सरकार के लिए मिलकर रिजर्व बैंक (RBI) एक जंग नकली करेंसी के खिलाफ भी लड़ रहा है. गुजरे कई वर्षों से इस मोर्चे पर लगातार और कड़ी मेहनत की जा रही है.
भारत के वित्तीय ढांचे और अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाने के लिए आतंकी संगठन जाली करेंसी देश में डालने की रणनीति काफी वक्त से इस्तेमाल कर रहे हैं. फर्जी नोट दशकों से लगातार हर सरकार और रिजर्व बैंक के लिए मुश्किल रहे हैं. ये एक भयंकर समस्या है जो कि इन नोटों को अनजाने में लेने वाले हर शख्स को नुकसान पहुंचाती है.
वित्त वर्ष 2020-21 में जाली नोटों का सर्कुलेशन करीब 30 फीसदी घटा है. जिस स्तर की समस्या है उसमें इसे एक बड़ी गिरावट कहा जाएगा. RBI की सालाना रिपोर्ट में इस आंकड़े को साझा किया गया है.
RBI ने आम लोगों में इन जाली नोटों को लेकर जागरूकता पैदा करने की बड़ी मुहिम चलाई है. लोगों को असली और नकली नोट पहचानने के तरीके बताए गए हैं और शायद इसका असर दिखाई दे रहा है.
ज्यादातर नकली देश के बाहर छपते हैं. आश्चर्यजनक तौर पर फर्जी करेंसी छापने वाले भी अपनी टेक्नोलॉजी को उस स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं जहां से वे RBI के छापे जाने वाले असली नोटों की तरह नोट बना सकें.
हालात की गंभीरता को ऐसे समझा जा सकता है कि नोटबंदी और देश में नए नोट छपने की शुरुआत होने के कुछ हफ्तों में ही देश में नकली नोट भी आने लगे थे.
नकली नोटों की संख्या में बड़ी गिरावट की वजह लॉकडाउन और आवाजाही की पाबंदी भी हो सकती है. हालांकि, इसका बड़ा क्रेडिट अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर हो रही मुस्तैदी से चौकसी को जाता है.
इन सीमाओं पर कुरियर्स, जिनमें स्कूल जाने वाले बच्चे भी शामिल हैं, उन्हें भारत में नकली करेंसी डालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सीमाओं पर सख्त निगरानी से देश की अर्थव्यवस्था में घुसपैठ करने वाली जाली करेंसी को रोकने में बड़ी सफलता मिल सकती है.
डिजिटल ट्रांजैक्शंस में हो रहे इजाफे से भी नकली करेंसी का रास्ता रुक रहा है. सरकार और प्रशासन को वो हर कदम उठाना चाहिए जिससे देश की अर्थव्यवस्था में घुन की तरह से लग रही इस काली करेंसी की मुसीबत को जड़ से खत्म किया जा सके.