी बचेगी, और यही दोनों काम इकनॉमी को पटरी पर लाने में भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. यानी एक तीर से दो निशाने. सवाल यह है कि सरकार यह हिम्मत कब दिखाएगी, क्योंकि अब एक-एक दिन भारी पड़ता जा रहा है.
(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार हैं और यूट्यूब चैनल 1ALOKJOSHI चलाते हैं. लेख में व्यक्त की गई राय उनकी निजी है.)
ये भी पढें: हाशिये पर मौजूद तबके को ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ मुहैया कराने का वक्त