Election states- किसी भी सरकार की आर्थिक नीति सीधे तौर पर उसके राजनीतिक विस्तार से जुड़ी होती है. पहले की सरकारें किसानों की क़र्ज़ माफ़ी, सब्सिडी, नए रूटों पर रेलगाड़ियों के एलान और करदाताओं को छूट देकर सरकारें अपने राजनीतिक विस्तार की योजना पक्की करती रही हैं. इस सबके लिए बजट का ख़ासकर इंतज़ार किया जाता था और इस बात पर विशेष नज़र रहती थी कि किस मतदाता समूह को सरकार बजट में क्या ख़ास देने जा रही है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट के ज़रिए अपने नया मतदाता समूह जोड़ने के राजनीतिक खेल को नया आयाम दे दिया है. सबसे पहले रेल बजट ख़त्म करके मोदी सरकार ने एक-एक रेलगाड़ी के एलान पर सांसदों के लगातार मेज़ थपथपाने वाला लोकलुभावन दृष्य ख़त्म कर दिया और इसी के साथ रेल बजट के मेगा इवेंट के ज़रिये होने वाली राजनीति को नॉन इवेंट बना दिया. करदाताओं को भी सीधे छूट करे नाम पर मोदी सरकार ने पिछले 5 वर्षों में भी या अभी भी लगभग ना के बराबर सीधी छूट दी है. महिला, गरीब के नाम पर अलग से ऐलान होने भी बंद हो गए. अब प्रश्न यही उठता है कि आख़िर मतदाता समूहों को सीधी छूट न देने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार चुनाव कैसे जीतती जा रही है. इसका जवाब पहले के भी बजटों में और इस बजट में विशेषकर दिख जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा मतदाता समूह साधने का ज़रिया बजट को बना दिया और उस बड़े मतदाता समूह को साधने का ज़रिया इस तरह से तैयार किया है कि उसमें सीधे तौर पर किसी एक मतदाता समूह को खुश करने की लोकलुभावन नीति का आरोप लगाना भी कठिन है और ज़्यादा बड़े वर्ग को बहुत मिलता दिखता है. इस बजट वाले वर्ष 2021 में 5 राज्यों में चुनाव होना है. इसीलिए मोदी सरकार के इस बजट में उन 5 राज्यों को सीधे तौर पर साधने की कोशिश स्पष्ट दिखती है. उज्ज्वला में एक करोड़ नए लोगों को जोड़ना और पहले से चल रही प्रधानमंत्री शहरी और ग्रामीण आवास योजना के ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को घर देकर उनके घरों में पैठ बनाने की योजना वायरस काल में तेज़ी से अमल में लाई गई और अब चुनावी राज्यों में बड़ी योजनाओं के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिल खोलकर बजट प्रस्ताव दिया है. अगर चुनावी राज्यों को अलग-अलग विकास परियोजनाओं के लिए दी गई रक़म को ध्यान से देखें तो किसी भी क्षेत्र के लिए दी गई सर्वाधिक रक़म से ज़्यादा रक़म सिर्फ़ चुनावी राज्यों के लिए आवंटित की गई है.
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम (Election states) की अलग-अलग विकास परियोजनाएं को लिए इस बजट में वित्त मंत्री ने 2 लाख 27 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. पश्चिम बंगाल में कोलकाता-सिलीगुड़ी के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना का प्रस्ताव बजट में वित्त मंत्री ने पेश किया है. पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय राजमार्ग पर 25,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, इससे पश्चिम बंगाल में 675 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़ा जाएगा. 34 हजार करोड़ रुपये असम में राष्ट्रीय राजमार्ग पर खर्च होंगे. चुनावी राज्य तमिलनाडु को भी वित्त मंत्री ने 3500 किलोमीटर का राष्ट्रीय राजमार्ग दिया है, इस राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण अगले वर्ष से शुरू हो जाएगा. इस बजट में घोषित 1100 किलोमीटर का घोषित राष्ट्रीय राजमार्ग केरल से गुजरेगा. केरल में इस पर 65 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे. इसके तहत मुंबई-कन्याकुमारी कॉरिडोर भी बनेगा.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हवाई अड्डा, राष्ट्रीय राजमार्ग और ऐसी कई विकास परियोजनाएं मोदी सरकार ने सौग़ात में दी थीं. सरकार के कामों और बजट के ज़रिये राजनीतिक विस्तार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह शैली पहले की सरकारों से बिल्कुल अलग रही है. हालांकि, प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी भी इसी तरह से बड़े राजनीतिक विस्तार की कोशिश अपने कार्यकाल में कुरते रहे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह संदेश देने में असफल रहे और 2004 में इसी वजह से उनकी सरकार सत्ता से बाहर हो गई. इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनका प्रचार तंत्र दुरुस्त है. जिसके लिए, जितना किया, उस बात को मज़बूती से वहां तक पहुंचाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहले गुजरात में और फिर देश भर में मिली सफलता का ही प्रमाण है कि उन्हें कामयाबी लगातार मिलती रही है. एक फ़रवरी 2021 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का पेश किया बजट अपने राजनीतिक विस्तार के लिए सरकारी योजनाओं के सफलतापूर्वक उपयोग करने की मोदी सरकार सफलता का शानदार दस्तावेज भी है.
(लेखक- वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी ब्लॉगर हैं.)
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