इस साल के पहले दो महीनों में आर्थिक मोर्चे पर कुछ चिंताजनक बातें सामने आई हैं – वहीं इस महीने में बढ़ते कोरोना मामलों की वजह से कई जगह लॉकडाउन लगाया जा रहा है. बतौर तिमाही, जनवरी, फरवरी और मार्च (वित्त वर्ष 202-21की चौथी तिमाही) में दिख रहा है कि भारत में आर्थिक रिकवरी (Economic Recovery) कितनी मुश्किलें आ रही हैं.
जनवरी का डाटा दिखाता है कि इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) पिछले साल के मुकाबले 1.6 फीसदी कम रहा है. वहीं दिसंबर 2020 की तुलना में ये 1 फीसदी कम था – यानि सिर्फ एक महीने हल्की बढ़त आई.
साथ ही, फरवरी में रिटेल महंगाई (CPI) बढ़कर 5.03 फीसदी हो गई, जिससे भविष्य में बढ़ती महंगाई को लेकर इकोनॉमी के लिए चिंता हो सकती है और ब्याज दरों पर मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी के फैसला पर भी महंगाई का असर हो सकता है. फिलहाल महंगाई का लक्ष्य 2 से 6 फीसदी है.
एक तरफ ये निराशाजनक आंकड़े हैं, तो वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र और पंजाब ने कुछ इलाकों में कड़ाई की है ताकि बढ़ते कोरोना मामलों पर रोक लगाई जा सके. भारत में कई और इलाकों में ऐसी पांबदियां लग सकती हैं जिससे ट्रेंड बिगड़ सकता है.
इस वजह से चौथी तिमाही में इकोनॉमिक ग्रोथ (Economic Recovery) को नुकसान होगा जिससे पूरे वित्त वर्ष 2020-21 के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर भी असर होगा.
डाटा के मुतबिक मूडीज एनालिटिक्स का कहना है कि जनवरी का सुस्त इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन ये दिखाता है कि भारत में आर्थिक रिकवरी उतनी मजबूत नहीं है जितनी पहली नजर में लगती है. उनके मुताबिक, घरेलू डिमांड महामारी के पहले के स्तर तक नहीं पहुंची, हालांकि 2020 की तीसरी तिमाही में प्राइवेट फाइनल कंजंप्शन में अच्छा सुधार दिखा है. घरेलू डिमांड में स्थिर सुधार से भारत के इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में रिकवरी आएगी क्योंकि भारत की इकोनॉमी में घरेलू डिमांड की भूमिका ज्यादा है ना कि एक्सपोर्ट की.
वहीं दूसरी ओर महंगाई का ट्रेंड चिंता पैदा कर रहा है क्योंकि इस समय इकोनॉमिक रिकवरी (Economic Recovery) अभी मजबूत नहीं हुई और स्थिर नहीं है. गैर-शहरी इलाकों में खाद्य और अन्य सामान की कीमतें बढ़ी हैं, हालांकि ग्रामीण इलाकों में खाद्य महंगाई धीमी रही.
एक्यूटे रेटिंग्स एंड रिसर्च के चीफ एनालिटिकल ऑफिसर सुमन चौधरी का मानना है कि रिजर्व बैंक को मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव करने होंगे. उनका कहना है, “रिटेल महंगाई के ट्रेंड में तेज बदलाव ये दर्शाता है कि आगे महंगाई से अर्थव्यवस्था में दबाव की संभावना है. रिटेल फ्यूल की कीमतों में तेज बढ़क से ट्रांसपोर्ट की महंगाई में उछाल आया है. जनवरी 2021 में खाद्य महंगाई में दिखी गिरावट ऊंचे बेस की वजह से रही (जनवरी 2020 में सब्जियों के दाम ज्यादा थे). लेकिन अब इसमें उलटा ट्रेंड हैं क्योंकि खाने के तेलों, मीट और दालों की कीमतों में महंगाई तेजी से बढ़ी है. CPI इस चिंता की पुष्टी करता है कि आगे आर्थिक रिकवरी (Economic Recovery) के बीच कोर इन्फ्लेशन बढ़ सकती है. रिजर्व बैंक मॉनेटरी पॉलेसी के लिए इकोनॉमिक रिकवरी के साथ ही महंगाई दर पर नजर बनाए हुए है.”
इस डाटा और महामारी की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर वैक्सीनेशन ड्राइव को तेजी से विस्तार करने की जरूरत है ताकि भारत की इकोनॉमी भी मजबूत हो सके.
आंकड़े इस विश्वास को और मजबूत करते हैं कि वैक्सीन ही ना सिर्फ जिंदगियों को बल्कि रोजगार को भी सुरक्षित करने के लिए जरूरी है. उम्र पर आधारित वैक्सीनेशन में प्राथमिकता की बजाय अब सरकार को बड़े स्तर पर कल्सटर्स में टीकाकरण करने की जरूरत है खास तौर पर उन इलाकों में जहां मामले बढ़ रहे हैं – बिना उम्र या कोमॉर्बिडिटी की पांबदी के.
मुंबई का उदाहरण लेकर इस विचार के पीछे का तर्क समझा जा सकता है. कोरोना वायरस से गहरी नींद में जाने से पहले मुंबई जैसा शहर कभी नहीं सोता था. अर्थव्यवस्था (Economic Recovery) की जरूरत है कि लोगों को बड़ी संख्या में काम करने के लिए बाहर निकलना होगा, आजीविका के लिए शहर की लाइलाइन – भीड़-भाड़ वाली लोकल ट्रेन में सफर करना होगा. यही लाइफलाइन संक्रमण फैलने का भी एक कारण बन रही है. इस ट्रेन में चढ़ने वाले लोग हर उम्र के हैं – और आर्थिक स्थिति की वजह से इनके पास ट्रेन लेने का जोखिम लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. अब सोचिए अगर इनमें से ज्यादातर यात्रियों के बाहर आने-जाने से पहले वैक्सीन लगा दी जाए तो क्या होगा?
इसी सोच के आधार पर तेजी से वैक्सीनेशन संक्रमण रोकने में मदद करेगा और इस स्तर तक इसे सीमित कर देगा जिससे लोगों के जीवन और रोजी-रोटी दोनों पर असर ना पड़े.