तकनीक निश्चित तौर पर एक बड़ी चमत्कारिक चीज है. पूरी मानवजाति को इससे बड़ा फायदा हुआ है. तकनीकी रूप से एडवांस होने के साथ ही डिजिटल ट्रांजैक्शंस में भी कई गुना बढ़ोतरी हुई है. लेकिन, इससे साइबर लुटेरे और फर्जीवाड़ा करने वाले भी सक्रिय हो गए हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, 2021 में पूरी दुनिया में साइबर ठग 6 लाख करोड़ डॉलर की पूंजी लूट लेंगे. ये आंकड़ा भारत की GDP और BSE के मार्केट कैप से भी ज्यादा है.
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन मार्केट है जिसमें करीब 70 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं. वित्त वर्ष 2020-21 में टोटल डिजिटल ट्रांजैक्शंस का वॉल्यूम बढ़कर 4,371 करोड़ रुपये हो गया है, जो कि इससे एक साल पहले 3,412 करोड़ रुपये था. ऐसे में डिजिटल ट्रांजैक्शंस में बढ़ोतरी के साथ ही साइबर इंश्योरेंस की भी जरूरत बढ़ गई है.
हालांकि, भारतीय कंपनियां अब साइबर इंश्योरेंस की जरूरत को लेकर सजग हो रही हैं और कुछ इंश्योरेंस कंपनियों ने इस तरह की पॉलिसीज भी देना शुरू कर दिया है जिनमें सिक्योरिटी में सेंध लगने की वजह से होने वाले नुकसानों को कवर किया गया है. इसके बावजूद ये पर्सनल मार्केट में अभी बेहद कम जागरूकता है.
हालांकि, लोगों को लगता होगा कि उनके साथ साइबर धोखाधड़ी होने के आसार बहुत कम हैं, लेकिन हकीकत ये है कि साइबर अटैक ऐसे नए-नए तौर-तरीकों का इस्तेमाल करके किए जा रहे हैं कि आप उनका अंदाजा तक नहीं लगा सकते हैं.
सामान्य से फोन कॉल से पासवर्ड और पिन का पता लगाने से लेकर फिशिंग अटैक्स तक फर्जीवाड़ा करने वाले किसी भी तरीके से आपको तगड़ी चोट पहुंचा सकते हैं.
ऐसे में इस बात की जरूरत है कि जो लोग डिजिटल पेमेंट्स का बड़े तौर पर इस्तेमाल करते हैं उन्हें खुद को भविष्य में होने वाले इस तरह के हमलों से बचाकर रखना चाहिए.
IRDAI की बनाई गई एक कमेटी ने हाल में ही साइबर इंश्योरेंस पॉलिसीज को लेकर कुछ सुधार किए जाने की सिफारिश की है. इनमें 5,000 रुपये से कम के लॉस के लिए FIR कराने पर जोर न देने जैसी मांग शामिल हैं.
बीमा कंपनियों को रेगुलेटर के साथ मिलकर साइबर इंश्योरेंस को लेकर जागरूकता पैदा करनी चाहिए. ऐसा करना इस वजह से भी जरूरी है क्योंकि इस तरह के साइबर अटैक्स के चलते लोग डिजिटल पेमेंट्स से दूरी बना सकते हैं.
किसी दुर्घटना के होने के बाद इंश्योरेंस कवर के लिए भागना किसी भी लिहाज से बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती है.
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