राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतना कुछ कहा है कि हर पंक्ति पर अलग से चर्चा हो सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार 8 फ़रवरी को राज्यसभा में बोलते हुए किसानों के मुद्दे पर अतुलनीय साहस का प्रदर्शन किया है. तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग के साथ दिल्ली की सीमाओं को किसान घेरकर बैठे हुए हैं.
26 जनवरी को किसान आंदोलन (Farmer Protest) अराजकता के चरण तक जा पहुँचा और अब तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस अराजकता को स्थापित करने की कोशिश हो रही है और ऐसे समय में राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने एक ऐसी बात कह दी है जिसको बोलना देश का हर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री चाहता था, लेकिन यह बात बोलने की साहस सार्वजनिक तौर पर कोई नहीं कर पाता था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में कहा कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी किसानों के भले का नहीं चुनावी कार्यक्रम होता था और इससे छोटे किसानों को कभी लाभ नहीं होता था. उन्होंने इसके अलावा भी पारंपरिक तरीक़े से किसानों के भले के नाम पर की जाने वाली राजनीतिक खानापूरी और उससे सिर्फ़ बड़े किसानों को मिलने वाले लाभ के बारे में स्पष्ट तौर पर कह दिया. जब दिल्ली में किसान आंदोलन इस अराजक स्वरूप में है, उस समय कृषि क़र्ज़ माफ़ी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर स्पष्ट राय रखना राजनीतिक तौर पर ख़तरनाक हो सकता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की बेहतरी के लिए एक के बाद एक जिस तरह के निर्णय लिए हैं और उन्हें सफलतापूर्वक लागू किया है, उससे किसानों का मोदी पर बढ़ा भरोसा ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुलेआम कृषि क़र्ज़ माफ़ी ख़त्म करने की बात उच्च सदन में कह दे रहे हैं.
कृषि क़र्ज़ माफ़ी पर खुलकर बोलने का साहस भी पहले के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री नहीं कर पाते थे. इसी सन्दर्भ में एक अतिमहत्वपूर्ण वाक़या मुझे ध्यान में आता है. 2008 के बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 31 मार्च 2007 तक बैंकों और सहकारी बैंकों से लिए गए सभी कृषि क़र्ज़ों को माफ़ करने का एलान किया था और कहा था कि इससे छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होगा. उन किसानों को नया क़र्ज़ मिल सकेगा. इस क़र्ज़ पर माफ़ी पर 50000 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित था, जिसे बाद में 60000 करोड़ किया गया. इससे कुल 3 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को सीधा लाभ मिलने की बात कही गई थी. इसके अलावा वन टाइम सेटलमेंट से एक करोड़ किसानों को लाभ मिलने की बात यूपीए सरकार में कही गई थी. पी चिदंबरम ने बजट में एलान किया और देश की लोकलुभावन राजनीतिक गिरावट की सबसे बड़ी तारीख़ के तौर पर इसे याद किया जाता हैं. बैंकों की बैलेंसशीट बिगाड़ने में 2008 के बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की कर्जमाफी का एलान भी महत्वपूर्ण रहा और कमाल की बात इससे छोटे और सीमांत किसानों को कोई लाभ ही नहीं हुआ. इसके बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने भी कृषि क़र्ज़ माफ़ी कर दी और दूसरे राज्य में भी किसानों ने क़र्ज़ माफ़ी के लिए सरकारों पर दबाव बनाया, जो अभी भी गाहे-बगाहे दिखता रहता है.
इसका मतलब अगर 4 करोड़ किसानों को क़र्ज़ माफ़ी का लाभ हुआ मान लें तो भी देश का क़रीब 10 करोड़ किसान इस लाभ से वंचित रह गया. इसी का ज़िक्र सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 के बजट पर बात करते हुए किया था.
देश में किसानों की दशा और बैंकों की दशा बिगाड़ने वाले 2008 के बजट से जुड़ा एक अत्यावश्यक सन्दर्भ मुझे याद आ रहा है. उसका ज़िक्र ज़रूरी है. देश के सबसे बड़े बिज़नेस मीडिया समूह के फाउंडर और मैनेजिंग एडिटर प्रतिवर्ष बजट के बाद वित्त मंत्री का साक्षात्कार किया करते थे या यूँ कहें कि सिर्फ़ एक ही साक्षात्कार सालाना करते थे, लेकिन उसका इंतज़ार सबको रहता था. खासकर बजट में की गई घोषणा को ठीक से समझने के लिए. 28 फ़रवरी 2008 के बजट के बाद वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साक्षात्कार कर रहे थे. सबसे बड़े कारोबारी मीडिया चैनल समूह के हिंदी चैनल पर वही साक्षात्कार लाइव चल रहा था. साक्षात्कार शुरू ही हुआ था कि अचानक वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने माइक निकाल दिया और उठकर खड़े हो गए. तमतमाए हुए चिदंबरम को चैनल के प्रबंध संपादक ने सँभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे. दरअसल, उन्होंने वित्त मंत्री पी चिदंबरम से बजट में क़र्ज़ माफ़ी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और बैंकों को होने वाले घाटे की भरपाई के इंतज़ाम से सवालों की शुरुआत कर दी थी और दो बार चिदंबरम ने उस सवाल को टालने की कोशिश की, लेकिन तीसरी बार घुमाकर सवाल पूछने पर चिदंबरम बुरी तरह से नाराज़ हो गए और माइक निकालकर उठकर चल दिए. इसके बाद बड़ी मुश्किल से चिदंबरम दोबारा साक्षात्कार देने को तैयार हुए और उस प्रश्न को साक्षात्कार से बाहर रखने की शर्त पर ही तैयार हुए. हिंदी बिज़नेस चैनल से तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साक्षात्कार छोड़कर जाने वाली सारी क्लिप डिलीट करा दी गई थी.
देश का हर अर्थशास्त्री यह बात लगातार कहता रहा कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी से किसानों का भला नहीं होने वाला और इससे बैंकिंग तंत्र भी ध्वस्त हो जाता है. इसी से समझा जा सकता है कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी कितना बड़ा चुनावी कार्यक्रम था और इससे किसानों का क़तई भला नहीं होता था. वरना तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम तो खुश होते कि इस पर तीन प्रश्न ही क्यों, पूरा साक्षात्कार ही इसी पर होना चाहिए. सोमवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क़र्ज़ माफ़ी के बहाने होने वाले राजनेताओं के चुनावी कार्यक्रम की बखिया उधेड़ दी और स्पष्ट संदेश दे दिया कि किसी भी क़ीमत पर अब कृषि क़र्ज़ माफ़ी की किसान विरोधी व्यवस्था को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.
देश, बैंकिंग व्यवस्था और किसानों के भले के लिए किए गए इस अतुलनीय दुस्साहस के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष प्रशंसा की जानी चाहिए.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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