भारत को अपने टीकाकरण अभियान की समीक्षा करने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट भी इस पर केंद्र की आलोचना कर चुका है. हालांकि, वैक्सीनेशन पर कई राज्यों के कामकाज में भी खामियां रही हैं. राजस्थान में टीकों की बर्बादी को लेकर सवाल उठ रहे हैं. वहीं, पंजाब में सरकारी टीकों को निजी अस्पतालों को बेचकर मुनाफा कमाने का आरोप लगाया गया है. तेजी से रूप बदलते वायरस के खिलाफ टीकाकरण ही एक मात्र हथियार है. केंद्र और राज्य मिलकर काम करें और वैक्सीनेशन ड्राइव से राजनीति को दूर रखें.
पंजाब में कांग्रेस की सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि राज्य के कोटा के तहत रियायती कीमतों पर मिली वैक्सीन को प्राइवेट अस्पतालों को ऊंचे दाम पर बेचा जा रहा है ताकि मुनाफा कमाया जा सके. सरकार पर ऐसे 1.4 लाख टीके बेचने का आरोप है जिन्हें 400 रुपये प्रति डोज पर खरीदा गया और निजी अस्पतालों को 1000 रुपये या उससे ज्यादा के भाव पर बेचा गया. पंजाब सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को वैक्सीन देने का ऑर्डर वापस ले लिया है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कई राज्यों पर वैक्सीन की बर्बादी का आरोप लगाया है जिसमें राजस्थान, हरियाणा और असम शामिल हैं. वैक्सीन की बर्बादी के आरोप का खंडन करते हुए राजस्थान सरकार ने ऑडिट का ऐलान किया है.
दूसरी ओर विदेशी वैक्सीन खरीदने पर भी राज्यों और केंद्र के बीच टकराव जारी है. केंद्र ने अब सीधे आयात को लेकर ढील दी है और फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन की शर्तों पर भी हामी भरी है.
इतनी बड़ी आबादी वाले देश का टीकाकरण एक बड़ी चुनौती है. टीकाकरण में राजनीति के दखल से आम लोगों का भरोसा टूट रहा है. इस दखल से कहीं वैक्सीनेशन मुहिम राजनीति का शिकार ना हो जाए.