आंकडें में कई कहानियां होती है. यकीन नहीं होता है ना. अब जीडीपी (GDP) यानी सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों को ही ले लीजिए.
शुक्रवार देर शाम आंकड़ों की नयी खेप आयी. कारोबारी साल 2020-21 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए नया आंकड़ा आया तो पुराने कई आंकड़ों में फेरबदल कर दिया गया. तमाम आंकड़ों में कुछ अच्छा दिखा तो कुछ बुरा भी. बहरहाल, सबसे पहले बात कर लेते हैं अच्छे की.
अच्छी बात ये हुई कि अक्टूबर-दिसंबर में 0.4 फीसदी की विकास दर के साथ अर्थव्यवस्था में ‘तकनीकी मंदी’ का दौर खत्म हुआ. दरअसल, दो लगातार तिमाही तक जीडीपी (GDP) में गिरावट तो अर्थशास्त्री इस स्थिति को ‘मंदी’ कहते हैं (जीडीपी बढ़ने की दर घट जाए तो उसे सुस्ती कहते हैं, अमूमन लोग सुस्ती और मंदी को एक ही मान लेते हैं). दूसरी तिमाही के आंकड़े आने के पहले ही 11 नवम्बर, 2020 को रिजर्व बैंक के मासिक बुलेटिन में बता दिया गया भारत में ‘तकनीकी मंदी’ आ चुकी है है. 27 नवम्बर को दूसरी तिमाही के आंकड़े आने के साथ ही इस बात की तस्दीक भी हो गयी. अब ये संजोग ही है है कि दिसम्बर में रिजर्व बैंक ने ही अनुमान जताया कि तीसरी तिमाही में जीडीपी (GDP) एक बार फिर से बढ़ने के दौर में आ जाएगी और 26 फरवरी को जब आंकड़े आए तो ऐसा ही हुआ.
क्या हुआ इन तीन महीनों में? एक तरफ जहां खेती-बारी लगातार बुलंदी पर है, वहीं उद्योग जगत ने भी अच्छी छलांग लगायी। ध्यान रहे कि ये दोनों अर्थव्यवस्था में करीब 43-44 फीसदी का हिस्सा रखते हैं. मतलब आधे से कुछ कम हिस्से में बेहतरी दिखी और इसने पूरी अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को नयी शक्ल दे दी. इन तीन महीनों के दौरान त्यौहारी मांग से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिली. दूसरी ओर सरकार के खर्चों में भी तेजी आयी. घर बनाने से लेकर सड़क बनाने और पुल बनाने का काम बढ़ा जिससे कम से कम 400 तरह की आर्थिक गतिविधियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से बढावा मिला.
सरकार का बयान किया कि ताजा आंकड़ें ‘वी’ आकार के सुधार की गवाही दे रहे हैं. अंग्रेजी के ‘वी (V)’ का अर्थशास्त्री ये भी मतलब निकालते हैं कि पहले अर्थव्यवस्था गोता खाती है जैसा कि पहली दो तिमाही में हुआ और फिर ऊपर उठती है जैसा कि तीसरी तिमाही में हुआ और चौथी तिमाही में होने का अनुमान है. सरकार यह कहने से भी नहीं हिचकी कि कोविड के पहले के सकारात्मक आंकड़ों की वापसी हो चुकी है.
तो क्या कहानी बस इतनी ही है?
बिल्कुल नहीं. अब आंकड़ों में कुछ ऐसी बातें भी है जो शायद कड़वी हैं, लेकिन हकीकत हैं. सबसे पहले बात तो ये कि प्रति व्यक्ति आय में गिरावट का अनुमान है. 2011-12 की कीमतों के आधार पर प्रति व्यक्ति आय 2020-21 के दौरान 85929 रुपये का अनुमान है जबकि 2019-20 में यह रकम 94566 रुपये रहने का अनुमान लगाया गया, यानी नौ फीसदी से ज्यादा की कमी. इतना ही नहीं, महंगाई दर कम होने के बावजूद ताजा कीमतों के आधार पर प्रति व्यक्ति आय 1.34 लाख रुपये से घटकर 1.27 लाख रुपये पर आने का अनुमान है, यानी करीब 5 फीसदी कम.
अब कमाई कम होगी तो खर्चा कम होगा ही. इसका सबूत भी है. पहली तिमाही में उपभोक्ता खर्च में 26 फीसदी से ज्यादा की गिरावट हुई थी, तीसरी तिमाही में हालात सुधरी, फिर भी 2.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी. मतलब ये है कि अभी मांग में उम्मीद के मुताबिक तेजी नहीं दिख रही और हालात जल्दी बदल जाएंगे, इसके भी मजबूत संकेत नहीं दिखते. यह एक ऐसा पहलू है जो आर्थिक सुधार की उम्मीदों को हकीकत का आयना दिखाता है.
अब जो बड़ी तस्वीर है वो है पूरे साल भर के लिए जीडीपी (GDP) के अनुमान को लेकर. रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया कि कारोबारी साल 2020-21 के दौरान जीडीपी में गिरावट 7.5 फीसदी की रहेगी. सांख्यिकी मंत्रालय ने पहले अनुमान लगाया कि यह गिरावट 7.7 फीसदी की रहेगी।. आर्थिक समीक्षा ने भी इसी को अपनाया. लेकिन गौर करने की बात ये थी कि ये अनुमान पहली दो तिमाही के आंकड़ों के आधार पर लगाए गए, जबकि अब ताजा अनुमान तीन तिमाही के आंकड़ों और चौथी तिमाही के पूर्वानुमान (आंकड़े मई में जारी किए जाएंगे) के आधार है और हकीकत के काफी करीब है.
सांख्यिकी मंत्रालय का ताजा आंकलन है कि 2020-21 के पूरे कारोबारी साल के दौरान जीडीपी (GDP) में 8 फीसदी की गिरावट हो सकती है. अगर ऐसा हुआ तो 1950-51 के बाद, जब से सालाना विकास के आंकड़ों का जुटाना शुरु हुआ है, से लेकर अब तक की सबसे बड़ी गिरावट होगी. इसके पहले की सबसे बड़ी गिरावट 5.2 फीसदी की है जो कारोबारी साल 1979-80 में दर्ज की गयी थी. उसके पहले चार और मौके (1957-58. 1965-66, 1966-67 और 1972-73 देखने को मिले जब जीडीपी (GDP) घट गयी थी.
अब आठ फीसदी के सालाना अनुमान के साथ तीन तिमाहियों के आंकड़ों को मिलाकर देखे तो चौथी तिमाही एक बार फिर बुरी खबर ला सकती है. जनवरी-मार्च के दौरान जीडीपी में 1.1 फीसदी की गिरावट हो सकती है.
अब यहां ये भी जिक्र करना जरूरी है कि पहली अप्रैल से शुरु होने वाले कारोबारी साल 2021-22 में विकास दर दोहरे अंक में जाती दिखेगी. लेकिन उसकी एक बड़ी वजह होगी निचला आधार, यानी चालू कारोबारी साल के कमजोर आंकड़े. इससे निकलने के बाद यह जरूरी कि सरकार और निजी क्षेत्र, दोनों को ओर से खुलकर निवेश हो और मांग में तेजी आए तभी जाकर दोहरे अंक के बाद एक अंक की विकास दर खुशी दे सकेगी और सतत विकास का दौर शुरु हो सकेगा.
मतलब साफ है, तकनीकी मंदी का दौर खत्म हुआ है, अर्थव्यवस्था के लिए परेशानियां नहीं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते.)
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