कोविड-19 एक ऐसी महामारी बन गई है जिससे खुद को बचाना आसान नहीं है. इसी वजह से वैज्ञानिक भीड़भाड़ से बचने के लिए कह रहे हैं.
इसकी किसी विचारधारा या दलगत राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है. ये वायरस लोगों के संपर्क में आने पर फैलता है और अब तो ये भी कहा जा रहा है कि ये हवा से भी फैल रहा है. ऐसे वक्त पर बड़ी भीड़ इकट्ठा करना एक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है.
ऐसे ही हालात में दिल्ली में आज (26 मई को) किसानों का जमावड़ा और प्रदर्शन होने जा रहा है. केंद्र के लाए गए 3 कृषि कानूनों के विरोध में शुरू किए गए आंदोलन को आज 6 महीने पूरे हो गए हैं और किसान अपने इसी संघर्ष को याद करते हुए दिल्ली में इकट्ठे हो रहे हैं.
विरोध-प्रदर्शन और संवाद हमेशा से ही भारतीय लोकतंत्र की पहचान रहे हैं. लेकिन, इस भीड़ को इकट्ठा करने वाले आयोजक और इसे समर्थन देने वाली राजनीतिक पार्टियां दोनों ही कोविड के मुश्किल हालात में पालन किए जाने वाले जरूरी नियमों को उल्लंघन कर रहे हैं.
हमें याद रखना चाहिए कि पिछले महीने ही देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव करने को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की जमकर खिंचाई की थी. इन चुनावों के प्रचार में जगह-जगह रैलियां और भीड़ इकट्ठी की गई और इनमें कोविड के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं.
अप्रैल में उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ मेले में लाखों लोगों के इकट्ठा होने की भी कड़ी आलोचना हुई थी.
मार्च 2020 के आखिरी हफ्ते में जब लॉकडाउन का ऐलान किया गया था, उस वक्त कोलकाता के पार्क सर्कस मैदान में CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग पाबंदियों का पालन करते हुए धरना स्थल से उठ गए थे.
ये लोग करीब 75 दिन के प्रदर्शन के बाद चले तो गए, लेकिन अपनी मौजूदगी बरकरार रखने के लिए इन्होंने अपने जूते या कपड़े अपना नाम लिखकर वहीं पर छोड़ दिए थे. यह विरोध को जारी रखने का एक क्रिएटिव तरीका था.
किसानों का लगातार जारी प्रदर्शन और इसमें तेजी आने से कोविड संक्रमण में इजाफा होने का खतरा पैदा हो रहा है. पहले ही पूरा उत्तर भारत कोविड की दूसरी लहर से उबर नहीं पा रहा है. गुजरे कुछ हफ्तों से हर दिन देश में 4,000 से ज्यादा लोगों को इस महामारी से अपनी जान गंवानी पड़ रही है.