देश का अर्थतंत्र बड़े बदलाव के लिए तैयार हो रहा है और ये उम्मीद जगाता है

कोरोना, नोटबंदी, GST जैसे झटकों (Economic Shock) से जिसका सामना हुआ है उसके मन में यह बात बैठ गई है कि फिटनेस ऐसी हो कि हर शॉक पचाया जा सके.

Indian economy is coming back on track, industrial production reached the level before Covid

घरेलू आर्थिक गतिविधियों में तेजी को बताते हुए कहा गया है कि भारत का व्यापारिक आयात सितंबर में 56.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के ऐतिहासिक मासिक उच्च स्तर को छू गया है, जबकि महीने के दौरान आयात में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई. खासकर सोना, वनस्पति तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामान में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है.

घरेलू आर्थिक गतिविधियों में तेजी को बताते हुए कहा गया है कि भारत का व्यापारिक आयात सितंबर में 56.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के ऐतिहासिक मासिक उच्च स्तर को छू गया है, जबकि महीने के दौरान आयात में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई. खासकर सोना, वनस्पति तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामान में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है.

Economic Shock: कुछ मोटिवेशनल कहानियों की कॉमन थीम तो आप जानते ही हैं – ‘झटके लीडर बनाते हैं और बड़े झटके लीडर को महान बनाते हैं.’

इस थीम के चश्मे से आप अपने देश के अर्थतंत्र से जुड़े हर भागीदार को देखना शुरू कीजिए. एक बड़ा बदलाव आपको साफ दिखेगा. जो ‘भाग्यशाली’ फिलहाल नौकरी में हैं (इनकी संख्या अभी बहुत कम है) वो अपने अंदर के टैलेंट को बाहर लाने में लगे हैं. जो नौकरी तलाश रहे हैं वो उन वैल्यू को खोजने में लगे हैं जिनकी अभी सबको जरूरत है.

कंपनियों में इनोवेशन की ललक है. नए विचारों का खुलकर स्वागत हो रहा है. फैसले लेने में लचीलापन दिख रहा है. सरकारी तंत्र को भी लगने लगा है कि इस संकट के दौर में कोई ऐसा काम ना हो जाए जो मूड खराब करे.

कह सकते हैं कि इस बात पर आम सहमति है कि कोरोना संकट से हुए नुकसान से बाहर आना है. लेकिन इस बार की इच्छा शक्ति पहले से अलग है.

अलग क्याक्या दिख रहा है?

हाल के दिनों में अर्थतंत्र के कई भागीदारों से बात करने का मौका मिला.

  • मीडिया वालों को  लगता है कि नए रेवेन्यू मॉडल की जरूरत है.
  • MSME सेक्टर के कारोबारियों का मानना है कि सरकार के भरोसे रहने से काम नहीं चलेगा.
  • सर्विस सेक्टर टेक्नोलॉजी अपनाने में लगा है.
  • मैन्युफैक्चरिंग वाले लंबी प्लानिंग के साथ काम करने के मॉडल पर स्विच करना चाह रहे हैं.

कुल मिलाकर कहा जाए तो ‘सब चलता है’ वाला रवैया बदल रहा है – नौकरी करने वालों में भी और कारोबारियों में भी.

बदलाव की वजह क्या है?

इस बदलाव की वजह अर्थतंत्र को बार-बार लगने वाले झटके (Economic Shock) हैं. नोटबंदी ने हिलाया तो GST ने फिर से झकझोर दिया. और कोरोना संकट के बाद तो सबकुछ ठप ही हो गया. चार साल में तीन बिन बुलाए बड़े शॉक ने सबको डार्विन के ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ की थ्योरी की याद दिला दी.

तीनों झटकों से जिसका सामना हुआ है उसके मन में यह बात बैठ गई है कि फिटनेस ऐसी चाहिए कि हर छोटे-बड़े शॉक को पचाया जा सके. कह सकते हैं कि हम सभी अब झटकों के खिलाड़ी हो गए है. और यह भावना भी बलवती होती जा रहा है कि आगे बढ़ना है, किसी तरफ से सपोर्ट नहीं मिलने के बावजूद.

इस बदलाव के नतीजे अभी तुरंत नहीं दिखेंगे. लेकिन यह बदलाव ऐसे समय में हो रहा है जब हम डेमोग्राफिक डिविडेंड से मिलने वाले संभावित फायदों के मौके खोने वाले थे.

मेरे अंदर का आशावादी मुझे जोर-जोर से कह रहा है कि इस बदलाव के भी उतने ही दूरगामी परिणाम होंगे जितने 1991 में पॉलिसियों में बड़े बदलाव के बाद दिखे थे.

मेरे अंदर का संशयी यह जोड़ने को कह रहा है कि इस बदलाव को पंख लगे इसके लिए जरूरी है कि अभी कोई और झटका (Economic Shock) ना लगे, राजनीतिक माहौल ना बिगड़े, सरकार जबरदस्ती कोई नियम-कानून न लगा दे.

ये ऐसी विश लिस्ट नहीं है जो पूरी ना हो सके. इसलिए मेरे अंदर का आशावादी सारे संशयों पर भारी पड़ा रहा है और मुझे कह रहा है देश की अर्थव्यवस्था पर फिर से बुलिश होने का समय आ गया है.

ध्यान से सोचिए, बिना किसी पूर्वाग्रह के. आप भी मेरी बातों से सहमत होंगे!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कॉलम में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. लेख में दिए फैक्ट्स और विचार किसी भी तरह Money9.com के विचारों को नहीं दर्शाते)

Published - March 16, 2021, 10:46 IST