कोविड महामारी ने करोड़ों भारतीय कर्मचारियों की जिंदगियों को तबाह कर दिया है. इन लोगों को नौकरी जाने, तनख्वाह घटने और अनिश्चितता के मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ा है. इनमें से कई अपनी जान गंवा चुके हैं और इनके परिवार भारी मुश्किल और तनाव से जूझ रहे हैं.
रविवार को केंद्रीय लेबर मिनिस्ट्री ने कोविड की वजह से मरने वाले वर्कर्स के परिवारों को मदद करने के लिए कई उपायों का ऐलान किया है. ESIC और EPFO की कई पाबंदियों में रियायत दी गई है ताकि इन वर्कर्स के परिवारों को वित्तीय रूप से स्थिरता दी जा सके और ऐसे परिवार अपना खर्च चला सकें.
ये अतिरिक्त सामाजिक सुरक्षा कवर वर्कर्स को उनसे या उनकी कंपनियों से कोई अतिरिक्त पैसा लिए बिना मुहैया कराया जाएगा.
लेबर मिनिस्ट्री का कदम निश्चित तौर पर स्वागत योग्य है. हालांकि, इससे कुछ सवाल भी पैदा हो रहे हैं.
ESI एक्ट, 1948 एक सामाजिक सिक्योरिटी कानून है जो कि ऐसी सभी फैक्टरियों और नोटिफाइड संस्थानों पर लागू होता है जहां 10 या उससे ज्यादा वर्कर्स काम करते हैं. लेकिन, ये असंगठित सेक्टर पर लागू नहीं होता है.
यही बात EPFO पर भी लागू होती है. इसके तहत करीब 6 करोड़ वर्कर्स आते हैं. हालांकि, सरकार की योजना इसका दायरा बढ़ाकर इसमें असंगठित सेक्टर के 40 करोड़ से ज्यादा वर्कर्स को लाने की है, लेकिन ये महत्वाकांक्षी योजना अभी तक पूरी नहीं हो सकी है.
इन वर्कर्स में से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर हैं और ये सबसे ज्यादा जोखिमभरे तबके में आते हैं. पिछले साल IMF ने अनुमान जताया था कि आर्थिक गतिविधियों पर लगी पाबंदियों के चलते देश के ऐसे 9 करोड़ वर्कर्स में से 4 करोड़ बेहद गरीबी में खिसक जाएंगे.
ये ऐसे वर्कर्स हैं जिन्हें सरकार को किसी न किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा या कोई दूसरा कवर तुरंत मुहैया कराना चाहिए. ये कवर नकदी या किसी दूसरे रूप में हो सकता है.
कोविड की पहली लहर और उसके बाद कहीं ज्यादा भीषण दूसरी लहर के चलते देश के ज्यादातर असंगठित सेक्टर के मजदूरों का कामकाज पूरी तरह से खत्म हो गया है और इन्हें रोजगार के नए मौके भी नहीं मिल पा रहे हैं.